मुद्दत बाद सजी गलियां रे
गाँव में कोई फिर लौटा है !
जीवन बना है इक उत्सव रे -
गाँव में कोई फिर लौटा है ! !
रोती थी घर की दीवारें
छत भी यूँ ही चुपचाप पड़ी थी ,
जीवन न था जीने जैसा
मौत से बढ़कर एक घडी थी
लेकर घर भर की खुशियाँ रे
गाँव में कोई फिर लौटा है ! !
पनधट पे चर्चा उसकी
घर - घर में होती बात यही ,
लौटी है गलियों की रौनक -
जो थी उसके साथ गई ;
लेकर साथ समय बीता रे
गाँव में कोई फिर लौटा है ! !
उसके साथी जब जब करते थे
उसका जिक्र चौपालों में ,
उसके आने की खातिर -
नित जुड़ते थे हाथ शिवालों में ;
बन पुरवैया का झोंका रे --
गाँव में कोई फिर लौटा है
अमृत बने किसी के आँसू
रोदन बदले शहनाई में ,
लाज से बोझिल पलकों पर
सज गए सपने तन्हाई में ;
बनकर राधा का कान्हा रे-
गाँव में कोई फिर लौटा है !
मुद्दत बाद सजी गलियां रे -
गाँव में कोई फिर लौटा है !
जीवन बना है इक उत्सव रे
गाँव में कोई फिर लौटा है !!
जवाब देंहटाएंपनधट पे चर्चा उसकी -
घर - घर में -होती बात यही ,
लौटी है गलियों की रौनक -
जो थी उसके साथ गई ;
सुंदर पंक्तियाँ.............. 👌
आदरणीय पुरुषोत्तम जी -- हार्दिक आभार आपका -- रचना पढ़कर अपनी राय से अवगत कराने केलिए -- स्वागत करती हूँ आपका अपने ब्लॉग पर -------
हटाएंदिल को छूती हुयी रचना .... मन के कोमल भाव ...
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
हटाएंआदरणीय दिगंबर जी बहुत आभारी हूँ आपकी --
हटाएंसच में बहुत सुंदर रचना लिखी आपने
जवाब देंहटाएंआदरणीय सागर जी स्वागत है मेरे ब्लॉग पर आपका ----- और अच्छा लगा कि आपको रचना पसंद आई !!
हटाएंसुंदर रचना.।
जवाब देंहटाएंआदरणीय पम्मी जी -- हार्दिक स्वागत करती हूँ आपका ब्लॉग पर -- और आभार आपका कि आपने रचना पढ़ी --
हटाएंक्या खूब लिखा आपने,
जवाब देंहटाएंआदरनीय संजय जी - हार्दिक स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर -- बहुत आभार आपका रचना पर अपनी राय देने के लिए |
हटाएंआपकी रचना पढ़ के ददिहाल की याद आगई
जवाब देंहटाएंजी प्री शकुन्तला -- आपकी यादों से मेरे शब्द जुड़े तो मेरा लेखन सफल हुआ | सस्नेह आभार आपको |
हटाएंआपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द" सशक्त महिला रचनाकार विशेषांक के लिए चुनी गई है एवं सोमवार २७ नवंबर २०१७ को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com आप सादर आमंत्रित हैं ,धन्यवाद! "एकलव्य"
जवाब देंहटाएंप्रिय ध्रुव - आभारी हूँ आपकी |
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंआदरणीय सुशील जी -- सादर आभार और नमन --
हटाएंलेकर घर भर की खुशियाँ
जवाब देंहटाएंगांव में कोई फिर लौटा है.....
बहुत ही सुन्दर
वाह!!!!
आदरणीय सुधा जी-- आपके शब्द अनमोल हैं| सादर आभार और नमन |
हटाएंरोती थीं घर की दीवारें
जवाब देंहटाएंछत भी यूँ चुपचाप पड़ी थी
जीवन ना था जीने जैसा
ले घर भर की ख़ुशियाँ गाँव को कोई लौटा रे
सच में आज का सच जीवन्त चित्रण रेणु जी
स्नेह आभार आपका ऋतू जी --
हटाएंबहुत खूब.
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना
प्रिय सुधा जी आभारी हूँ आपकी |
हटाएंअमृत बने किसी के आंसू -
जवाब देंहटाएंरोदन बदले शहनाई में ,
लाज से बोझिल पलकों पर
सज गए सपने तन्हाई में ;
बनकर राधा का कान्हा रे-
गाँव में कोई फिर लौटा है !!!! ......वाह बहुत बढ़िया लिखा है आपने रेनू जी।
स्वागतम प्रिय दीपा जी -- आपको रचना पसंद आई इसके लिए सस्नेह आभार सखी |
हटाएंवाह ! गाँव के दृश्य को जीवंत करती हृदयस्पर्शी प्रस्तुति। बधाई एवं शुभकामनाएँ।
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय रवीन्द्रजी |
हटाएंमनभावन रचना..
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार प्रिय पम्मी जी |
हटाएंआशा और उम्मीद का लौटना माहोल को खुशनुमा कर देता है ...
जवाब देंहटाएंफिर प्रेम का लौटना ... क्या बात है ... लाजवाब नवगीत ...
आदरनीय दिगम्बर जी -- रचना के अंतर्निहित भाव को समझने के लिए आभारी हूँ आपकी | सादर --
हटाएंअमृत बने किसी के आंसू -
जवाब देंहटाएंरोदन बदले शहनाई में ,
लाज से बोझिल पलकों पर
सज गए सपने तन्हाई में ;
बनकर राधा का कान्हा रे-
गाँव में कोई फिर लौटा है !!!! .... बहुत सुंदर रचना
सुस्वागतम और सस्नेह आभार आदरणीय वन्दना जी |
हटाएंपनधट पे चर्चा उसकी -
जवाब देंहटाएंघर - घर में -होती बात यही ,
लौटी है गलियों की रौनक -
जो थी उसके साथ गई ;
लेकर साथ समय बीता रे --
गाँव में कोई फिर लौटा है ! !
लाजवाब रचना
सादर आभार आदरणीय लोकेश जी |
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जवाब देंहटाएंMeena Sharma
गाँव से जो चले जाते हैं वे गाँव में लौटते हैं तो बड़ा स्वागत होता है उनका ! क्यों ना हो, मेहमान बनकर आते हैं चंद दिनों के लिए ! छोटी छोटी खुशियों को सरल शब्दों में सहेज देती हैं आप । सस्नेह शुभकामनाओं के साथ.....
इतना सुंदर!इतना भावपूर्ण!इतना मनभावन गीत है यह।
जवाब देंहटाएंमन विभोर हो उठा। आपकी लेखनी में कोई तो जादू है।
कोटिशः प्रणाम आपको और आपकी लेखनी को।
ये तुम्हारा प्यार है प्रिय आँचल | सनेह आभार और प्यार |
हटाएंगाँव में कोई लौटा है .... मुझे गाँव का बहुत पता नहीं है लेकिन
जवाब देंहटाएंकल्पना में मुझे लग रहा जैसे देश का कोई प्रहरी गाँव लौट कर आया है उसके स्वागत में ये मन के भाव कविता के रूप में उतर आए हैं ।
बेहतरीन रचना ।।
जी दीदी , ये रचना बहुत पुरानी है | एक रिश्तेदार के बेटे के , वर्षों बाद विदेश से वापस आने की बात सुनकर लिखी थी , जब उस के आने पर गाँव की गलियों में ढेरों फूल बिछाए गए थे | रचना पर आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया से अपार हर्ष हुआ | सादर आभार आपका |
हटाएंबहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंघर आया मेरा परदेसी ---
जी, सादर आभार आदरणीय गोपेश जी |
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