मेरी प्रिय मित्र मंडली

शनिवार, 16 जुलाई 2022

आज कविता सोई रहने दो !

आज  कविता सोई रहने दो,
मन के मीत  मेरे !
आज नहीं जगने को आतुर 
सोये उमड़े  गीत मेरे !
 

ना जाने क्या बात है जो ये
मन विचलित हुआ जाता है !
अनायास जगा दर्द कोई 
पलकें नम किये जाता है !
आज नहीं सोने देते  
ये रात-पहर रहे बीत मेरे !

आज ना चलती तनिक भी  मन की
उपजे ना प्रीत का राग कोई !
विरक्त  हृदय में अनायास ही
व्याप्त हुआ विराग कोई !
ना चैन  आता पल भर को भी 
 देह -प्राण रहे रीत मेरे! 

कोई खुशी  ना छूकर गुजरे,
बहलाती  ना सुहानी याद कोई।
लौटती जाती होंठों पर से ,
आ-आ कर फरियाद कोई  ।
लगे बदलने असह्य पीर में 
मधुर   प्रेम- संगीत मेरे!
आज नहीं जगने को आतुर 
सोये उमड़े   गीत मेरे !

चित्र - गूगल से साभार 

44 टिप्‍पणियां:

  1. मन के विरक्त भावों को
    शब्दों में ढाला है
    सोए गीतों को
    थोड़ा तो जगा डाला है ।
    व्यक्त करने से
    थोड़ी तो पीर कम होगी
    आँखों की नमी भी
    थोड़ी तो कम होगी ।

    भावपूर्ण रचना ।

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    1. प्रिय दीदी, रचना के अधूरे भावों की पूर्ति करती आपकी अनमोल काव्यात्मक प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ🙏🙏🌺🌺

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  2. जी दी,
    आपकी कविता ने भाव विह्वल कर दिया।
    कुछ पंक्तियां समर्पित है -
    ------
    किसी भी बहाने चली आती हैं उदासियाँ
    छेड़ों न गीत कोई छोड़ो दर्द की उबासियाँ

    दर्द थका रोकर अब बचा कोई एहसास नही
    पहचाने चेहरे बहुत जिसकी चाहत वो पास नही।

    पलभर के सुकूं को उम्रभर का मुसाफिर बना
    जिंदगी में कहीं खुशियों का कोई आवास नहीं।
    ----
    सप्रेम
    सादर।

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    1. बहुत खूब प्रिय श्वेता! रचना के भावों को विस्तार देती इस सुन्दर प्रतिक्रिया के लिए जितना भी आभार प्रकट करूँ कम है।मेरी शुभकामनाएं और प्यार 🌹🌹🌺🌺

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  3. आपकी लिखी रचना सोमवार 18 जुलाई 2022 को
    पांच लिंकों का आनंद पर... साझा की गई है
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    संगीता स्वरूप

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    1. अर्से बाद पाँच लिंक में अपनी रचना को देखकर अच्छा लगा।कोटि-कोटि धन्यवाद 🙏🙏🌹🌹🌺

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  4. बहुत बहुत सुन्दर बहुत बहुत सरस

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  5. दिल को छूती बहुत सुंदर रचना, रेणु दी।

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    1. हार्दिक आभार और अभिनंदन प्रिय भारती जी 🙏🙏🌺🌺🌺🌺🌺

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    1. ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है आदरणीया 🙏🙏🌹🌹🌺🌺

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  8. आज नहीं जगने को आतुर

    सोये उमड़े गीत मेरे !
    मन के अनकहे एहसास पिरो दिये आपने रेणु जी!
    सच में कभी विरक्ति इतनी बढ़ जाती है कि बोल , शब्द और लेखनी सब सो जते है ...पर आपकी लेखनी ने करवट बदली हैगीत भी जगेंगे और मन की खुशियों के साथ आपके सुन्दर गीतो पर पुनः हम पाठक झूम उठेंगे ।
    लाजवाब सृजन ।

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    1. रचना के मर्म तक पहुँचने के लिए आपका हार्दिक आभार है प्रिय सुधा जी🙏🌹🌺🌺🌹

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  9. उत्तर
    1. ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है प्रिय रंजू जी 🙏🙏🌺🌺🌹🌹

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  10. भावपूर्ण रचना है यह रेणु जी आपकी। श्वेता जी ने टिप्पणी में जो काव्य-पंक्तियां प्रस्तुत की हैं, वे भी सराहनीय हैं।

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    1. आपका हार्दिक आभार जितेन्द्र जी।प्रिय श्वेता ने सचमुच बहुत अच्छा लिखा है।

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  11. खूबसूरत बिम्बों का प्रयोग किया है आपने कविता भी बेहद संवेदनशील बन पड़ी है बधाई

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    1. आपका हार्दिक स्वागत है प्रिय संजय 🌺🌺🌹🌹🙏

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  12. बहुत ही मार्मिक भावों की प्रस्तुति
    सच कभी कभी मन किसी अनजाने विषाद से ग्रसित हो जीवन के विभिन्न आयामों से विरक्ति सा करवा देता है, पर समय के साथ हर विरक्ति दूर होती है और हम अपने मूल स्वभाव में फिर आ जाते हैं। मन के खेल भी निराले हैं।
    सुंदर सराहनीय सृजन के लिए लाख बधाई सखी ।

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    1. रचना का मर्म स्पष्ट करती प्रतिक्रिया के लिए कोटि धन्यवाद प्रिय जिज्ञासा जी। जीवन में हर चीज अस्थायी है।🙏🙏🌺🌺🎀🎀

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  13. गीत हमारे मनोविज्ञान के इर्द-इर्द रचते-बसते हैं
    बहुत सही

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    1. हार्दिक आभार आपका प्रिय कविता जी 🙏♥️♥️🌹🌹

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  14. विषाद लम्बा हो जरूरी नहीं विषाद के कुछ पल भी अगर लेखनी उठवा दें तो रचनाकार जो लिख जाता है वो सोचकर कभी नहीं लिख पाता।
    वेदना अकथित स्याही में ढल कर अंतर तक उतर गई।
    अप्रतिम सृजन रेणु बहन।
    बहुत सुंदर हृदय तक पहुंचता।

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    1. आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से रचना सार्थक हुई प्रिय कुसुम बहन।स्वागत और आभार आपका ♥️♥️🌹🌹🙏

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  15. है ऐसी कौन बात प्रिये
    जो मन विचलित कर जाती है।
    वो टीस वेदना की कैसी
    जो मन मे नित भर जाती है।

    अनायास ये दर्द कैसा ?
    कर जाता जो पलको को नम !
    करूँ श्रृंगार खुशियों से तेरा
    पीकर मैं सारा वो गम।

    अपने अधरों को मीठा कर ले
    ले सारे मुस्कान मेरे।
    अब कर ले आतुर जगने को
    खोये उमड़े गीत तेरे।


    स्पंदन उर का तेरा,
    सपनों का चतुर चितेरा ।
    छुप छुपकर छवि तुम्हारी,
    हृदय में हमने उकेरा।


    स्वपन सजन बन नयनो के ,
    चिलमन में आ जाना ।
    प्रीत की पाती की बतियों पे ,
    सहमी क्यों, मुसका ना !

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    उत्तर
    1. मेरी रचना के मिलते जुलते भावों से युक्त आपकी इस सार्थक और भावपूर्ण रचना के लिए कोटि धन्यवाद आदरनीय विश्व मोहन जी।ये रचना ब्लॉग पर थाती रूप में रहेगी।एक बार फिर से आभार और प्रणाम 🙏🙏

      हटाएं
  16. सुंदर भावपूर्ण सृजन। अनायास जगे दर्द की वजह से ही ऐसा सुंदर भावप्रधान और संवेदनशील काव्य पढ़ने को मिलता है। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आपको। सादर।

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    उत्तर
    1. हार्दिक आभार प्रिय वीरेंद्र जी।आपका बहुत -बहुत स्वागत है।

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  17. उत्तर
    1. आभार सतीश जी।आपको बहुत दिनों के बाद ब्लॉग पर देखकर अच्छा लगा 🙏🙏

      हटाएं
  18. राग और विराग से भरी कोमल भावनाओं को पिरोती हुई सुंदर रचना

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  19. जैसे सुकुमार कलिका चिंहुक उठी हो और हृदय उसी लय में बद्ध हो रहा हो..… अति सुन्दर भाव सृजन।

    जवाब देंहटाएं
  20. आपकी इस हृदयस्पर्शी प्रतिक्रिया के लिए सस्नेह आभार प्रिय अमृता जी 🙏🌺🌺

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  21. आदरणीया मैम , बहुत ही भावपूर्ण कविता । व्याकुल दुखी मन का चित्रण पर मेरी कविता सोई रहने दो कहने के बहाने तो आपकी कविता जग गई । इस सुंदर रचना को लिखने के बाद तो मन आनंदित हुआ होगा न? अत्यंत आभार एवं सादर प्रणाम ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. ढेरो आभार और प्यार प्रिय अनंता।तुम्हारी स्नेहासीक्त भावनाओं के समक्ष निशब्द हूँ।

      हटाएं

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