ये तुमने कैसा गीत सुनाया जोगी ?
जिसे सुनकर जी भर आया जोगी |
ये दर्द था कोई दुनिया का
या दुःख अपना गाया जोगी !
अनायास उमड़ा आँखों में पानी ,
कह रहा कुछ अलग कहानी |
तन की है ना धन की कोई ,
है कहीं गहरी चोट रूहानी |
माथे की सिलवट कहती है
कहीं नीद न चैन पाया जोगी !
किस आसक्ति ने बना दिया तुम्हें ,
जग-भर से विरक्त जोगी ?
कौन संसार बसा तुम्हारे भीतर
तुम जिसमें हुए मस्त जोगी ?
किस दुःख पहना भगवा चोला
क्यों कोई और रंग ना भाया जोगी ?
किसकी यादों के हवन में नित
तन और प्राण जलाते हो ?
किस बिछुड़े की पीड़ा में,
यूँ दर्द के सुर में गाते हो ?
क्यों लरज़े सुर सारंगी के ?
स्वर भी कंपकपाया जोगी !
क्या भारी भूल हुई तुमसे ,
जो ये दारुण कष्ट उठाया है ?
ये दोष है कोई नियति का,
या अपनों से धोखा खाया है ?
क्यों तोड़े स्नेह-ममता के रिश्ते ?
छोड़ी सब जग की माया जोगी !
क्यों चले अकेले जीवनपथ पर ?
साथ लिया ना कोई हठ कर ?
तोडी हर बाधा रस्ते की ,
ना देखा पीछे कभी भी मुड़कर |
बिसरी गाँव-गली की सुध- बुध
हुआ अपना देश पराया जोगी !!
बुल्लेशाह की तू कहे काफ़ियाँ,
गाये वारिस की हीर जोगी |
दिल का ही था किस्सा कोई
जो राँझा बना फ़कीर जोगी |
इश्क़ के रस्ते खुदा तक पँहुचे,
क्या तूने वो पथ अपनाया जोगी ?
ये कोई दर्द था दुनिया का ,
या दुःख अपना गाया जोगी !!
चित्र- गूगल से साभार
गूगल प्लस से अनमोल टिप्पणी --
Mahatam Mishra: ये तुमने कैसा गीत सुनाया जोगी -जिसे सुनकर जी भर आया जोगी , बहुत ही सार्थक भाव प्रस्फुटित उद्भार आदरणीया वाह वाह और वाह, जोगी जी वाह!!!!!!!
shail Singh:
वाह अद्द्भुत रचना ,जोगी की अन्तर्व्यथा का आख्यान बहुत ही मार्मिक चित्रण !
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