दिन आज का बहुत सुहाना साथी !
आज कहीं मत जाना साथी !!
मुदित मन के मनुहार खुले हैं ,
नवसौरभ के बाजार खुले हैं ;
डाल - डाल पर नर्तन करती
कलियों के बंद द्वार खुले हैं ;
सजा हर वीराना साथी !
आज कहीं मत जाना साथी!!
ये तप्त दुपहरी जीवन की
थी मंद पड़ी प्राणों की उष्मा ,
जाग पड़ी तुम्हारी आहट से
सोयी अंतस की चिरतृष्णा,
हुआ विरह का राग पुराना साथी !
आज कहीं मत जाना साथी !!
सुन स्वर तुम्हारा सुपरिचित
ले हिलोरें पुलकित अंतर्मन ,
जाने जोड़ा किसने और कब?
प्रगाढ़ हुआ ये मन का बंधन ;
मिला नेह नज़राना साथी !
आज कहीं मत जाना साथी !!
आज कहीं मत जाना साथी !!
मुदित मन के मनुहार खुले हैं ,
नवसौरभ के बाजार खुले हैं ;
डाल - डाल पर नर्तन करती
कलियों के बंद द्वार खुले हैं ;
सजा हर वीराना साथी !
आज कहीं मत जाना साथी!!
ये तप्त दुपहरी जीवन की
थी मंद पड़ी प्राणों की उष्मा ,
जाग पड़ी तुम्हारी आहट से
सोयी अंतस की चिरतृष्णा,
हुआ विरह का राग पुराना साथी !
आज कहीं मत जाना साथी !!
सुन स्वर तुम्हारा सुपरिचित
ले हिलोरें पुलकित अंतर्मन ,
जाने जोड़ा किसने और कब?
प्रगाढ़ हुआ ये मन का बंधन ;
मिला नेह नज़राना साथी !
आज कहीं मत जाना साथी !!
जाग पड़ी तुम्हारी आहट से
जवाब देंहटाएंसोयी अंतस की चिरतृष्णा
हुआ विरह का राग पुराना साथी -
आज कहीं मत जाना साथी -
बहुत ही सुन्दर सरस लाजवाब
ऐसे सुहाना मौसम और साथ में साथी
वाह!!!!
प्रिय सुधा जी, आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया मेरे लिएकिसी पारितोषिक से कम नही। सस्नेह आभार सखी 🙏🥰
हटाएंऋतुराज को ध्यान में रखकर बसंत का सुंदर उपहार है यह सृजन।
जवाब देंहटाएंऐसे सौभाग्यशाली लोगों को नमन।
सस्नेह आभार प्रिय शशि भाई 🙏🙏
हटाएंआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 09 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआदरणीय यशोदा दीदी, आपके सहयोग की हमेशा आभारी रहूँगी हार्दिक शुक्रिया🙏🙏🙏
हटाएंसुन स्वर तुम्हारा सुपरिचित -
जवाब देंहटाएंले हिलोरें पुलकित अंतर्मन ,
जाने जोड़ा किसने और कब?
प्रगाढ़ हुआ ये मन का बंधन ;
मिला नेह नज़राना साथी
वाह !! सखी ,कितने दिनों बाद तुम्हारी लेखनी जागी और फिर से स्नेह के फुल बरसाने लगी हैं।
लाज़बाब ,तुम्हे साथी का स्नेह मिलता रहें और तुम्हारी लेखनी चलती रहें ,यही कामना करती हूँ
सादर स्नेह तुम्हे
प्रिय कामिनी, ये तुम्हारा स्नेह है सखी। हार्दिक आभार इस स्नेह से लबालब प्रतिक्रिया के लिए। 🙏🥰
हटाएंबहुत ही सुंदर और लाजबाब सृजन रेणु दी। तुम्हें अपने साथी का साथ हरदम मिलता रहे यहीं शुभकामनाएं...
जवाब देंहटाएंप्रिय ज्योति जी, आपके निरंतर प्रोत्साहन से अभिभूत हूँ, सादर आभार शुक्रिया 🙏🙏🙏🥰
हटाएंवाह वाह अति सुंदर मनमोहक अंतस से निसृत पवित्र समर्पित स्नेहिल गीत।
जवाब देंहटाएंदी बहुत बहुत अच्छी लगी रचना आज निःशब्द हूँ मेरी बधाई स्वीकार करें।
सस्नेह
सादर।
प्रिय श्वेता, ब्लॉग पर तुम्हारी उपस्थिति से बहुत खुशी हुई। तुम्हें गीत पसंद आया मेरा लिखना सार्थक हुआ। सस्नेह आभार🙏🥰
हटाएंआपकी रचनाओं के विस्तृत संसार से कहीं दूर जाने का मन करे भी तो कैसे!
जवाब देंहटाएंबहुत ही सुंदर, मन-मनुहार का यह उपहार हम कविता प्रेमियों के लिए।
शुभकामनाएं स्वीकार करें आदरणीया ।
आदरणीय पुरुषोत्तम जी, आपके प्रोत्साहन भरे शब्द सदैव मनोबल बढ़ाते हैं ।सादर आभार और शुक्रिया 🙏🙏🙏
हटाएंवाह बहुत सुंदर गीत मन मोह गया साथी ।
जवाब देंहटाएंरेणु बहन बहुत प्यारा गीत है ।
सुंदर भाव, सुंदर शब्दावली।
प्रिय कुसुम बहन, आपके मधुर शब्द मेरी रचना को सार्थकता प्रदान करते हैं। सस्नेह आभार 🙏🙏🥰
हटाएंनि:शब्द!!!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय विश्वमोहन जी 🙏🙏🙏
हटाएंउनसे ही विराना सजने लगे
जवाब देंहटाएंचिरतृष्णा मिटे
नेह नजराना मिले
भले ऐसे प्रेम की दूरियां कैसे सही जाये.
कलम के साथ कमाल करती हैं आप.
प्रिय रोहित जी , आपकी स्नेह भरी प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार |
हटाएं
जवाब देंहटाएंमन मुदित , मनुहार खुले हैं ,
नवसौरभ के बाजार खुले हैं ;
डाल - डाल पर नर्तन करती -
कलियों के बंद द्वार खुले हैं ;वाह बेहतरीन रचना 👌👌
सस्नेह आभार सखी |
हटाएंडाल-डाल पर कलियों संग कलरव मिलिंद संदेश यहीं।
जवाब देंहटाएंविरह के पतझड़ जहां भी झड़ते मिलन वसंत उन्मेष वहीं।
आदरणीय विश्वमोहन जी , आपकी ये अनमोल काव्यात्मक
हटाएंटिप्पणी मेरे ब्लॉग की अमूल्य थाती रहेगी । ब्लॉग पर आने के लिए आपका सादर आभार ।
डाल - डाल पर नर्तन करती -
जवाब देंहटाएंकलियों के बंद द्वार खुले हैं ;वाह बेहतरीन
हार्दिक आभार प्रिय संजय |
हटाएंबहुत सुंदर कविता रची है यह आपने रेणु जी | अभिनंदन |
जवाब देंहटाएंसादर आभार और शुक्रिया जितेन्द्र जी | ब्लॉग पर आपका भ्रमण मेरा सौभाग्य है |
हटाएं