मेरी प्रिय मित्र मंडली

शनिवार, 13 मई 2023

वीतरागी माँ


उसी प्यार से एक बार फिर 
बैठ के मुझे  निहारो माँ
मेरी लाड़ो मेरी चन्दा 
कह फिर आज पुकारो माँ
 
आँखों में   व्याप्त  अजनबीपन 
तनिक भी  तो  ना भाता  माँ
यूँ विरक्त हो जाना तेरा 
बरबस दिल दहलाता माँ 
रखो  हाथ जरा सर पे 
ममता से मुझे दुलारो माँ !


थी कभी जीवटता की  मूर्त  
क्यों अब पग थके-थके से हैं!
जो कहना है झट से कह दो 
जो होठों पर शब्द रुके-से हैं!
धीर ना धरता व्याकुल मनुवा 
सीने से लगा पुचकारो माँ !


विरह-विगलित मन को
सदा सहलाया माँ तुमने!
जब सबने  ठुकराया उस पल 
गले लगाया माँ तुमने!
बिखर रही हूँ तिनका -तिनका 
आ फिर मुझे संवारो  माँ !

 


12 टिप्‍पणियां:

  1. वाह!प्रिय सखी रेणु जी ,बहुत खूब! माँ तो माँ ही होती है ,उसका स्थान कोई नहीं ले सकता ।आपको भी मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ🌷🌷

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    1. प्रिय शुभा जी,आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आभार आपका 🙏

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  2. दिगम्बर नासवा13 मई 2023 को 10:08 pm बजे

    माँ की यादों में डूबी पंक्तियाँ … जितनी बार पढ़ो नया अर्थ देती हैं …
    माँ को मेरा प्रणाम … 🙏🙏

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    1. सादर आभार दिगम्बर जी ,आपकी प्रतिक्रिया अनमोल है 🙏

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  3. आप ने लिखा.....
    हमने पड़ा.....
    इसे सभी पड़े......
    इस लिये आप की रचना......
    दिनांक 15/05/2023 को
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की जा रही है.....
    इस प्रस्तुति में.....
    आप भी सादर आमंत्रित है......


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    1. प्रिय कुलदीप जी,पाँच लिंक मंच पर रचना लिंक करने के लिए आभारी हूँ 🙏

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  4. आपकी अभिव्यक्ति तो प्रशंसनीय है ही, कई महीनों के अंतराल के उपरांत आपकी मंच पर उपस्थिति ने मुझे अत्यन्त संतोष प्रदान किया है। मैं तो आपके निमित्त चिंतित हो उठा था। आशा है, आप सकुशल होंगी। मंच पर आती रहें।

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    1. जी जितेन्द्र जी, घरेलू दायित्वों और कई अन्य मजबूरियों की वजह से काफी दिन ब्लॉग से दूर रहना पड़ा।आपकी इस आत्मीयता के लिए हृदय से आभारी हूँ।सब कुछ ठीक-ठीक है।आशा है कि अब ब्लॉग पर नियम से उपस्थिति रहेगी।🙏

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  5. आँखों में व्याप्त अजनबीपन
    तनिक भी तो ना भाता माँ
    यूँ विरक्त हो जाना तेरा
    बरबस दिल दहलाता माँ
    रखो हाथ जरा सर पे
    ममता से मुझे दुलारो माँ !
    माँ का वीतरागी हो जाना माँ के लिए तो ठीक ही होगा शायद..अपनी संतानों के विरह में खासकर ससुराल गयी बेटियों की याद में माँ के पल पल तड़पने से तो बेहतर ही होगा उनका वीतरागी होना ।हाँ हम संतानों के लिए पीड़ादायक ...क्योंकि हमें वो प्यार दुलार कहाँ मिलेगा ।
    आँखें नम हो गयी रेणु जी आपकी रचना पढकर ...मैं उन बेटियों की तकलीफ़ समझ रही हूँ जो सालों बाद भतीजी के विवाह में आई और अपनी ही माँ को अपना परिचय दे रही थी क्योंकि अलजाइमर पीड़ित माँ उन्हें पहचान भी ना पायी । समय समय के फेर हैं ...मुझे लगता है दुनिया का सबसे बड़ा दुख है ये।अपने माता-पिता को लगातार वृद्ध और कमज़ोर होते देखना ।
    हमेशा की तरह एक और लाजवाब हृदयस्पर्शी सृजन हेतु बहुत बहुत बधाई आपको।
    मातृदिवस की असीम शुभकामनाएं।

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    1. प्रिय सुधा जी,,सबसे पहले मेरी रचना के मर्म को छूती हुई इस अनमोल प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ।आपकी प्रतिक्रिया ने मानो रचना के सार को अक्षरशः समेट लिया।माँ के लिए भी अपने जीवन की संचित स्मृतियों से दूर हो जाना भी उचित नहीं होता।जिस बगिया को अपने खून और पसीने से सींचती है उसी से जीते जी दूर हो जाती है।बेटियों के लिए दोनों ही स्थितियाँ बहुत4मर्मांतक हैं,पहली अपने लिये अजनबियत और स्नेहहीनता तो दूसरी शारीरिक अक्षमता।अपने कर्मठ और जीवट जन्मदाताओं को असहाय देखकर जो पीड़ा होती है उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता।मैने भी एक बार माँ का ये वीतरागी रूप देखा है।मेरी माँ भाग्यशाली है कि उन्हें समय रह्ते सही ईलाज मिल गया जिससे वे अल्जाइमर की गिरफ्त में जाते -जाते बच गयी पर कई माओँ को इस हाल में देखकर उनकी बेटियों की पीड़ा को समझ गयी।उन्हें जीते जी फिर माँ की ममता नसीब नहीं हो पाई। माँ की ममता से जीते जी वंचित हो जाने से बढ़कर कोई दुख नहीं है।आपकी इस स्नेहिल और संवेदनशील अभिव्यक्ति के लिए हृदय तल से आभारी हूँ 🙏

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  6. बहुत ही सुंदर प्रस्तुति
    मां ऐसी ही होती है

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  7. शानदार रचना है...खूब बधाई । कृपया प्रकृति दर्शन के इस ब्लॉग को फालो कीजिएगा।

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Yes

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