जीना चाहूँ वो लम्हे बार -बार ,
जब तुमसे जुड़े थे मन के तार !
जाने उसमें क्या जादू था ?
ना रहा जो खुद पे काबू था !
ना रहा जो खुद पे काबू था !
कभी गीत बन कर हुआ मुखर,
हँसी में घुल कभी गया बिखर !
हँसी में घुल कभी गया बिखर !
प्राणों में मकरंद घोल गया,
बिन कहे ही सब कुछ बोल गया !
बिन कहे ही सब कुछ बोल गया !
इस धूल को बना गया चन्दन
सुवासित , निर्मल और पावन
सुवासित , निर्मल और पावन
कभी चाँद हुआ ,कभी फूल हुआ,
या चुभ हिया की शूल हुआ !
या चुभ हिया की शूल हुआ !
लाल था कभी - कभी नीला,
कभी सिंदूरी - कभी पीला !
कभी सिंदूरी - कभी पीला !
कोरे मन रंग कर निकल गया ,
कभी अश्रु बनकर ढुलक गया !
कभी अश्रु बनकर ढुलक गया !
ना खबर हुई क्या ले गया
क्या भर गया खाली झोली में ?
क्या भर गया खाली झोली में ?
वो चुटकी भर..अबीर तुम्हारा
उस फागुन की होली में !!!
स्वरचित -- रेणु-
चित्र -- गूगल से साभार
स्वरचित -- रेणु-
चित्र -- गूगल से साभार