दो परियां ये आसमान की
मेरी दुनिया में आई हैं ,
सफल दुआ जीवन की कोई
स्नेह की शीतल पुरवाई है !
लौट आया है दोनों संग
वो भूला- सा बचपन मेरा ;
निर्मल मुस्कान से चहक उठा
ये सूना सा आँगन मेरा ,
एक शारदा - एक लक्ष्मी सी
पा मेरी ममता इतराई है !
समय को लगे पंख मेरे
तुममें खो सुध-बुध बिसराऊँ मैं
जरा मुख मुरझाये तुम्हारा ,
तो विचलित सी हो जाऊँ मैं ;
तुम्हारी आँख से छलके आंसूं ;
तो आँख मेरी भी भर आई है !!
दोनों मेरी परछाई -सी
मेरा ही रूप साकार हो तुम,
मैं तुम में -तुम दोनों मुझमें
मेरी ख़ुशी का असीम विस्तार हो तुम
मेरे नैनों की ज्योति तुम
प्राणों में दोनों समाई हैं !!
हो सफल जीवन में बनना
मेरे संस्कार पहचान तुम ,
मैं वारूँ नित ममता अपनी
छूना सपनों का असमान तुम ,
डगमगाए ना ये नन्हें कदम
मेरी बाँहें पर्वत बन आई है !
दो परियां ये आसमान की
मेरी दुनिया में आई हैं ,
सफल दुआ जीवन की कोई -
स्नेह की शीतल पुरवाई है !!
सन्दर्भ --- दो प्यारी बेटियों की माँ के गर्व को समर्पित पंक्तियाँ--
मैं तुम में -तुम दोनों मुझमे -
जवाब देंहटाएंमेरी ख़ुशी का असीम विस्तार हो तुम
मेरे नैनो की ज्योति तुम --
प्राणों में दोनों समाईं हैं
बहुत ही बेहतरीन रचना रेनू जी बेटियां होती माँ की परछाईं हैं
बेटियों के सफल जीवन के लिए बहुत बहुत शुभकामनाएं
प्रिय अनुराधा जी -- आपकी स्नेहभरी टिप्पणी से मन को अपार हर्ष हुआ| बेटी माँ का सबसे बड़ा गर्व और पहचान होती हैं |ये दोनों परियां मेरे भानजी के घर आंगन की शोभा हैं | आपका आशीष अनमोल है उनके लिए | सस्नेह आभार सखी |
हटाएंतुम दोनों मेरी परछाई सी -
जवाब देंहटाएंमेरा ही रूप साकार हो तुम
मैं तुम में -तुम दोनों मुझमे -
मेरी ख़ुशी का असीम विस्तार हो तुम
मेरे नैनो की ज्योति तुम -
प्राणों में दोनों समाई हैं !!....रेनू जी आपने अपनी लेखनी से हर माँ की संवेदना व भावनाओं का बहुत सुंदर चित्रण किया है। सुंदर लेखन के लिए आपका हार्दिक अभिनंदन।
प्रिय दीपा जी -- आपके अनमोल और स्नेहासिक्त शब्दों से अभिभूत हूँ | इतनी रूचि से आपने रचना पढ़ी और अपनी राय दी उसके लिए आभारी हूँ |सच है हर बेटी माँ की परवरिश की पहचान है | बेटी के जरिये ही माँ के संस्कार दूसरे परिवार व समाज में फैलते हैं | सस्नेह |माँ की सं भावनात्मक रूप से अपनी बेटी से बहुत गहरी जुडी होती है | ये रिश्ता आजीवन चलता है | सस्नेह आभार सखी |
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जवाब देंहटाएंबेटी के लिए माँ के मन की हर भाव को शब्दों में पिरो दिया है तुमने .. बहुत प्यारी... रचना स्नेह ,सखी
सस्नेह आभार प्रिय कामिनी | सभी से देरीसे प्रतिउत्तर के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ |
हटाएं
जवाब देंहटाएंहो सफल जीवन में बनना-
मेरे संस्कार पहचान तुम -
मैं वारूँ नित ममता अपनी -
छूना सपनों का असमान तुम ;
डगमगाए ना ये नन्हे कदम ----
मेरी बाहें पर्वत बन आई है !!!!!
रेणु दी बेहद खूबसूरत रचना,पुत्रियों के प्रति माँ की ममता,उनकों अपना संस्कार देने की ललक और कर्तव्यबोध भी..
काश !हर इंसान इसे समझ पाता तो माँ के गर्भ में ही भद्रजन भी इनकी पहचान आज भी इस तरह से न मिटा रहे होतें।
जिस नारी के प्रेम के बिन पुरुषों का यह जीवन सूना है। वे तो यह महापाप करते ही हैं, घर की मुखिया महिला भी पुत्री के जन्म पर मुहं बना लेती हैं। इन मासूमों के साथ अन्याय आप जैसी महिलाओं की रचनाओं के माध्यम से ही बंद हो जाए काश !
ओरिय शशि भाई -- आपने जो विचार रचना के माध्यम से लिखे वो आपकी नारी के प्रति उदार और उद्दात सोच के परिचायक हैं |आज यही बात समझनी होगी बेटियों के बिना क्या हो सकता है |ये घर आंगन की शोभा हैं | इनके बिना ना घर में रौनक है ना जीवन में | मेरी भांजी की दोनों बेटियों और उसके विचारों के माध्यम से ये रचना लिख पाई | आपके विचारों ने रचना की विषय वस्तु को विस्तार प्रदान किया है | सस्नेह आभार आपका |
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक २४ दिसंबर २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सस्नेह आभार प्रिय श्वेता |
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (24-12-2018) को हनुमान जी की जाति (चर्चा अंक-3195) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
आदरणीय सर सादर आभार |
हटाएंतुम दोनों मेरी परछाई सी -
जवाब देंहटाएंमेरा ही रूप साकार हो तुम
मैं तुम में -तुम दोनों मुझमे -
मेरी ख़ुशी का असीम विस्तार हो तुम
मेरे नैनो की ज्योति तुम -
प्राणों में दोनों समाई हैं !!
वाह रेनू जी बहुत ही खूबसूरत रचना लिखी है आपने....दोनों परियों के लिए माँ के मन के भावोंं को बहुत ही खूबसूरती से काव्य में पिरोया है ऐसे भावों का विस्तार भी आवश्यक है आज समाज में ....जहाँँ बेटियों को बोझ और बेटों की लालसा बढ रही है ऐसा प्यार पढकर समाज की ममता शायद जागृत हो बेटियों के लिए...
एक शारदा - एक लक्ष्मी सी -
पा मेरी ममता इतराई है !
शारदा और लक्ष्मी की सेवा का अवसर पाकर संपूर्ण समाज अपने को कृतकृत्य समझे।
बहुत बहुत बधाई सखी इतने सुन्दर सृजन की...
प्रिय सुधा बहन -- आपने जिस स्नेह से रचना को परिभाषित कर रचना के विषय को विस्तार दिया है वो मेरे लिए बहुत विशेष है |बेटों की लालसा में खोये समाज ओर परिवार को ये समझना होगा कि नारी का सम्मान हमारी सनातन संस्कृति की पहचान है जिसमें कहा गया है कि जहाँ नारी की पूजा होती है वहां देवता निवास करते हैं | फिर हम बेटियों के प्रति इतने निर्मम कैसे हो गये कि उन्हें कोख में ही मारने को आतुर हैं | जब एक माँ बेटियों पर गर्व करती है तो बेटियों की गरिमा और सम्मान बुलंद होता है | सस्नेह आभार सखी |
हटाएंबेटियां घर -आंगन की शान,मां की पहचान,
जवाब देंहटाएंमहकती चंदन की डिबिया,चहकती चिड़िया होती है।
बहुत ही सुन्दर रचना रेणु जी
सस्नेह आभार सखी | आपकी सुंदर पंक्तियाँ वो कहती हैं जो मैं इस रचना में ना कह सकी |
हटाएंबहुत ही सुन्दर रचना रेणु बहन, ममता की मुस्कान का कोई मोल नहीं,
जवाब देंहटाएंममत्व के प्रेम से ओत प्रोत बहुत ही शानदार रचना 👌
आप को बहुत सा स्नेह, और ढ़ेर सारी शुभकामनायें
सादर
जी अनिता बहन जब माँ बेटियों पर गर्व करती हैं तो उनका सम्मान और गरिमा बढती है | सस्नेह आभार सखी |
हटाएंआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २४ दिसम्बर २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
आवश्यक सूचना : रचनाएं लिंक करने का उद्देश्य रचनाकार की मौलिकता का हनन करना कदापि नहीं हैं बल्कि उसके ब्लॉग तक साहित्य प्रेमियों को निर्बाध पहुँचाना है ताकि उक्त लेखक और उसकी रचनाधर्मिता से पाठक स्वयं परिचित हो सके, यही हमारा प्रयास है। यह कोई व्यवसायिक कार्य नहीं है बल्कि साहित्य के प्रति हमारा समर्पण है। सादर 'एकलव्य'
सस्नेह आभार प्रिय ध्रुव |
हटाएंवाह कितनी प्यारी गुड़िया है दोनो जैसे परियों की शहजादियाँ रेनू बहन।
जवाब देंहटाएंउस पर आप की बेहद कोमल अहसासों वाली प्यारी सुंदर रचना ।
सच बच्चों में हम अपना स्वयं का बचपन जी लेते हैं, और हर मां ऐसे ही बच्चों के लिये सदा दुआ करती है और अपने ऊपर सब उनकी तकलीफ लेने का भाव रखती है
बहुत प्यारी भाव रचना।
प्रिय कुसुम बहन - ये दोनों परियां मेरी भांजी की बेटियां हैं | अपनी बेटियों के गर्व को समर्पित उसके भावों से प्रेरित हो कर इस रचना का जन्म हुआ | और मेरी बेटी भी उन्नीस साल की है मुझे भी उस पर गर्व है | हर माँ अपनी बेटी के लिए यही दुआ करती है | सस्नेह आभार आपके स्नेहासिक्त शब्दों के लिए |
हटाएंबहुत सुन्दर रेनू जी,
जवाब देंहटाएंदो बेटियों का पिता हूँ, आपकी कविता में मेरी भावनाएं, मेरे जज़्बात भी प्रतिबिंबित हो रहे हैं. लेकिन आप अभी मेरी स्थिति तक नहीं पहुची हैं क्योंकि मैं तो 'नोन-तेल-लकड़ी' की फ़िक्र से ऊपर उठकर अपनी बड़ी बिटिया के दोनों बच्चों बच्चों की लीला का आनंद भी उठा रहा हूँ.
जी आदरणीय गोपेश जी -- आप जैसे स्नेह गर्वित पिताओं ने बेटियों की अस्मिता और सम्मान में चार लगाये हैं | काश आप जैसी सोच हर पिता की हो तो अनगिन अजन्मी बेटियों को संसार का अधिकार मिलेगा | सादर आभार आपका जो आपने इस विमर्श में अपने अनमोल विचार प्रकट किये |
हटाएंबहुत प्यारी परियां हैं...बिल्कुल आपकी मुस्कान के जैसी...और आपके भावनात्मक शब्द अनमोल हैं.
जवाब देंहटाएंप्रिय अभिलाषा जी -- आपके मधुर शब्दों के लिए सस्नेह आभार सखी |
हटाएंमन के भाव कभी कभी शब्दों में बह उठते हैं ... और स्नेह भरे हर दिल को झुमा जाते हैं ... बेटियां गर्व होती हैं ... जीवन होती हैं और धुरी होती हैं परिवार की ... उनसे ही जीवन की बहार है, श्रृंगार है ...
जवाब देंहटाएंमेरी बहुत बहुत शुभकामनायें हैं दोनों को ... ये स्नेह प्रेम यूँ ही बना रहे ...
आदरणीय दिगम्बर जी -- आपकी स्नेहाशीष अनमोल है और आपके उद्दात विचारों के लिए सादर आभार और नमन |
हटाएंप्रिय रेणु,बेटियों की गर्वित माँओं को देखकर मन में कहीं एक टीस सी उठती है....काश ! एक बिटिया होती। कहने को तो परिवार में बहुत सी बच्चियाँ हैं पर उन पर अपना इतना अधिकार तो नहीं होता ना !!! एक बेटी गोद लेने की कोशिश भी की थी किंतु घर से सहयोग नहीं मिला। मेरी आत्मा से हजारों आशीष दोनों गुड़ियों को। कविता में ममता छलक छ्लक पड़ रही है। बिना भावों के ऐसे शब्द नहीं आ सकते। बहुत सा प्यार।
जवाब देंहटाएंप्रिय मीना बहन -- देरी से प्रतिउत्तर के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ | आपने सच कहा जो अधिकार अपनी बेटी पर होता है वह किसी पर नहीं हो सकता | बेटी के बिना माँ का ममत्व अधूरा रहता है पर ईश्वर और नियति से कौन लड़े | दिल छोटा मत करना | अभी बहुत देर नहीं है जब बेटे की बहु के रूप में आपको बेटी मिलेगी और उस पर आपका अधिकार होगा | आपके स्नेहाशीष अनमोल हैं | आभार नहीं मेरा प्यार आपके लिए |
हटाएंआपकी मुस्कान के जैसी अद्भुत, शानदार सशक्त लेखन
जवाब देंहटाएंप्रिय संजय जी - आपने मधुर शब्दों के लिए सस्नेह आभार |
हटाएंलौट आया है दोनों संग -
जवाब देंहटाएंवो भुला सा बचपन मेरा ;
निर्मल मुस्कान से चहक उठा -
ये सूना सा आँगन मेरा ;
एक शारदा - एक लक्ष्मी सी -
पा मेरी ममता इतराई है !
वाह बहुत सुंदर,बेटियां ही घर की शान होती हैं और जिस घर मे बेटियां नही होती उस घर में सलीका नही होता।
आपकी रचना और बेटियां दोनों बहुत प्यारी हैं।
प्रिय जफ़र जी -- आपके स्नेह भरी प्रतिक्रिया से मन बाग़ - बाग़ हो गया | ये बेटियां मेरी भांजी की हैं जो सचमुच बहुत प्यारी हैं | आपको रचना पसंद आई मेरा सस्नेह आभार आपके लिए |
हटाएंवाह!प्रिय बहन रेनू ,बहुत खूबसूरत भावभिव्यक्ति । ममता तो अनमोल है ,बेटिया तो गौरव है ,घर आँगन गुलजार कर देती हैं ।
जवाब देंहटाएंप्रिय शुभा बह आपने सही कहा माँ का गर्व होती है बेटियां | घर आंगन को रौनक से भर देती हैं | सस्नेह आभार आपकी अनमोल प्रतिक्रिया के लिए |
हटाएंमाँ का गर्व होती है बेटियां
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार प्रिय संजय जी।
जवाब देंहटाएंit's really awesome creation......i liked it.
जवाब देंहटाएंwww.rajakpatrika.com is my blog plzz visit once.
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प्रिय अमित जी - आपके ब्लॉग पर मैं कई बार गयी हूँ | अच्छा लेखन है आपका | आभार |
हटाएंआपकी बेटियों के प्रति इस सोच को सलाम करता हूँ.
जवाब देंहटाएंलेकिन एक कटु सत्य ये भी है कि मैं जहाँ रहता हूँ वहां एक स्त्री भी बेटी पैदा करके राजी नहीं है..उसे तो सिर्फ बेटा चाहिए.
यूँ कह ले कि स्त्री ही स्त्री की विरोद्धी हैं.
आपकी सकारात्मक सोच हवा में फ़ैल जाये किसी खिले हुए गुलाब की सुगंध की तरह.
पधारिये- ठीक हो न जाएँ
प्रिय रोहित जी -- आपके सलाम को सलाम है | सब को मिलजुल कर बेटियों का सम्मान बढ़ाना होगा |जो स्त्रियाँ बेटी पैदा नहीं करना चाहती उनकी सोच बदलेगी जरुर जो शिक्षा से जागृति द्वारा ही संभव है |आपके स्नेहिल शब्दों के लिए आभारी हूँ |
हटाएंदो परियां ये आसमान की
जवाब देंहटाएंमेरी दुनिया में आई हैं ,
सफल दुआ जीवन की कोई -
स्नेह की शीतल पुरवाई है !!!!!!!!!!
स्नेह की शीतल पुरवाई से ये पुत्रियों के सुमधुर शोर माँ के साथ साथ पिता के मन में भी उतना ही आह्लाद उत्पन्न करते हैं. बहुत सुन्दर कृति. बधाई और आभार!
जी विश्वमोहन जी सच कहा आपने -- उन स्नेह गर्वित पिताओं ने हमेशा ही बेटियों के सम्मान , गरिमा में चार चाँद लगाये हैं | और अपने सानिध्य में उन्हें स्वछन्द पनपने का अवसर दिया है | आपके स्नेहिल शब्दों के लिए सादर , सस्नेह आभार |
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