लौट कभी ना आना तुम !
घनीभूत पीड़ा -घन बन
ना पलकों पर छा जाना तुम !
हूँ आलिंगनबद्ध , सुखद पलों से ,
कर ना देना दूर तुम ,
दिव्य आभा से घिरी मैं
ना हर लेना ये नूर तुम ,
सोई हूँ ले सपन सुहाने
ना मीठी नींद से जगाना तुम!
आज प्रतीक्षित है कोई
कुछ पग संग चलने के लिए ,
रीते मन में रंग अपनी
प्रीत का भरने के लिए,
लौटा लाया जो खुशियाँ मेरी
समझो ना उसे बेगाना तुम!
लौटी हूँ चिरप्रवास से
रिक्तियों के नभ से मैं,
आकंठ हूँ अनुरागरत
विरक्त हूँ इस जग से मैं,
बंधी हूं स्नेहपाश में
ना बंधन ये तोड़ जाना तुम!
जो हैं शब्दों से परे
एहसास जीने दो मुझे,
बन गया अभिमान मेरा
विश्वास जीने दो मुझे ,
जोड़ नाता अतीत से
ना फिर मुझे भरमाना तुम!
ना रुला देना मुझे
ना फिर सताना मुझे ,
दिवास्वप्न ये मधुर से
मिटा ना तरसाना मुझे ,
दूर किसी जड़ बस्ती में
जाकर के बस जाना तुम !!
घनीभूत पीड़ा -घन बन
ना पलकों पर छा जाना तुम !
हूँ आलिंगनबद्ध , सुखद पलों से ,
कर ना देना दूर तुम ,
दिव्य आभा से घिरी मैं
ना हर लेना ये नूर तुम ,
सोई हूँ ले सपन सुहाने
ना मीठी नींद से जगाना तुम!
आज प्रतीक्षित है कोई
कुछ पग संग चलने के लिए ,
रीते मन में रंग अपनी
प्रीत का भरने के लिए,
लौटा लाया जो खुशियाँ मेरी
समझो ना उसे बेगाना तुम!
लौटी हूँ चिरप्रवास से
रिक्तियों के नभ से मैं,
आकंठ हूँ अनुरागरत
विरक्त हूँ इस जग से मैं,
बंधी हूं स्नेहपाश में
ना बंधन ये तोड़ जाना तुम!
जो हैं शब्दों से परे
एहसास जीने दो मुझे,
बन गया अभिमान मेरा
विश्वास जीने दो मुझे ,
जोड़ नाता अतीत से
ना फिर मुझे भरमाना तुम!
ना रुला देना मुझे
ना फिर सताना मुझे ,
दिवास्वप्न ये मधुर से
मिटा ना तरसाना मुझे ,
दूर किसी जड़ बस्ती में
जाकर के बस जाना तुम !!
बधाईयां संकलन करने वाली बहन
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर -- सुस्वागतम , और सादर आभार जो आप मेरे ब्लॉग पर पधारे |
हटाएंदूर किसी जड़ बस्ती में
जवाब देंहटाएंजाकर के बस जाना तुम !!
बहुत सुंदर शब्दों में आपने वेदना का चित्रण किया है
प्रिय बहन रेणु
प्रिय अभिलाषा जी -- आपकी आभारी हूँ आपके उत्साहवर्धक शब्दों के लिए |
हटाएंवाहहह दी,बहुत सुंदर भावपूर्ण रचना।
जवाब देंहटाएंआपकी रचना के लिए कुछ पंक्तियाँ दी-
जिन स्मृतियों की पीड़ा
भुलाना चाहता है मन
वो क्षण उर स्पंदन-सा
विलग नहीं कर पाता है
भ्रम में डूबा मरीचिका के
आजीवन भटक भरमाता है।
बधाई एक सुंदर सृजन के लिए।
वाह !प्रिय श्वेता -- मूल रचना के प्रतिउत्तर में आपकी ये काव्यात्मक टिप्पणी बहुत ही सुंदर है और रचना के विषय को विस्तार देती है | रचना को भाव से पढने के लिए हार्दिक आभार और सुंदर टिप्पणी के लिए मेरा प्यार |
हटाएंबहुत सुंदर भावपूर्ण रचना, रेणु दी।
जवाब देंहटाएंप्रिय ज्योति -- आपका हार्दिक आभार |
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (14-12-2018) को "सुख का सूरज नहीं गगन में" (चर्चा अंक-3185) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर आभार आदरणीय सर |
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार १४ दिसंबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सस्नेह आभार प्रिय श्वेता |
हटाएंबहुत भावपूर्ण ...
जवाब देंहटाएंसुख के अहसास में वेदना का क्या काम ... फिर जब इंसान में विरक्ति का भाव आ जाए तो वेदना का संसार भी सुखनभूति देता है ... कूट आनंद का भाव ही जीवन है ...
सुंदर रचना है ...
आदरनीय दिगम्बर जी -- अनमोल शब्दों के लिए आपका सादर आभार |
हटाएंवाह! वेदना से मधुर मनुहार!
जवाब देंहटाएंआदरणीय विश्वमोहन जी -- मधुर शब्दों के लिए सादर आभार |
हटाएंजो हैं शब्दों से परे-
जवाब देंहटाएंएहसास जीने दो मुझे
बन गया अभिमान मेरा -
विश्वास जीने दो मुझे -
जोड़ नाता अतीत से -
ना फिर मुझे भरमाना तुम
बहुत ही भावपूर्ण रचना...
सुखद पलों में भी कभी अतीत के दुख याद आ जाते हैं तो कभी भविष्य के लिए शंका.....
ये वेदना इसी फटकार के लायक है जो एक भय सी बनकर मन को उदास कर देती है...
दूर किसी जड़ बस्ती में
जाकर के बस जाना तुम !!
बहुत लाजवाब... मासूम मन के भोले भाव....
वाह!!!
प्रिय सुधा बहन -- आपकी विश्लेषणात्मक टिप्पणी ने रचना के मूल भाव और मर्म को बिलकुल स्पष्ट कर दिया | आपके स्नेहासिक्त शब्द अभिभूत कर रहे हैं | आभार नही मेरा प्यार बस | आप जैसी सुदक्ष रचनाकार की सराहना अनमोल है |
हटाएंहूँ आलिंगनबद्ध - सुखद पलों से -
जवाब देंहटाएंकर ना देना दूर तुम ,
दिव्य आभा से घिरी मैं -
ना हर लेना ये नूर तुम ,
सोई हूँ ले सपने सुहाने -
ना मीठी नींद से जगाना तुम
...बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना...
आदरणीय सर -- आपका मेरे ब्लॉग पर हार्दिक स्वागत है | अपने
हटाएंमेरी रचना पढ़ी ये मेरा सौभाग्य है | सादर आभार और नमन |
बहुत ही सुन्दर रचना रेनू जी ,जैसे लग रहा मेरे भाव चुरा लिए हैं आपने
जवाब देंहटाएंलौटी हूँ चिरप्रवास से -
रिक्तियों के नभ से मैं
आकंठ हूँ अनुरागरत -
विरक्त हूँ इस जग से मैं
स्नेह पाश में बंधी -
ना बंधन ये तोड़ जाना तुम
हर पंक्ति अपने आप में बेजोड़ और लाजवाब।
आदरणीय शैल जी -- स्वागत है आपका ब्लॉग पर | रचना आपको पसंद आई -- ये जानकर संतोष हुआ | इन स्नेहासिक्त शब्दों के लिए हार्दिक आभार और शुक्रिया | सस्नेह --
हटाएंलौटी हूँ चिरप्रवास से -
जवाब देंहटाएंरिक्तियों के नभ से मैं
आकंठ हूँ अनुरागरत -
विरक्त हूँ इस जग से मैं
स्नेह पाश में बंधी -
ना बंधन ये तोड़ जाना तुम
बहुत ही सुंदर
हृदय स्पर्शी रचना
आदरणीय लोकेश जी -- आपके निरंतर सहयोग के लिए सादर आभार और शुक्रिया |
हटाएंजो हैं शब्दों से परे-
जवाब देंहटाएंएहसास जीने दो मुझे
बन गया अभिमान मेरा -
विश्वास जीने दो मुझे -
जोड़ नाता अतीत से -
ना फिर मुझे भरमाना तुम...........बहुत सुंदर ......सखी
प्रिय कामिनी -- आप ब्लॉग पर आई बहुत ख़ुशी हुई | सस्नेह आभार बहन |
हटाएंबहुत ही सुंदर रचना मन को छूती हुई
जवाब देंहटाएंबधाई
सादर आभार आपका आदरणीय सर |
हटाएंबहुत बेहतरीन और भावपूर्ण रचना
जवाब देंहटाएंसादर आभार आपका आदरनीय लोकेश जी
हटाएंसुन्दर भावपूर्ण प्रस्तुति.
जवाब देंहटाएंआदरणीय राकेश जी -- सादर आभार और शुक्रिया|
हटाएंदिवास्वप्न ये मधुर से -
जवाब देंहटाएंमिटा ना तरसाना मुझे
दूर किसी जड़ बस्ती में
जाकर के बस जाना तुम !!
जी रेणु दी
भावपूर्ण रचना है..
फिर भी दिवास्वप्न टूटने के लिये ही होता है।
प्रिय शशि भाई -- दिवास्वप्न के टूटने तक जो भ्रम रहता है उसका भी अपना महत्व है | रचना के आंतरिक भाव के अवलोकन के लिए सस्नेह आभार |
हटाएंआज प्रतीक्षित है कोई -
जवाब देंहटाएंकुछ पग संग चलने के लिए ;
रीते मन में रंग अपनी -
प्रीत का भरने के लिए
लौटा लाया खुशियाँ मेरी -
समझो ना उसे बेगाना तुम....
बस यही खुशियाँ बरकरार रहें और वेदना का नामो निशान ना रहे जीवन में .... हर इंसान यही तो चाहता है ना प्रिय रेणु !!! अत्यंत मुखर हो उठी है रचना... आपकी प्रवाहमयी भाषा एवं सुयोग्य शब्द चयन की जितनी तारीफ की जाए कम है!!!
प्रिय मीना बहन बहुत दिनों के बाद आपको ब्लॉग पर पाकर बहुत ख़ुशी हुई |रचना पर आपके प्रेरक शब्द अनमोल हैं | सस्नेह आभार बहन|
हटाएंवाह वाह रेनू बहन ऐसा लगता है मां सीता बाहर आई होगी जब देकर अग्नि परीक्षा बस ऐसा ही उच्छ्वास छोडा होगा भावों का। या अहिल्या ने छोडी होगी पाषाण काया तब ऐसा ही कुछ उद्बोबोधित किया होगा।
जवाब देंहटाएंलाजवाब शब्द संयोजन के साथ भावपूर्ण सुंदर रचना।
वाह क्या टिप्पणी की हैं कुसुम जी हमको कुछ कहने लायक छोड़ा ही नही।अब हम कितनी भी तारीफ करले मगर आपके शब्दो के मर्म को नही छू सकते।
हटाएंप्रिय कुसुम बहन -- मेरी साधारण सी रचना को आपके गहन , प्रखर चिंतन ने असाधारण बना दिया जिसके लिए निशब्द हो नत हूँ | आभार से परे इन स्नेहासिक्त शब्दों के लिए बस मेरा प्यार |
हटाएंबहुत खूब रेनु जी क्या खूब लिखा हैं
जवाब देंहटाएंदिव्य आभा से घिरी मैं -
ना हर लेना ये नूर तुम ,
सोई हूँ ले सपने सुहाने -
ना मीठी नींद से जगाना
एक बच्चा जैसे अपनी माँ से जिद कर रहा हैं कि बस उसे चाँद चाहिए और कुछ भी नही...
कौन चाहता हैं वेदना वापस आये मगर आ ही जाती हैं।काश ये कविता रूपी प्राथर्ना ऊपर वाला सुन ले।
बेहतरीन लेखन।
पिय जफर जी - आपकी गहन अवलोकन दृष्टि को नमन और सस्नेह आभार |
हटाएं
जवाब देंहटाएंसुन ! ओ वेदना
जीवन में -लौट कभी ना आना तुम !
घनीभूत पीड़ा -घन बन -
ना पलकों पर छा जाना तुम !!....बहुत उम्दा रेणु जी
सादर
प्रिय अनिता जी -- हार्दिक आभार और शुक्रिया |
हटाएंएक निवेदन जो सभी का है 'वेदना' से...,इसे आपने अपनी ओर से सुन्दर ढ़ंग से कर दिया है। मैंने भी प्रकृति से यही निवेदन किया है (एक छोटा प्रयास), जो यह अपने न्याय प्रक्रिया के तहत 'वेदना' का सृजनकर्त्ता है-
जवाब देंहटाएंसुनो ए प्रकृति तुम
जीवन की परिभाषा है क्या?
तेरे आंचल मे ही रहते हम
न्याय तुम्हारा संतुलन
फिर भी वेदना
असहनीय क्यूँ होता है?
इसको हमसे दूर रखना तुम
प्रिय बंधु प्रकाश -- आपकी रचना बहुत सुंदर है और सच में वेदना का ना होना ही अच्छा है पर शायद न्यायकर्ता ने यही सोचकर इसे बनाया होगा कि वेदना के बाद जो ख़ुशी मिलती है , उसका आनन्द अनूठा होता है | और हर्ष - विषाद तो जीवन की धूप- छाँव की तरह होते हैं | जीवन एक रंग वाला हो तो वो रोमांच कहाँ होगा | पर वेदना से किसी को भी गुजरना ना पड़े यही प्रार्थना है | सस्नेह आभार इस सुंदर टिप्पणी के लिए|
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२९ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
प्रिय श्वेता और पञ्च लिंक हार्दिक आभार |
हटाएं
जवाब देंहटाएंलौटी हूँ चिरप्रवास से -
रिक्तियों के नभ से मैं
आकंठ हूँ अनुरागरत -
विरक्त हूँ इस जग से मैं...
आज ये रचना फिर से पढ़ी है। भावनाप्रधान रचनाओं में भी आप बाजी मार ले जाती हो रेणु बहन.... आपकी लेखनी निरंतर चलती रहे ताकि हम इन सुंदर रचनाओं का आस्वाद ले सकें। बहुत सारा स्नेह।
स्वागत है मीना बहन |मेरा सौभाग्य कि आपने रचना दुबारा पढ़ी | सस्नेह आभार |
हटाएंआज प्रतीक्षित है कोई -
जवाब देंहटाएंकुछ पग संग चलने के लिए ;
रीते मन में रंग अपनी -
प्रीत का भरने के लिए
लौटा लाया खुशियाँ मेरी -
समझो ना उसे बेगाना तुम
बहुत ही बेहतरीन रचना प्रिय रेणु बहन
अवगत और आभार प्रिय अनुराधा जी |
हटाएंलौटी हूँ चिरप्रवास से -
जवाब देंहटाएंरिक्तियों के नभ से मैं
आकंठ हूँ अनुरागरत -
विरक्त हूँ इस जग से मैं
स्नेह पाश में बंधी -
ना बंधन ये तोड़ जाना तुम
जो हैं शब्दों से परे-
एहसास जीने दो मुझे
बन गया अभिमान मेरा -
विश्वास जीने दो मुझे -
जोड़ नाता अतीत से -
ना फिर मुझे भरमाना तुम
आपकी इस बेहतरीन कृति हेतु अनंत शुभकामनाएं आदरणीया रेणु जी । विलम्ब से ब्लॉग पर आने हेतु सजा का पात्र हूँ और क्षमाप्रार्थी भी।
आदरणीय पुरुषोत्तम जी - देर से ही सही आपने रचना पढ़ी | हार्दिक आभार आपका |
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 18 जुलाई 2021 शाम 5.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका प्रिय दीदी 🙏🙏
हटाएंप्रेम पगी सुंदर रचना । इतना प्रेम , इतना अनुराग कि जग से विरक्त हो गईं ।
जवाब देंहटाएंभाव पूर्ण अभिव्यक्ति
हार्दिक आभार आपका प्रिय दीदी 🙏🙏
हटाएं
जवाब देंहटाएंना रुला देना मुझे
ना फिर सताना मुझे ,
दिवास्वप्न ये मधुर से
मिटा ना तरसाना मुझे ,
दूर किसी जड़ बस्ती में
जाकर के बस जाना तुम !! ...बहुत सुंदर सटीक भाव,बिलकुल सच कहा आपने,जब हम जीवन के तमाम झंझावातों से किसी तरह मुक्त होकर जैसे ही आनंदित होते हैं, वैसे ही जीवन की कोई न कोई वेदना घेर लेती है,ये चंचल मन कभी कभी तो बिना वेदना के भी वेदना ढूंढ लेता है,बिलकुल मन को छूने वाली अभिव्यक्ति 🙏
इस सारगर्भित और रचना के मर्म को छूती रचना के लिए हार्दिक आभार प्रिय जिज्ञासा जी 🙏🌷🌷❤️💐
हटाएं'लौटा लाया जो खुशियाँ मेरी
जवाब देंहटाएंसमझो ना उसे बेगाना तुम!'... वाह, क्या लिखा है आपने! अद्भुत लेखन प्रतिभा है आपमें रेणु जी!
आपका हार्दिक आभार आदरणीय सर | ब्लॉग पर आपका सदैव स्वागत है |
जवाब देंहटाएं