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बुधवार, 9 जुलाई 2025

शिशु -सी माँ!!

देखते -देखते ब्लॉग -लेखन को आठ साल हो चले!
इस अवसर पर अपने  स्नेही पाठकों के प्रति आभार  प्रकट करना चाहती हूँ !सभी साथी रचनाकारों के अतुलनीय सहयोग और मार्गदर्शन के बिना  कुछ भी संभव ना था! सभी का हार्दिक अभिनन्दन  और आभार🙏 

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शिशु- सी होती जाती माँ! 
अब हर बात समझ न पाती माँ! 

कुछ भूली कुछ याद रही
जो याद है कह ना पाती माँ! 

स्मृति लोक हुए  धुंधले,
ना भटकती बीते लम्हों में !
जो आज है वो सबसे बेहतर
ये सोच के खुश हो जाती माँ !  

 
साथ ना देती जर्ज़र काया 
हुआ सफर जीवन का दूभर अब
पर चलती जाती अपनी धुन में
तनिक भी ना घबराती माँ!


पाने की ख़ुशी ना खोने का गम
हर तृष्णा छोड़ बढ़ी आगे
ना कोई समझाइश देती अब
विरक्त सी होती जाती माँ!

गिला  रहा ना कोई शिकवा
भीतर दुआ बस शेष यही
हर बात में  दे आशीष हरदम
मंद- मंद मुस्काती माँ!


25 टिप्‍पणियां:

  1. बधाइयाँ
    आठ वर्ष
    तआज्ज़ुब
    व्यू 126,573
    बढ़े चलिए, बढ़ते चलिए
    सादर वंदन

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    1. अभिनन्दन आपका ! आप सबके बिना ये सफ़र मुमकिन न था !

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  2. बहुत सुंदर शिशु सी होती जाती माँ । अपनों को देख मन ही मन खुशी जताती माँ ।

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  3. वाह रेणुबाला ! बहुत सुन्दर और मार्मिक कविता !
    निष्काम प्रेम की जीती जागती मूरत होती है ऐसी माँ !

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    उत्तर
    1. जी आदरणीय गोपेश जी | रचना के मर्म तक पहुँचने के लिए आभार आपका |

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  4. उत्तर
    1. आभार सुशील जी | सभी रचनाकारों के लिए आपका प्रोत्साहन अमूल्य है |

      हटाएं
  5. बहुत बधाई दी ब्ललॉग जगत में संजीवन बन प्राण भरती रहो हम सब को.प्रेरित करते रहो हमेशा आप यही कामना है।
    इतनी भावपूर्ण सुंदर रचना पर क्या कहूँ दी आपने तो भावुक ही कर दिया।
    तन पर गढ़ियाती उम्र की लकीर
    मेरी खुशियों की दुआ करती है
    तू मौसम के रंगों संग घुल-घुलकर
    मेरी मुस्कान बनकर झरती है
    तेरे आशीष के जायदाद की वारिस
    तेरे नेह की पूँजी सँभाल नहीं पाती हूँ
    कैसे बताऊँ माँ तुम क्या हो?
    चाहकर भी,शब्दों में साध नहीं पाती हूँ।
    सादर
    सस्नेह।
    --------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ११ जुलाई २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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    उत्तर
    1. प्रिय श्वेता , तुम्हारी भावपूर्ण प्रतिक्रिया मन को भावुक कर गई | माँ की ममता को शब्दों में साधने की क्षमता किसी में नहीं | एक समय के असीम ऊर्जा से भरे माता पिता को इस असहाय अवस्था में देखना बहुत व्याकुल कर देता है पर चाहकर भी कोई इस स्थिति को बदलने में सक्षम नहीं | पांच लिंक मंच की सदैव आभारी हूँ | ये निमंत्रण अपने आप में प्रेरणा का प्रतीक है |

      हटाएं
  6. बच्चा होना भी सरल नहीं मां के लिए,,फिर भी बच्चा होना भला है आज के संसार मे, हालातों में,,, बहुत अच्छी प्रस्तुति,, ब्लॉग के आठ वर्ष होने पर हार्दिक शुभकामनाएं,, यूं ये सफर अनवरत चलता रहे,,

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    1. जी कविता जी आपकी स्नेह भरी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार | आप भी आते रहिये |ब्लॉग पर आपका सदैव ही स्वागत है |

      हटाएं
  7. हार्दिक बधाई वर्षगाँठ की।आपकी रचनात्मकता का वटवृक्ष दिनोदिन अपनी छाया की सघनता को फैलाव देता रहे और हम पाठकों को उसके नीचे अद्भुत सुकून।
    ज्यों ज्यों जर्जर होती काया,
    तिल तिल छूटती जाती माया।
    फिर भी हर पल अनवरत ,
    ममता की धार बहाती माँ!

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    उत्तर
    1. आदरणीय विश्वमोहन जी , ब्लॉग पर आपके प्रेरक सहयोग की सदैव आभारी रहूंगी | माँ के जीवन का मार्मिक चित्र प्रस्तुत करती आपकी पंक्तियाँ रचना के अधूरे भावों को पूरा कर रही हैं | आप का ब्लॉग पर सदैव ही स्वागत है | स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए आभार और प्रणाम |

      हटाएं
  8. उत्तर
    1. प्रिय हरीश जी ,आपका स्वागत है | ब्लॉग पर आते रहिये |

      हटाएं
  9. वाह! प्रिय सखी रेणु जी, बहुत ही खूबसूरत रचना । सच में माँ जैसा कोई नहीं ..।
    ब्लॉग की वर्षगांठ पर हार्दिक बधाई सखी 🌷आठ वर्ष पहले डाला गया बीज ,खूबसूरत वृक्ष बन गया है । जो अपनी प्रतिभा से हम सबको आनंदित करता रहता है ।

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    उत्तर
    1. प्रिय शुभा जी ,स्वागत है आपका | आप जैसी सरलमना मित्र भी इसी ब्लॉग की देन है|आभार आपकी शुभकामनाओं का |

      हटाएं
  10. ब्लॉग के आँठवी वर्षगाँठ की हार्दिक बधाई रेणु जी ! लेखन यात्रा का ये सफर अनवरत चलता रहे ।
    वृद्ध होती माँ पर बहुत ही भावपूर्ण और हृदयस्पर्शी सृजन हेतु बहुत बहुत बधाई आपको।
    स्मृति लोक हुए धुंधले,
    ना भटकती बीते लम्हों में !
    जो आज है वो सबसे बेहतर
    ये सोच के खुश हो जाती माँ !
    काश माँ से ये सीख हम अभी ले लें तो हमारा भी वर्तमान कितना सुखकर हो जायेगा न ।

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    उत्तर
    1. प्रिय सुधा जी . रचना के मर्म को स्पर्श करती आपकी प्रतिक्रियाएं सदैव इस रचना यात्रा की सहयोगी रही हैं |इस अतुलनीय सहयोग की ऋणी रहूंगी | हार्दिक आभार और स्नेह |

      हटाएं
  11. ब्लॉग के आठ वर्ष पूरे करते हुए माँ को समर्पित भाव दिल को सरोबर कर जाते हैं ... माँ का हर रूप दिल में रहता है ... और नारी को तो माँ का रूप लेना ही है कभी न कभी ... उम्र के साथ माँ से लगाव बढ़ता जाता है ...

    जवाब देंहटाएं
  12. आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए आभार आपका दिगम्बर जी | शब्दनगरी से ब्लॉग तक आपका साथ अतुलनीय रहा | आपका ब्लॉग पर सदैव स्वागत है |

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  13. बहुत बहुत सुन्दर रचना

    जवाब देंहटाएं
  14. बहुत सुन्दर रचना । आलोक सिन्हा

    जवाब देंहटाएं

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