बिनसुने मन की व्यथा
दूर कहीं मत जाना तुम !
कब किसने कितना सताया
सब कथा सुन जाना तुम ! !
जाने कब से जमा है भीतर
दर्द की अनगिन तहें ,
ज़ख्म बन चले नासूर
अब तो लाइलाज से हो गए ;
मुस्कुरा दूँ मैं जरा सा
वो वजह बन जाना तुम ! !
रोक लूँगी मैं तुम्हें
किसी पूनम की चाँद रात में ,
उस पल में जी लूँगी मैं
एक उम्र तुम्हारे साथ में ;
नीलगगन की छाँव में बस
मेरे साथ जगते जाना तुम !
एक नदी बाहर है
इक मेरे भीतर थमी है ,
खारे जल की झील बन जो
कब से बर्फ़ सी जमी है ;
ताप देकर स्नेह का
इसको पिघला जाना तुम ! !
साथ ना चल सको
मुझे नहीं शिकवा कोई ,
मेरे समानांतर ही कहीं
चुन लेना सरल सा पथ कोई ;
निहार लूँगी मैं तुम्हें बस दूर से
मेरी आँखों से कभी
ओझल ना हो जाना तुम ! !
बिनसुने मन की व्यथा
दूर कहीं मत जाना तुम !!
-चित्र ०० गूगल से साभार -
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कोई तो वजह होगी
जवाब देंहटाएंजो इस प्रकार की कविता लिखी गई
आभार
सादर शुभ प्रभात
जी यशोदा दीदी -- पञ्च लिंकों की 'वजह ' ही वजह है | सादर आभार |
हटाएंबहुत ही सुन्दर रचना 🙏
जवाब देंहटाएंप्रिय अभिलाषा बहन -- सस्नेह आभार |
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (19-10-2018) को "विजयादशमी विजय का, पावन है त्यौहार" (चर्चा अंक-3122) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
विजयादशमी और दशहरा की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आदरणीय सर -- आपके सहयोग से अभिभूत हूँ | सादर आभार |
हटाएंवाहः आदरणीया बहुत खूबसूरत रचना
जवाब देंहटाएंनिहार लूंगी मैं तुम्हे बस दूर से -
मेरी आँखों से कभी- ओझल ना हो जाना तुम... लाजवाब पंक्तियां
आदरणीय लोकेश जी -- आपका निरंतर सहयोग आभार से कहीं परे है | मेरा सौभाग्य आपको रचना पसंद आई | सादर --
हटाएं
जवाब देंहटाएंसाथ ना चल सको -
मुझे नहीं शिकवा कोई ,
मेरे समानांतर ही कहीं -
चुन लेना सरल सा पथ कोई ;
निहार लूंगी मैं तुम्हे बस दूर से -
मेरी आँखों से कभी- ओझल ना हो जाना तुम ! !
बिल्कुल ठीक कहती हैं, पास नहीं तो दूर ही होता, लेकिन होता कोई अपना...
बहुत ही मार्मिक रचना रेणु दी..
पर क्यों..?
ऐसी सोच तो हम जैसों की है..
प्रिय शशि भाई -- जीवन अनिश्चित होता है | इसमें क्या खो जाए क्या मिल जाए कह नहीं सकते | सब नियति का हिस्सा है | आपको रचना पसंद आई मुझे ख़ुशी है | सस्नेह -
हटाएंविरही मन की व्यथा जहाँ बस प्रेम ही चाह है साथ नहीं तो समानांतर ही सही, बस चाह और दीदार हो.. ....
जवाब देंहटाएंउसूलों की पाबन्दियों में घिरे रहे वे
चाहा जिसे उसे कभी भी पा न सके....
बहुत शानदार ...लाजवाब.... एवं हृदयस्पर्शी रचना...
प्रिय सुधा बहन -- आप जैसी सजग पाठिका और स्नेही सखी को अपने ब्लॉग पर पाकर मन को अपार संतोष होता है | आपने रचना के अंतर्निहित मर्म को पहचाना और रचना को सार्थक किया जिसके लिए मेरा हार्दिक स्नेह भरा आभार |
हटाएंआपने भावनाओं को बहुत बेहतरीन ढंग से् शब्दों में ढाला है. आप मुबारखबाद की हकदार हैं. स्वीकारिए.
जवाब देंहटाएंआदरणीय आयंगर जी -- आपके सराहना भरे शब्द मेरा बहुत बड़ा सौभाग्य हैं | आपकी सराहना ने मेरी रचना को सार्थक कर दिया जिसके लिए आपकी आभारी हूँ | वैसे ये रचना मेरी शब्द नगरी की सबसे लोकप्रिय रचनाओं में से एक है जिसे पाठकों ने बहुत ही स्नेह दिया | सादर --
हटाएंबहुत खूबसूरत रचना...
जवाब देंहटाएंप्रिय अंकित जी- सस्नेह आभार आपका |
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक २२ अक्टूबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
स्नेह आभार प्रिय श्वेता |
हटाएंसाथ ना चल सको -
जवाब देंहटाएंमुझे नहीं शिकवा कोई ,
मेरे समानांतर ही कहीं -
चुन लेना सरल सा पथ कोई ;
निहार लूंगी मैं तुम्हे बस दूर से -
मेरी आँखों से कभी- ओझल ना हो जाना तुम ! !
रेणु दी भावुक करने वाली हैं हर पंक्तियाँ, एक छोटी सी उम्मीद में जीवन गुजारने की अभिलाषा।
मेरा प्रणाम स्वीकार करें और ज्वर उतरा की नहीं..?
प्रिय शशि भाई -- आपको रचना पसंद आई मन हर्षित हुआ | सस्नेह आभार |
हटाएंबेहद हृदयस्पर्शी रचना
जवाब देंहटाएंप्रिय अनुराधा जी -- सस्नेह आभार |
हटाएंवाह रेनु जी बहुत सुंदर और सटीक लिखा हैं आपने,
जवाब देंहटाएंसौ आहो की तह से जो भाव निकले तो वो इस का कविता का ही रूप लेंगे शायद,बहुत अच्छा लगा पढ़कर आनंद आ गया।खासकर ये प्रयोग बहुत अच्छा लगा-
मुस्कुरा दूँ मैं जरा सा --
वो वजह बन जाना तुम ! !
आभार
प्रिय जफर -- आपके सराहना भरे शब्द सदैव ही मनोबल ऊँचा करते हैं | आपको प्रयोग अच्छा लगा ये मेरे लिए हर्ष का विषय है | सस्नेह आभार आपका |
हटाएंसुन्दर रचना सखी 👌👌
जवाब देंहटाएंएक नदी बाहर है -
इक मेरे भीतर थमी है ,
खारे जल की झील बन जो -
कब से बर्फ सी जमी है ;
ताप देकर स्नेह का -
इसको पिंघला जाना तुम ! !
सस्नेह आभार प्रिय अनीता बहन |
हटाएंरेनू बहन सचमुच निशब्द कर देते हो आप ऐसी चमत्कारी काव्य सरि बहती है आप की लेखनी से अद्भुत, ये क्या लिखा है आपने पता भी है गर बिना नाम देखे पढती तो सीधा दौडे हुवे महा देवी वर्मा की कविताएं खंगाल लेती उनके जैसी सीधा हृदय में सहज सिमटती रचना
जवाब देंहटाएंअप्रतिम अद्भुत ।
बदरी सी बरस आंखे रीती सी रह गई
दिल की जमी पर बस नमी सी रह गई
दूर बादलो के पार साथ चलता रहा कोई
साथ चलते कमी हम ज़मी की रह गई । ।
प्रिय कुसुम बहन -- आपके स्नेह भरे शब्दों ने मुझे फ़र्श से अर्श पर बिठा दिया |इस सराहना के योग्य शायद मैं हरगिज ना थी फिर भी आपका प्यार अनमोल है | आपकी काव्यात्मक टिप्पणी तो मेरी रचना की वो भावनाएं व्यक्त कर गई जो शायद मैं लिख ना पायी | आभार से तो इस स्नेह की गरिमा ही जाती रहेगी | बस मेरा प्यार आपके लिए |
हटाएंआपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है. https://rakeshkirachanay.blogspot.com/2018/10/92-93.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआदरणीय राकेश जी -- सादर आभार आपके अतुलनीय सहयोग के लिए |
हटाएंदीपोत्सव की अनंत मंगलकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंप्रिय संजय -- आपकी शुभकामनाओं के लिए हृदयतल से आभार | आपको भी मेरी शुभकामनायें |
हटाएंमुस्कुरा दूँ मैं जरा सा --
जवाब देंहटाएंवो वजह बन जाना तुम ! !
रोक लूंगी मैं तुम्हे -
किसी पूनम की चाँद रात में ,
उस पल में जी लूंगी मैं-
उम्र सारी - तुम्हारे साथ में ;
नील गगन की छांव में बस -
मेरे साथ जगते जाना तुम !
उफ़ !!!!!!कमाल की अभियक्ति है तुम्हारी ,प्रसंशा से परे ,एक एक शब्द दिल के मोती से लगते है ,सुंदर सरल शब्दों के माध्यम से ऐसी रुपहली छटा बिखेरती हो मन प्रेम रस में डूब जाता है ,मेरे पास शब्द नहीं हैं कि तुम्हारी प्रशंसा कैसे करू ,वैसे तो हर रचना लाजबाब है लेकिन ये तो हमेशा के लिए मेरे दिलोदिमाग पर छा गया ,स्नेह सखी
प्रिय कामिनी -- तुम्हारी असाधारण टिप्पणी ने मेरी साधारण रचना को असाधारण बना दिया | तुम्हे रचना पसंद आई बड़ा अच्छा लगा और अपने लेखन पर संतोष हुआ | इस सराहना के लिए मेरा आभार नहीं बस मेरा प्यार सखी |
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