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प्रस्तुत रचना,किसी अन्य कवि की शोषित नारी के लिए लिखी गई रचना पर,काव्यात्मक प्रतिक्रिया स्वरुप लिखी गई थी।
'पावन , निर्मल प्रेम सदा ही -- रहा शक्ति मानवता की , जग में ये नीड़ अनोखा है - जहाँ जगह नहीं मलिनता की ;; मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है |
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प्रस्तुत रचना,किसी अन्य कवि की शोषित नारी के लिए लिखी गई रचना पर,काव्यात्मक प्रतिक्रिया स्वरुप लिखी गई थी।
आज कविता सोई रहने दो, मन के मीत मेरे ! आज नहीं जगने को आतुर सोये उमड़े गीत मेरे ! ना जाने क्या बात है जो ये मन विचलित हुआ जाता है ! अना...
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना मंगलवार ८ मार्च २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सस्नेह आभार प्रिय श्वेता।
हटाएंलिखने से ना होगा तुम्हारे
जवाब देंहटाएंकहीं इन्कलाब कोई
रूह के जख्मों का मेरे
ना दे पायेगा हिसाब कोई
मौन रह ये रीत जग की
निभ ही जाने दो, कवि !
बात तो सच है प्रिय रेणु !
क्या होगा लिखकर ? द्रोपदी की पीड़ा पर कितना लिखा गया, उससे क्या आज तक स्त्रियों के साथ होनेवाला वहशीपन रुक सका ? हमारे लेखन की विडंबना ही यही है। हम स्त्री का दर्द, उसकी व्यथा, उसके साथ होनेवाले अत्याचार को लिखते रहे,यह तो उनके जख्मों पर नमक छिड़कना ही हुआ । हमने उन दरिंदों की बखिया उधेड़नेवाले, उनको लताड़नेवाले, उनका सामाजिक बहिष्कार करनेवाले, जन जन की आत्मा को झकझोर देनेवाला साहित्य कम लिखा।
अब स्त्रियों के दर्द पर मत लिखो, उनकी हालत पर मत लिखो, उनके साथ होनेवाले अत्याचारों पर लिखो ही मत। स्त्रियों की तकलीफों पर अब मत लिखो। मैं भी यही कहती हूँ कि स्त्री पर कुछ लिखो ही मत। कुछ नहीं बदलेगा लिखने विखने से।
मन में आक्रोश जगाती है आपकी यह कविता।
बहुत सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ प्रिय मीना।सच है जमीनी स्तर पर आज भी नारी चेतना के स्वर बहुत मध्यम हैं। शायद मैं भी खुद को अक्षम पाती हूँ लिखने के लिए।ध्रुव सिंह 'एकलव्य 'जी की नारी विमर्श पर आधारित रचना पर काव्यात्मक प्रतिक्रिया ये रचना लिखी गई।पुन स्वागत और आभार।
हटाएंनारी की अंतर्वेदना और समाज के प्रति की उसकी घोर निराशा का अद्भूत काव्यमय चित्रण।
जवाब देंहटाएंसादर।
हार्दिक आभार आदरनीय अयंगर जी।आपकी उपस्थिति और प्रतिक्रिया अनमोल है मेरे लिए 🙏🙏
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर सशक्त रचना।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार और प्रणाम आदरनीय आलोक जी🙏🙏
हटाएंनारी ही नहीं बल्कि समस्त मानवता की अंतर्वेदना के हाहाकार को स्वर मिला है इस अद्भुत रचना में।
जवाब देंहटाएंकाश! कृष्ण ही होता, कोई कवि नहीं,
तप्त मार्तंड होता, मद्धिम रवि नहीं!
कर दुर्योधन का दहन प्रचंड पीर देता,
पाँचाली को चिरंतन चीर देता।
हर अहुर, हर माहुर हो जाता हवि,
किंचित न गूँजता 'यूँ ही सहने दो कवि'!
आदरनीय विश्वमोहन जी,आपकी प्रतिक्रिया स्वरुप लिखी गई अनमोल पंक्तियाँ मेरी साधारण रचना के लिए एक उपहार से कम नहीं।गहन संवेदनाओं से भरे ये उद्गार अत्यंत उत्कृष्ट और भावपूर्ण हैं।पुन आभार और प्रणाम 🙏🙏
हटाएंबड़ी ही उम्दा रचना
जवाब देंहटाएंसस्नेह स्वागत और आभार प्रिय मनोज।
हटाएंसच को उजागर करती प्रभावी रचना
जवाब देंहटाएंसादर
सादर आभार और अभिनंदन आदरणीय सर 🙏🙏
हटाएंलिखने से ना होगा तुम्हारे
जवाब देंहटाएंकहीं इन्कलाब कोई
रूह के जख्मों का मेरे
ना दे पायेगा हिसाब कोई
मौन रह ये रीत जग की
निभ ही जाने दो, कवि !
दर्द भीतर का चुपचाप
आँखों से बहने दो कवि!/
दर्द देने वाले राक्षसों को दर्द भाता होगा
दिया दर्द पढ़कर नरपिशाच सुख ही पाता होगा
सही कहा कवि उस दर्द को मत लिखो। नारीविमर्श पर आधारित यह काव्य सृजन बहुत ही हृदयस्पर्शी एवं उत्कृष्ट है
बहुत बहुत बधाई एवं शुभकामनाएं रेणु जी!
आपकी सारगर्भित प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ सुधा जी 🙏❤
हटाएंउग्र से उग्रतर प्रतिक्रियाएँ भी नारी विमर्श के नाम पर रोटी जलाने वाले को वो सच देखने वाली आँखें कहाँ दे पाती है? शायद ईंट का जवाब पत्थर से देने पर ही कुछ हो। विद्रोही स्वरों को अब गगनभेदी होने की आवश्यकता है। अत्यंत सशक्त एवं प्रभावी स्वर।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार प्रिय अमृता जी।आपकी उपस्थिति बहुत सन्तोष देती है 🙏❤
हटाएंमौन रह ये रीत जग की
जवाब देंहटाएंनिभ ही जाने दो, कवि !
दर्द भीतर का चुपचाप
आँखों से बहने दो कवि!/
न जाने कितनी सदियों से यही होता आया है और होता रहेगा .... नारी विमर्श के नाम पर कुछ बदलने वाला नहीं .... मानसिकता आज भी वही है जो महाभारत काल में थी .... बल्कि और विद्रुप हुई है .... कडवे सच को शब्द देने में पूरी तरह समर्थ रही हो ....
जी प्रिय दीदी,आपकी प्रतिक्रिया से रचनाका मर्म स्पष्ट हुआ है।हार्दिक आभार आपकी आत्मीयता भरी उपस्थिति के लिए 🙏❤
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचना तमाम भावनाओं को समेटे हुए..
जवाब देंहटाएंमेरी नई पोस्ट पर स्वागत है
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार प्रिय संजय।आती हूँ जल्द ही ब्लॉग पर।
हटाएंआदरणीया मैम, सादर प्रणाम । अत्यंत करुण, हृदय को अंदर तक झकझोर देने वाली कविता । इस में न जाने कितनी महिलाओं और कन्यायों का भी स्वर मिल हुआ है । आपकी कविता निर्भया जैसी न जाने कितनी पीड़ि ताओं का स्मरण करातीं हैं । सबसे दुखद तो यह बात होती है , कि समाज इनका साथ देने के स्तान पर , झूठी माँ-मरियादाओं के नाम पर इन्हें ही दोषी करार करता रहता है । क्यूँ न्याय की अनेक गुहार लगाने पर भी, इन्हें उचित न्याय नहीं मिलता, क्यूँ इस घिनौने अत्याचार के लिए सरकार मृत्युदंड की घोषणा नहीं करती, क्यूँ कभी - कभी अपने भी इनका सातरः छोड़ देते हैं, इन प्रश्नों का कोई उत्तर नहीं मिलता। ऐसे में यह स्त्रीयाँ अपनी पीड़ा छुपाती हैं, अपने साथ हो रहे अन्याय का पता नहीं चलने देतीं क्यूंकी उनकी अवाज़ चीन ली जाती है । हृदय को व्यथित करने वाली और आँखों में आँसू भर देने वाली अत्यंत करुण व सटीक कविता बहुत से सवाल मन में उठाती है । क्षमा करना ही श्रमवीर आपकी एक और करुण रचना थी जिसे एक बार पढ़ कर पुनः पढ़ने का साहस नहीं हुआ, यह दूसरी है । आपको मेरा पुनः प्रणाम ।
जवाब देंहटाएंप्रिय अनंता, नारी जीवन की घनीभूत पीड़ा को कोई लेखनी लिख नहीं पाती।कितनी ही अनकही व्यथायें दुनिया की नजरों से ओझल रहीं।ये रचना प्रिय अनुज ध्रुव की रचना पर काव्यात्मक प्रतिक्रिया के रूप में लिखी गई थी।तुमने इसका मर्म बखूबी स्पष्ट किया जिसके लिए हार्दिक आभार और स्नेहाशीष।
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना शुक्रवार ८ मार्च २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
स्वागत और आभार प्रिय श्वेता 🌹❤
हटाएंसमय आ गया है अब नारी को चुपचाप हर दर्द नहीं सहना होगा, उसके पक्ष में खड़े होने को तैयार हो रहा है काल का पहिया
जवाब देंहटाएंस्वागत और आभार अनीता जी🙏🌹
हटाएंआज कई पुरानी स्मृतियाँ फिर ताजा होगी रचना पढकर - सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंस्वागत और आभार आलोक जी🙏
हटाएंये व्यथा लिखने में,
कहाँ लेखनी सक्षम कोई ?
लिखी गयी तो ,पढ़ इन्हें
कब आँख हुई नम कोई ?
सही कहा कौन लेखनी सक्षम है वह दर्द लिखने में जो युग युग से महिलाओं ने सहा...
अत्यंत मार्मिक सटीक एवं लाजवाब सृजन ।
स्वागत और आभार प्रिय सुधा जी 🌹🌹❤❤
हटाएंनारी की वेदना उसकी स्थिति का मार्मिक यथार्थ परक चित्रण करती सुन्दर सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत और आभार अभिलाषा जी🙏
हटाएंबहुत सुंदर पंक्तियों से सुसज्जित रचना...
जवाब देंहटाएंस्वागत और आभार प्रिय हरीश जी🙏
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