उड़ चली धूल सी!!
रूह से लिपटी जाय
तनिक विलग ना होती,
रखूं इसे संभाल
जैसे सीप में मोती ;
सिमटी इसके बीच
दर्द हर चली भूल -सी !!
होऊँ जरा उदास
मुझे हँस बहलाए,
हो जो इसका साथ
तो कोई साथ न भाये ,
जाए पल भर ये दूर
हिया में चुभे शूल - सी !!
तुम नहीं हो जो पास
तो सही याद तुम्हारी ,
रहूं मगन मन बीच
चढी ये अजब खुमारी ;
बना प्यार मेरा अभिमान
गर्व में रही फूल सी !!
मन कंटक वन में
याद तुम्हारी
खिली फूल सी !!!!
रूह से लिपटी जाय
तनिक विलग ना होती,
रखूं इसे संभाल
जैसे सीप में मोती ;
सिमटी इसके बीच
दर्द हर चली भूल -सी !!
होऊँ जरा उदास
मुझे हँस बहलाए,
हो जो इसका साथ
तो कोई साथ न भाये ,
जाए पल भर ये दूर
हिया में चुभे शूल - सी !!
तुम नहीं हो जो पास
तो सही याद तुम्हारी ,
रहूं मगन मन बीच
चढी ये अजब खुमारी ;
बना प्यार मेरा अभिमान
गर्व में रही फूल सी !!
मन कंटक वन में
याद तुम्हारी
खिली फूल सी !!!!
स्वरचित -रेणु
चित्र---गूगल से साभार --
रूह से लिपटी जाय-
जवाब देंहटाएंतनिक विलग ना होती,
रखूं इसे संभाल -
जैसे सीप में मोती ;
सिमटी इसके बीच -
दर्द हर चली भूल सी !!
बहुत ही सुंदर एवं प्यारा श्रृजन रेणु दी।
काश ! ऐसा मीत हर किसी के जीवन में होता।
वह गीत है न कि कोई होता जिसकों अपना कह लेते यारों..
खैर दी पढ़ कर सुखद स्मृतियों में जाने का एक अवसर तो मिला।
आभारी हूँ, आपका।
प्रिय शशि भाई -- आपकी इस सारगर्भित विवेचना के लिए आपकी आभारी हूँ |
हटाएंपरंतु सच तो यह है कि यह दुनिया झूठ की है। यहाँ लोग अपनापन का दिखावा करते हैं और जब इच्छाएँ भर जाती है,तो उसे भूल, पाप और अपराध बता , वेदनाओं से हृदय भर देते हैं।
जवाब देंहटाएंतुम नहीं हो जो पास
जवाब देंहटाएंतो सही याद तुम्हारी
रहूं मगन मन बीच
चढी ये अजब खुमारी
बेहद प्यारी रचना सखी ,सादर स्नेह
प्रिय कामिनी -- तुम्हारे शब्द अनमोल हैं | हार्दिक आभार सखी |
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (31-05-2019) को "डायरी का दर्पण" (चर्चा अंक- 3352) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर आभार आदरणीय सर |
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार ३१ मई २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सस्नेह आभार प्रिय श्वेता |
हटाएंप्रभावशाली रचना
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आदरणीय विजय जी | ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत करती हूँ |
हटाएंतुम नहीं हो जो पास -
जवाब देंहटाएंतो सही याद तुम्हारी ,
रहूं मगन मन बीच -
चढी ये अजब खुमारी ;
बना प्यार मेरा अभिमान
गर्व में रही फूल सी !!
बहुत ही प्यारी रचना, रेणु दी।
हार्दिक आभार प्रिय ज्योति जी |
हटाएंमन कंटक वन में-
जवाब देंहटाएंयाद तुम्हारी -
खिली फूल सी
जब -जब महकी
हर दुविधा -
उड़ चली धूल सी!!....बहुत ही सुन्दर रेणु दी
हार्दिक आभार प्रिय अनीता|
हटाएंमन कंटक वन में-
जवाब देंहटाएंयाद तुम्हारी -
खिली फूल सी
बहुत सुंदर
जी सादर आभार आदरणीय | ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है |
हटाएंतुम नहीं हो जो पास -
जवाब देंहटाएंतो सही याद तुम्हारी ,
रहूं मगन मन बीच -
चढी ये अजब खुमारी ;
बना प्यार मेरा अभिमान
गर्व में रही फूल सी !!
मन कंटक वन में-
याद तुम्हारी - बेहद खूबसूरत रचना सखी 👌
हार्दिक आभार और शुक्रिया सखी अनुराधा |
हटाएंभौतिक अस्तित्व पर भारी पड़ता यादों का अहसास अर्थात रुमानियत में घुलती रूहानियत। सुंदर अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएंआदरणीय विश्वमोहन जी , हार्दिक आभार और शुक्रिया | आपकी प्रतिक्रिया अनमोल है |
हटाएंबहुत बहुत सुंदर रेणु बहन मन को मोहित करती।
जवाब देंहटाएंएक उमंग सी लहर गई इस सुंदर अभिव्यक्ति से।
गहरे उतरती जज्बातती रचना।
आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ प्रिय कुसुम बहन
हटाएंरूह से लिपटी जाय-
जवाब देंहटाएंतनिक विलग ना होती,
रखूं इसे संभाल -
जैसे सीप में मोती ;
सिमटी इसके बीच -
दर्द हर चली भूल सी !!
जीवन की सुनहरी यादें, भावुक पलों की मधुर यादें हर दर्द की दवा बन जाती हैं। परंतु कभी कभी सोचती हूँ, यदि मनुष्य के पास यादें ना होती तो बेहतर होता !!!
प्रिय मीना बहन, आपकी भावपूर्ण टिप्पणी ह्रदयस्पर्शी है | हार्दिक आभार सखी |
हटाएंखूबसूरत मनोभाव !
जवाब देंहटाएंआदरणीय जय श्री जी , हार्दिक आभार आपका | ब्लॉग पर आपका स्वागत है |
हटाएंतुम नहीं हो जो पास -
जवाब देंहटाएंतो सही याद तुम्हारी ,
रहूं मगन मन बीच -
चढी ये अजब खुमारी ;
बना प्यार मेरा अभिमान
गर्व में रही फूल सी !!
मन कंटक वन में-
याद तुम्हारी -. ...
अति सुंदर अभिव्यक्ति रेणु जी ।कोमल मनों भावों से सजी सुंदर रचना के लिए बधाई सखी ।
प्रिय दीपा जी , आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार सखी |
हटाएंकोमल भावों से सजी मनमोहक प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय रवीन्द्र जी | आपकी प्रतिक्रिया अनमोल है |
हटाएंतुम नहीं हो जो पास -
जवाब देंहटाएंतो सही याद तुम्हारी ,
रहूं मगन मन बीच -
चढी ये अजब खुमारी ;
बना प्यार मेरा अभिमान
गर्व में रही फूल सी !!
मन कंटक वन में-
याद तुम्हारी -
खिली फूल सी !!!!
प्रेम और प्रेम पगी यादें दूर होकर भी साथ होने का एहसास देते हैं....
बहि ही प्यारी लाजवाब प्रस्तुति
वाह!!!
प्रिय सुधा बहन आपके स्नेहिल शब्द सदैव ही विशेष रहे हैं | आपको आभार नहीं बस मेरा प्यार |
हटाएंशुभ प्रभात..
जवाब देंहटाएंकाफी होती है
32 टप्पणियाँ..
अच्छी रचनाओं को ही
प्राप्त होती है..
सादर...
जी भैया ये सब पाठकों का अनमोल प्यार है | सादर आभार आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए |
हटाएंरहूं मगन मन बीच -
जवाब देंहटाएंचढी ये अजब खुमारी ;
बना प्यार मेरा अभिमान
गर्व में रही फूल सी !!
...कोमल भावों से सजी बहुत ही प्यारी रचना रेणु दी।
प्रिय संजय -- आपके स्नेहिल शब्द विशेष और अनमोल हैं | सस्नेह आभार आपका |
हटाएंयादें खिलती हैं किसी उपवन सी और उनकी खुशबू खींच ले जाती है मन मयूर को दूर कहीं सपनों की दुनिया में और बह उठती है अविरल शदों की धरा .... इसी से तो सृजन होता है सुन्दर प्रेम गीत का ...
जवाब देंहटाएंकोमल एहसास से सजी रचना ....
आदरणीय दिगम्बर जी -- सादर आभार आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए |
हटाएंतुम नहीं हो जो पास -
जवाब देंहटाएंतो सही याद तुम्हारी ,
रहूं मगन मन बीच -
चढी ये अजब खुमारी ;
बना प्यार मेरा अभिमान
गर्व में रही फूल सी !!
मन कंटक वन में-
याद तुम्हारी -
खिली फूल सी !!!!
बेहतरीन लेखन । यादों के ये ही पल नैन सजल कर जाते हैं । बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीया।
सादर आभार आदरणीय पुरुषोत्तम जी |
हटाएंबहुत सुंदर गीत।
जवाब देंहटाएंसादर आभार और प्रणाम आदरणीय सर |
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 14 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय दीदी |
हटाएंवाह वाह वाह....हर पंक्ति पर बस वाह वाह ही निकल रहा।सुंदर भावों से सजी शानदार रचना आदरणीया दीदी जी 👌
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय आँचल |
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (२० -१०-२०१९ ) को " बस करो..!! "(चर्चा अंक- ३४९४) पर भी होगी।
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
हार्दिक आभार प्रिय अनिता और चर्चा मंच !
जवाब देंहटाएंबिछुड़े प्रिय की स्मृति भी अनमोल होती है रेणु जी और इसे आपने बहुत ही अच्छे ढंग से अपनी इस कविता में रेखांकित किया है । प्रिय निकट न भी हो तो भी उसके साथ बीते मधुर पलों की स्मृति में डूबना-उतराना सदा संभव होता है । अरबी के प्रसिद्ध विद्वान, लेखक एवं चिंतक ख़लील जिब्रान ने कहा है - 'याद करना भी मिलन का ही स्वरूप है' । और एक बहुत पुराना हृदयस्पर्शी फ़िल्मी गीत भी है - 'जब भी ये दिल उदास होता है, जाने कौन आसपास होता है' ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार जितेंद्र जी , आपके इस सुंदर विश्लेषण से रचना के भावों को विस्तार मिला 🙏🙏
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 19 अक्टूबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार यशोदा दीदी🙏🙏
हटाएंसुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंसादर आभार सुशील जी🙏🙏
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