मेरी प्रिय मित्र मंडली

शनिवार, 24 नवंबर 2018

रूमानियत

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इस   क़दर अपना बनाया आपने  ,
कर दिया जग से पराया आपने  !

था दर्द की इन्तहा में  डूबा  ये दिल ,
 चाहत का  मरहम लगाया आपने !

 मेरे  भीतर ही था सोया कहीं ,
आ  वो बचपन   लौटाया  आपने! 

बदल गए मंज़र कायनात के,
वो हसीं जादू जगाया आपने  !

हुआ एक पल भी दूभर बिन आपके ,
 खुद का यूँ आदी बनाया आपने !

 इस  जमीं से आगे कब  था  मेरा जहाँ '
 आसमां पे ला बिठाया आपने !!

 रूमानियत का  है करिश्मा आपकी, 
मुझसे ही मुझको  मिलाया आपने !



40 टिप्‍पणियां:

  1. रूमानियत का है करिश्मा आपकी,
    मुझसे ही मुझको मिलाया आपने !

    हुआ एक पल भी दूभर बिन आपके ,
    खुद का यूँ आदी बनाया आपने !
    वाह बहुत ही बेहतरीन रचना रेनू जी

    जवाब देंहटाएं
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    1. प्रियअनुराधा जी -- आभारी हूँ आपके स्नेहासिक्त शब्दों के लिए |

      हटाएं
  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक २६ नवंबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. पांच लिंकों का ह्रदय से आभार प्रिय श्वेता |

      हटाएं
  3. बहुत ही खूबसूरत जी..
    परायेपन के साथ ही साथ अपनापन भी है..

    हुआ एकपल भी दूभर बिन आपके,
    खुदका यू आदी बनाया आपने !

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    1. प्रिय रविन्द्र जी -- आपका हार्दिक स्वागत है मेरे ब्लॉग पर | आपके शब्दों के लिए सस्नेह आभार |

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  4. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २६ नवंबर २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/



    टीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।



    आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'

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  5. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/11/97_26.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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  6. वाह वाह रेनू बहन!!
    रसधार यूं बहाई प्रेम समर्पन की
    कि कविता का दीवाना बनाया आपने ।
    सहज प्रवाहित मन लुभाती सुंदर कविता ।

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    1. प्रिय कुसुम बहन -- आपकी काव्यात्मक टिप्पणी और इसमें निहित स्नेह की आभारी रहूंगी | ये अनमोल है मेरे लिए |

      हटाएं
  7. वाह!!!कमाल की प्रस्तुति रुमानियत भरी...
    इस जमीं से आगे कब था मेरा जहाँ '
    आसमां पे ला बिठाया आपने !!!!!!!
    बहुत ही मनभावनी...
    लाजवाब भावाभिव्यक्ति।

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    उत्तर
    1. प्रिय सुधा बहन -- आपकी वाह मेरी रचनात्मक उर्जा को बढाती है | सस्नेह आभार आपका |

      हटाएं
  8. इस क़दर अपना बनाया आपने -
    कर दिया जग से पराया आपने !
    बेहद खूबसूरती से समर्पण के भावोंं को शब्दों में पिरोती गईं आप कि समापन तक रचना खूबसूरत पुष्पहार सी खित गई । अत्यन्त सुन्दर सृजन रेणु जी ! सस्नेह !!

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    उत्तर
    1. प्रिय मीना बहन -- आपके स्नेह भरे शब्द अनमोल हैं मेरे लिए | सस्नेह आभार |

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  9. वाह ... दिल को छूते अलफ़ाज़ ... हर शेर रूमानियत लिए ... दिल को छूता हुआ जैसे ... सादगी भरे नाजुक प्रेम की दास्ताँ ये ग़ज़ल लाजवाब है ...

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    1. आदरणीय दिगम्बर जी -- ये मेरा सौभाग्य है आपको ये रचना पसंद आई | बस यूँ ही छोटा सा प्रयास किया था | सादर आभार आपका |

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  10. वाह रेनू जी !
    हमको ऐसे ख़ूबसूरत एहसासात का आदी मत बनाइए वरना हमारा जब भी हमारा दिल उदास होगा, हम आप से ऐसे ही किसी गीत या ग़ज़ल की फ़रमाइश कर देंगे.

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    1. आदरणीय गोपेश जी -- आपकी वाह से मैं गद्गद हूँ | आपके मुस्कुराते शब्दों का कोई जवाब नहीं | सादर नमन |

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  11. इस जमीं से आगे कब था मेरा जहाँ '
    आसमां पे ला बिठाया आपने......





    वाह रेनू जी बहुत ही शानदार। .

    आसान शब्दों मैं बहुत लाज़वाब ग़ज़ल कही हैं

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    1. प्रिय जफ़र जी -- आप जैसे सुदक्ष गज़लकार की सराहना मेरे लिए मायने रखती है | सस्नेह आभार आपका |

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  12. इस क़दर अपना बनाया आपने -
    कर दिया जग से पराया आपने !
    जी दी सुंदर लगी ये पंक्तियां

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  13. वाह, वाह!!प्रिय रेनू जी ,कितनी खूबसूरत ग़जल लिखी है !!!!वाह!!मन आनंदित हो गया ।

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    1. प्रिय शुभा बहन --- रचना से ज्यादा आपकी वाह में आनन्द पाया मैंने | सस्नेह आभार बहना |

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  14. रूमानियत का है करिश्मा आपकी,
    मुझसे ही मुझको मिलाया आपने !!!!!!!!!!!क्या बात है रेनू जी , प्रेम की ऊंचाई तो इसी में निहित है ,बहुत ही सुंदर

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    उत्तर
    1. आदरणीय वन्दना जी - आपके सकारात्मकता भरे शब्दों के लिए सादर आभार और नमन |

      हटाएं
  15. अपने से अपने को मिलवाया इससे अच्छा क्या हो सकता है !

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    उत्तर
    1. आदरणीय हर्ष जी -- सादर आभार और अभिनन्दन |

      हटाएं
  16. वा..व्व...दी, प्रेम से परिपुर्ण बहुत ही सुंदर रचना!

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  17. प्रिय रेणु दी, क्षमा चाहती हूं, आजकल ब्लॉग और नहीं आ पाती लेकिन आपका स्नेह हमेशा की मिलता रहता है। बहुत आभारी हूँ आपकी।
    आपकी रचना में जो प्रेम की सरिता बह रही है उसकी तरंगें हर पाठक के दिल को छू रही हैं। बहुत सुंदर रचना।
    सादर

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  18. प्रिय अपर्णा -- आप लोगों का स्नेह ही मेरे ब्लॉग -लेखन की ऊर्जा है | सस्नेह आभार इतने स्नेह भरे शब्दों के लिए | मेरा स्नेह सदैव आपके साथ है |

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  19. हुआ एक पल भी दूभर बिन आपके ,
    खुद का यूँ आदी बनाया आपने !

    वाह !!! बहुत खूब ,लाजबाब.... ,प्रेम की परकाष्ठा तक पंहुचा दिया तुमने सखी

    जवाब देंहटाएं
  20. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१३-0६-२०२०) को 'पत्थरों का स्रोत'(चर्चा अंक-३७३१) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    --
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं

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