'पावन , निर्मल प्रेम सदा ही -- रहा शक्ति मानवता की , जग में ये नीड़ अनोखा है - जहाँ जगह नहीं मलिनता की ;; मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है |
मीरजापुर के कई समाचार पत्रों में समीक्षा को स्थान मिला।हार्दिक आभार शशि भैया🙏🙏 आज मेरे ब्लॉग क्षितिज की पाँचवी वर्षगाँठ पर म...
वाह!प्रिय सखी रेणु जी ,बहुत खूब! माँ तो माँ ही होती है ,उसका स्थान कोई नहीं ले सकता ।आपको भी मातृ दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ🌷🌷
जवाब देंहटाएंप्रिय शुभा जी,आपकी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए आभार आपका 🙏
हटाएंमाँ की यादों में डूबी पंक्तियाँ … जितनी बार पढ़ो नया अर्थ देती हैं …
जवाब देंहटाएंमाँ को मेरा प्रणाम … 🙏🙏
सादर आभार दिगम्बर जी ,आपकी प्रतिक्रिया अनमोल है 🙏
हटाएंआप ने लिखा.....
जवाब देंहटाएंहमने पड़ा.....
इसे सभी पड़े......
इस लिये आप की रचना......
दिनांक 15/05/2023 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की जा रही है.....
इस प्रस्तुति में.....
आप भी सादर आमंत्रित है......
प्रिय कुलदीप जी,पाँच लिंक मंच पर रचना लिंक करने के लिए आभारी हूँ 🙏
हटाएंआपकी अभिव्यक्ति तो प्रशंसनीय है ही, कई महीनों के अंतराल के उपरांत आपकी मंच पर उपस्थिति ने मुझे अत्यन्त संतोष प्रदान किया है। मैं तो आपके निमित्त चिंतित हो उठा था। आशा है, आप सकुशल होंगी। मंच पर आती रहें।
जवाब देंहटाएंजी जितेन्द्र जी, घरेलू दायित्वों और कई अन्य मजबूरियों की वजह से काफी दिन ब्लॉग से दूर रहना पड़ा।आपकी इस आत्मीयता के लिए हृदय से आभारी हूँ।सब कुछ ठीक-ठीक है।आशा है कि अब ब्लॉग पर नियम से उपस्थिति रहेगी।🙏
हटाएंआँखों में व्याप्त अजनबीपन
जवाब देंहटाएंतनिक भी तो ना भाता माँ
यूँ विरक्त हो जाना तेरा
बरबस दिल दहलाता माँ
रखो हाथ जरा सर पे
ममता से मुझे दुलारो माँ !
माँ का वीतरागी हो जाना माँ के लिए तो ठीक ही होगा शायद..अपनी संतानों के विरह में खासकर ससुराल गयी बेटियों की याद में माँ के पल पल तड़पने से तो बेहतर ही होगा उनका वीतरागी होना ।हाँ हम संतानों के लिए पीड़ादायक ...क्योंकि हमें वो प्यार दुलार कहाँ मिलेगा ।
आँखें नम हो गयी रेणु जी आपकी रचना पढकर ...मैं उन बेटियों की तकलीफ़ समझ रही हूँ जो सालों बाद भतीजी के विवाह में आई और अपनी ही माँ को अपना परिचय दे रही थी क्योंकि अलजाइमर पीड़ित माँ उन्हें पहचान भी ना पायी । समय समय के फेर हैं ...मुझे लगता है दुनिया का सबसे बड़ा दुख है ये।अपने माता-पिता को लगातार वृद्ध और कमज़ोर होते देखना ।
हमेशा की तरह एक और लाजवाब हृदयस्पर्शी सृजन हेतु बहुत बहुत बधाई आपको।
मातृदिवस की असीम शुभकामनाएं।
प्रिय सुधा जी,,सबसे पहले मेरी रचना के मर्म को छूती हुई इस अनमोल प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ।आपकी प्रतिक्रिया ने मानो रचना के सार को अक्षरशः समेट लिया।माँ के लिए भी अपने जीवन की संचित स्मृतियों से दूर हो जाना भी उचित नहीं होता।जिस बगिया को अपने खून और पसीने से सींचती है उसी से जीते जी दूर हो जाती है।बेटियों के लिए दोनों ही स्थितियाँ बहुत4मर्मांतक हैं,पहली अपने लिये अजनबियत और स्नेहहीनता तो दूसरी शारीरिक अक्षमता।अपने कर्मठ और जीवट जन्मदाताओं को असहाय देखकर जो पीड़ा होती है उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता।मैने भी एक बार माँ का ये वीतरागी रूप देखा है।मेरी माँ भाग्यशाली है कि उन्हें समय रह्ते सही ईलाज मिल गया जिससे वे अल्जाइमर की गिरफ्त में जाते -जाते बच गयी पर कई माओँ को इस हाल में देखकर उनकी बेटियों की पीड़ा को समझ गयी।उन्हें जीते जी फिर माँ की ममता नसीब नहीं हो पाई। माँ की ममता से जीते जी वंचित हो जाने से बढ़कर कोई दुख नहीं है।आपकी इस स्नेहिल और संवेदनशील अभिव्यक्ति के लिए हृदय तल से आभारी हूँ 🙏
हटाएंबहुत ही सुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंमां ऐसी ही होती है
प्रिय भारती जी,हृदय से आभार है आपका 🙏
हटाएंशानदार रचना है...खूब बधाई । कृपया प्रकृति दर्शन के इस ब्लॉग को फालो कीजिएगा।
जवाब देंहटाएंहार्दिक स्वागत है संदीप जी।नए ब्लॉग की बधाई और शुभकामनाएं 🙏
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जवाब देंहटाएंथी कभी जीवटता की मूर्त
क्यों अब पग थके-थके से हैं!
जो कहना है झट से कह दो
जो होठों पर शब्द रुके-से हैं!
धीर ना धरता व्याकुल मनुवा
सीने से लगा पुचकारो माँ !
.. मां का नेह प्रेम ही अनमोल होता है। उम्र का तकाज़ा है, एक दिन तो सभी को उम्र अपनी गिरफ्त में लेती है, बहुत हृदयस्पर्शी लिखा है आपने। मां को प्रणाम बोलिएगा।
प्रिय जिज्ञासा,इतनी सुन्दर और भावपूर्ण प्रतिक्रिया के लिए ढेरों आभार।माँ के पास आपका प्रणाम पहुँच गया है।आपको ढेरों आशीष और प्यार भेजा है माँ ने।♥️
हटाएंमाँ के वात्सल्य का यह कोना न जाने कौन सी व्यस्तताओं में मुझसे छूट गया..,माँ के सुखद स्वरूप पर मर्मस्पर्शी के लिए हृदय से असीम आभार प्रिय रेणु जी !
जवाब देंहटाएंकोई बात नहीं प्रिय मीना जी।ब्लॉग पर आपका सदैव स्वागत है 🙏
हटाएंछंद-छंद में छाने तुमको,
जवाब देंहटाएंछक गया तेरा छौना माँ।
बिखरा इसका तिनका -तिनका
आ फिर इसे संवारो माँ ! अद्भुत!
आदरणीय विश्वमोहन जी,आपकी ये हृदयस्पर्शी पंक्तियाँ रचना के अधूरे भावों को पूरा कर रही हैं।हार्दिक आभार और प्रणाम आपको 🙏
हटाएंआदरणीया आप बहुत सुंदर लिखती हैं ,माँ के लिए लिखी रचना में हम कितना कुछ समाहित करना चाहेंगे सब कुछ कम ही लगेगा ।हर उम्र में माँ की ममता चाहिए होती है चाहे हम कितने ही उम्र दराज़ हो जाऐं ।
जवाब देंहटाएंप्रिय मधूलिका जी ब्लॉग पर आपका स्वागत है।रचना आपको अच्छी लगी मेरा सौभाग्य! हार्दिक आभार आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए 🙏
हटाएंमुग्ध करती अनुपम कृति
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार प्रिय मनोज जी
हटाएंबहुत ही अच्छी कविता
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार तुषार जी 🙏
हटाएंसमय के साथ भूमिकाएँ बदल जाती हैं, बेटी कब माँ बन जाती है और माँ बच्चों के मनुहार से सुख पाती है, सुंदर सृजन!
जवाब देंहटाएंजी अनीता जी , रचना के भाव को स्पर्श करती प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आपका |
हटाएंबहुत हृदयस्पर्शी लिखा है
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका प्रिय संजय |
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