ना जान सका बात कोई
समर्पण और अभिसार की
सुनी समय ने बस कहानी
तेरे मेरे प्यार की !
पेड ने आँगन के
सुनना चाहा झुककर इसे,
देखना चाहा कभी
चिड़िया ने रुककर इसे
निहारने लगी , चली ना
एक मधु बयार की ,
सुनी समय ने बस कहानी
तेरे मेरे प्यार की !
मिल गए भीतर ही
जब देखने निकले तुम्हें ,
खो बैठे खुद को ही
जब ढूँढने निकले तुम्हें ,
पड़ गयी हर जीत फीकी
थी बात ऐसी हार की
समर्पण और अभिसार की
सुनी समय ने बस कहानी
तेरे मेरे प्यार की !
पेड ने आँगन के
सुनना चाहा झुककर इसे,
देखना चाहा कभी
चिड़िया ने रुककर इसे
निहारने लगी , चली ना
एक मधु बयार की ,
सुनी समय ने बस कहानी
तेरे मेरे प्यार की !
मिल गए भीतर ही
जब देखने निकले तुम्हें ,
खो बैठे खुद को ही
जब ढूँढने निकले तुम्हें ,
पड़ गयी हर जीत फीकी
थी बात ऐसी हार की
सुनी समय ने बस कहानी
तेरे मेरे प्यार की !
स्वाति बूँद से आ गिरे
हृदय के खाली सीप में!
चंदन वन महका गए,
जीवन के बीहड़ द्वीप में!
इस जन्म ना थी चाह कोई ;
है प्रार्थना युग- पार की !
सुनी समय ने बस कहानी
तेरे मेरे प्यार की
देखते ही बीत चले
दिन, महीने , साल यूँ ही !
ना फीके पडे रंग चाहत के
रहा तेरा ख्याल यूँ ही !
प्रगाढ़ थी लगन मन की
कहाँ बात थी अधिकार की ?
सुनी समय ने बस कहानी
तेरे मेरे प्यार की !!
तेरे मेरे प्यार की !
स्वाति बूँद से आ गिरे
हृदय के खाली सीप में!
चंदन वन महका गए,
जीवन के बीहड़ द्वीप में!
इस जन्म ना थी चाह कोई ;
है प्रार्थना युग- पार की !
सुनी समय ने बस कहानी
तेरे मेरे प्यार की
देखते ही बीत चले
दिन, महीने , साल यूँ ही !
ना फीके पडे रंग चाहत के
रहा तेरा ख्याल यूँ ही !
प्रगाढ़ थी लगन मन की
कहाँ बात थी अधिकार की ?
सुनी समय ने बस कहानी
तेरे मेरे प्यार की !!
आहा दी कितनी भावपूर्ण प्रेम में डूबी समर्पित हृदय की भावाव्यक्ति...हर बंध बेहद सुंदर लिखा है दी।
जवाब देंहटाएंस्वाति बूँद से आ गिरे
हृदय के खाली सीप में!
चंदन वन महका गए,
जीवन के बीहड़ द्वीप में!
इस जन्म ना थी चाह कोई ;
है प्रार्थना युग- पार की !
सुनी समय ने बस कहानी
तेरे मेरे प्यार की
कितनी मनमोहक पंक्तियाँ हैं दी।
बेहद सुंदर रचना।
बधाई दी।
सप्रेम।
इस उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार प्रिय श्वेता ❤❤
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार और प्रणाम आदरनीय आलोक जी 🙏🙏
हटाएं
जवाब देंहटाएंमिल गए भीतर ही
जब देखने निकले तुम्हें ,
खो बैठे खुद को ही
जब ढूँढने निकले तुम्हें ,
पड़ गयी हर जीत फीकी
थी बात ऐसी हार की
सुनी समय ने बस कहानी
तेरे मेरे प्यार की !
..बहुत सही कहा है रेणु जी, जो प्रेम हम संसार में ढूंढते हैं, वह तो हमारे हृदय में ही है, और हृदय का प्रेम सदैव साथ रहता है बस उसे साधने की जरूरत है ।
प्रेम को अभिव्यक्त करती मननशील उत्कृष्ट रचना । बधाई और शुभकामनाएं 💐💐
इस स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिये हार्दिक आभार प्रिय जिज्ञासा जी ❤❤
हटाएंमन की गति : मन ही जाने
जवाब देंहटाएं- बीजेन्द्र जैमिनी
हार्दिक आभार बिजेन्द्र जी।मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है 🙏🙏
हटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 15 मार्च 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
हार्दिक आभार प्रिय दीदी 🙏🙏
हटाएंबहुत बहुत बहुत सुन्दर सृजन
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार और प्रणाम प्रिय दीदी 🙏🙏❤
हटाएंआदरणीया रेणु जी,सुप्रभात! आज सुबह - सुबह ही आपकी श्रृंगार, अभिसार, समर्पण और जीवन - दर्शन के भावों से ओतप्रोत रचना ने मन मस्तिष्क को झंकृत और उल्लसित कर दिया। आपके हर शब्द सुसंयोजित और परिमार्जित है। हार्दिक साधुवाद!
जवाब देंहटाएंस्वाति बूँद से आ गिरे
हृदय के खाली सीप में!
चंदन वन महका गए,
जीवन के बीहड़ द्वीप में!
इस जन्म ना थी चाह कोई ;
है प्रार्थना युग- पार की !
सुनी समय ने बस कहानी
तेरे मेरे प्यार की!
सुंदर रचना की सुंदर पंक्तियाँ!--ब्रजेंद्रनाथ
आपकी उत्साहवर्द्धक प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ आदरनीय सर।मेरे ब्लॉग पर आपका सदैव हार्दिक स्वागत है 🙏🙏
हटाएंप्रगाढ़ थी लगन मन की
जवाब देंहटाएंकहाँ बात थी अधिकार की ?
सुनी समय ने बस कहानी
तेरे मेरे प्यार की !!
"आत्मिक प्रेम" अधिकार और कर्तव्य दोनों से परे होता है...
और सखी, कुछ बातें सिर्फ समय को ही सुननी चाहिए...
बाकी क्या तारीफ करूं तुम्हारी लेखनी की..
निशब्द हो जाती हूं, ढ़ेर सारा स्नेह तुम्हें तुम्हारी लेखनी यूं ही चलती रहें यही कामना करती हूं
रचना पर इस स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए बहुत-बहुत आभार और प्यार सखी। ❤❤
हटाएंबस सुनते ही रहने चाहता है हृदय इस कहानी को.....। हार्दिक शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार और अभिनंदन प्रिय अमृता जी 🙏❤
हटाएंपेड ने आँगन के
जवाब देंहटाएंसुनना चाहा झुककर इसे,
देखना चाहा कभी
चिड़िया ने रुककर इसे
निहारने लगी , चली ना
एक मधु बयार की,
भावपूर्ण कृति ।
बहुत-बहुत धन्यवाद और आभार आपका प्रिय मीना जी 🙏❤
हटाएंसूरज यूँ चढ़ता रहा,
जवाब देंहटाएंस्वर्ण-किरण मढ़ता रहा।
चाँद भी ढलता रहा,
बन चाँदनी गलता रहा।
किंतु, कालातीत थी।
व्यथा अभिसार की।
सुनी समय ने बस कहानी,
तेरे मेरे प्यार की!
रचना के अधूरे भावों की पूर्ति करती ये काव्यात्मक प्रतिक्रिया मेरे ब्लॉग की अनमोल थाती है आदरनीय विश्वमोहन जी ।इस के लिए आभार नहीं मेरी हार्दिक शुभकामनाएं आपके लिए 🙏🙏
हटाएंनिशब्द करती रचना
जवाब देंहटाएंवाह!!!
रुहानी प्रेम का अद्भुत रूप
इन पंक्तियों पर तो मन ठहर गया
नहीं मिल गए भीतर ही
जब देखने निकले तुम्हें ,
खो बैठे खुद को ही
जब ढूँढने निकले तुम्हें ,
पड़ गयी हर जीत फीकी
थी बात ऐसी हार की
सुनी समय ने बस कहानी
तेरे मेरे प्यार की !
हार की बात ऐसी कि फीकी लगे..
कमाल का सृजन सराहना से परे ।
आपकी उत्साहवर्द्धक और स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए जितना आभार कहूँ कम ही होगा प्रिय सुधा जी।आपको मेरी शुभकामनाएं और प्यार ❤🌺❤🌺
हटाएंनहीं मिल गए भीतर ही
जवाब देंहटाएंजब देखने निकले तुम्हें ,
खो बैठे खुद को ही
जब ढूँढने निकले तुम्हें ,
.......बेहतरीन अभिव्यक्ति!!
बहुत बहुत आभार आपका प्रिय संजय।
हटाएंआदरणीया मैम, बहुत ही सुंदर प्रेम-भरी रचना । सुंदर निश्छल प्रेम कीअभिव्यक्ति । आपकी इस कविता को पढ़ कर किसी सुरीले गीत को सुनने जैसा आनंद मिला । "तुम गगन के चंद्रमा हो " गीत की याद आ गई । काश आपकी यह कविता किसी गायक या फिल्म-दिरेक्टर के द्वारा लयबद्ध कर गीत में परिवर्तित करे । आपकी सभी कविताएं अनेकों बार पढ़ चुकी हूँ , आपकी प्रेम- कविताओं को पढ़ कर लगता है , आप गीतों के लिए बहुत अच्छे छंद लिख सकतीं हैं । ऐसे सुंदर शब्दों वाले प्रेम गीत अब कम ही फिल्मों का हिस्सा होते हैं, प्रेम गीत के नाम पर आज कल के अभिनेता पता नहीं क्या -क्या ऊटपटाँग गाते हैं, ऐसे में आपके यह काव्य-गीत विशेष हो सकते हैं ।
जवाब देंहटाएंप्रिय अनंता, तुम्हारी प्रतिक्रिया स्नेह का अतिरेक है।बहुत- बहुत शुक्रिया इस तरह गहराई में उतर कर साधारण-सी रचना की असाधारण प्रतिक्रिया के लिए।और बेटा छन्द ज्ञान मुझे नही है।मैं बस लयबद्धता को प्राथमिकता देती हूँ।तुम एक असाधारण पाठिका हो।हमेशा खुश रहो ♥️👍🏼
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