जलता रहा अलाव दर्द का
भीतर यूँ ही कहीं मन में ;
शापित से कब से भटक रहे
हम जीवन के वीराने वन में !
आस के मोती चुन -चुन कर
सदियों सी हर रात बितायी हमने ,
ये दोष भरोसे का था अपने
जो यूँ ठोकर खायी हमने ;
बरबस ऑंखें बरस रही
सूखा बदला सावन में !!
अपनेपन के दावे उनके
हकीक़त नहीं फ़साने थे ,
सब अपनों को लिए थे साथ
बस एक हमीं बेगाने थे ;
पर जाने क्यों वो झाँकने लगते
मेरे मन के उजले दर्पण में ?
कहाँ किसी को कभी
इन्तजार हमारा था ?
एक भ्रम सुहाना सा था कोई
कब उनपे अधिकार हमारा था ?
फिर भी रह -रह छा जाते हैं
वो ही मेरे शब्द सृजन में !!
जलता रहा अलाव दर्द का
भीतर यूँ ही कहीं मन में !!
कहाँ किसी को कभी, इन्तजार हमारा था ?
जवाब देंहटाएंएक भ्रम सुहाना सा था कोई, कब उनपे अधिकार हमारा था ?
फिर भी रह -रह छा जाते हैं, वो ही मेरे शब्द सृजन में !!
जलता रहा अलाव दर्द का, भीतर यूँ ही कहीं मन में .....
भावनाओं का यह अलाव, जलन बहुत देता है पर मरहम नहीं। जल जाते हैं प्रेमी इनमें, तड़प मन के कोई जान भी पाता नही यह अलाव है वो, निशाँ जख्मों के कहाँ छोड़ जाता है।
आदरणीय रेणु जी, सुंदर भावपूर्ण रचना हेतु बधाई।
आदरणीय पुरुषोत्तम जी -- आपके भावपूर्ण शब्दों से मन को अपार उत्साह मिला है -- सादर आभार |
हटाएंबहुत सुंदर,भाव प्रवाह से उमड़ती हुई यह रचना मन में एक टीस सी उठाती है। दर्द का अलाव तो हर ऋतु में जलता रहता है । ना जाने क्या क्या जलकर राख हो जाता है उसमें ...
जवाब देंहटाएंआदरणीय मीना जी -- भावपूर्ण शब्दों के लिए सस्नेह आभार |
हटाएंनिमंत्रण पत्र :
जवाब देंहटाएंमंज़िलें और भी हैं ,
आवश्यकता है केवल कारवां बनाने की। मेरा मक़सद है आपको हिंदी ब्लॉग जगत के उन रचनाकारों से परिचित करवाना जिनसे आप सभी अपरिचित अथवा उनकी रचनाओं तक आप सभी की पहुँच नहीं।
ये मेरा प्रयास निरंतर ज़ारी रहेगा ! इसी पावन उद्देश्य के साथ लोकतंत्र संवाद मंच आप सभी गणमान्य पाठकों व रचनाकारों का हृदय से स्वागत करता है नये -पुराने रचनाकारों का संगम 'विशेषांक' में सोमवार १५ जनवरी २०१८ को आप सभी सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद !"एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
प्रिय ध्रुव सस्नेह आभार |
हटाएं"अलाव" बिषय आधारित रचनाओं का प्रकाशन सोमवार 15 जनवरी 2018 को किया जा रहा है जिसमें आपकी रचना भी सम्मिलित है . आपकी सक्रिय भागीदारी के लिये हम शुक्रगुज़ार हैं. साथ बनाये रखिये.
जवाब देंहटाएंकृपया चर्चा हेतु ब्लॉग "पाँच लिंकों का आनन्द" ( http://halchalwith5links.blogspot.in) अवश्य पर आइयेगा. आप सादर आमंत्रित हैं. सधन्यवाद.
आदरणीय रविन्द्र जी -- सादर आभार आपका |
हटाएंबहुत सुंदर ....
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार नीतू जी |
हटाएंवाह!!सुंंदर रचना।
जवाब देंहटाएंशुभा जी आभारी हूँ आपकी |
हटाएंबहुत बढिया भाव प्रवीण रचना..
जवाब देंहटाएंपम्मी जी सस्नेह आभार आपका --
हटाएंबहुत खूब...बहुत ही अच्छा लिखती हैं आप .. आभार ।
जवाब देंहटाएंप्रिय संजय--- आपके प्रेरक शब्द अनमोल हैं
हटाएंशानदार
जवाब देंहटाएंआदरणीय रोशन जी -- हार्दिक स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर | आपका सादर आभार |
हटाएंये अलाव जलते रहना भी तो जरूरी है ...
जवाब देंहटाएंआशा न हो तो जीवन भी कहाँ रहेगा ... प्रभावी रचना ...
आदरणीय दिगम्बर जी -- सदैव प्रेरक होते हैं आपके शब्द -- सादर आभार
हटाएंबहुत बहुत बहुत सुंदर भावाभिव्यक्ती जलता रहा अलाव का दर्द
जवाब देंहटाएंआदरणीय हार्दिक स्वागत है आपका ब्लॉग पर -- रचना की सराहना के लिए आभारी हूँ |
हटाएंकहाँ किसी को कभी -
जवाब देंहटाएंइन्तजार हमारा था ?
एक भ्रम सुहाना सा था कोई -
कब उनपे अधिकार हमारा था ?
फिर भी रह -रह छा जाते हैं
वो ही मेरे शब्द सृजन में !!
जलता रहा अलाव दर्द का -जी सुंदर भावों से
भीतर यूँ ही कहीं मन में !!!!!!!!!!!.....बहुत उत्तम रचना ।रेनू जी
सुंदर भावों से सजी सुंदर रचना के लिए बधाई ।
प्रिय दीपा जी -- आपके स्नेहासिक्त सहयोग की आभारी हूँ |
हटाएंजलता रहा अलाव दर्द का -
जवाब देंहटाएंभीतर यूँ ही कहीं मन में ;
शापित से कब से भटक रहे -
हम जीवन के वीराने वन में....बहुत ही सुन्दर सृजन आदरणीया
लाजबाब
सादर
सस्नेह आभार सखी |
हटाएंअपनेपन के दावे उनके -
जवाब देंहटाएंहकीक़त नहीं फ़साने थे ,
सब अपनों को लिए थे साथ -
बस एक हमीं बेगाने थे ;
पर जाने क्यों वो झांकने लगते -
मेरे मन के उजले दर्पण में ?
वाह बहुत ही बेहतरीन रचना रेणु जी
प्रिय अनुराधा जी सस्नेह आभार सखी |
हटाएंजलता रहा अलाव दर्द का -
जवाब देंहटाएंभीतर यूँ ही कहीं मन में ;
बहुत ही उत्कृष्ट रचना
बहुत खूब आदरणीया
हुए हरे हिया के घाव
जवाब देंहटाएंथके, हारे जीवन का दाव
दरके दर्रा दर्रा दिल का
जला अबूझ मन का अलाव!
सादर आभार विश्वमोहन जी आपकी इस सुंदर काव्यात्मक टिप्पणी का |
हटाएंजलता रहा अलाब दर्द का
जवाब देंहटाएंइस कविता को पढ़ कर बहुत अच्छा लगा
🙂😊
प्रिय नेहा जी -- आपका स्वागत है मेरे ब्लॉग पर | सस्नेह आभार |
हटाएंकुछ ऐसी ही रचनाएँ पढ़ कर ब्लोग पढना सार्थक हो जाता है
जवाब देंहटाएंआप जैसे पाठक रचना को सार्थक कर देते हैं | पुनः आभार नेहा जी |
हटाएंकब उनपे अधिकार हमारा था ?
जवाब देंहटाएंफिर भी रह -रह छा जाते हैं
वो ही मेरे शब्द सृजन में
लाजबाब...... अंतर् पीड़ा को दर्शाता तुम्हारी ये रचना हर एक दिल के आलाव को जरूर जला दिया होगा बहुत खूब ..... सादर स्नेह सखी
अत्यंत स्नेहिल उद्गारों के लिए स्नेह भरा आभार सखी कामिनी |
हटाएंरेणु दी,कहते हैं न कि कोई हमें प्यार करले झूठा ही सही। हर इंसान प्यार का भुखा हैं। अंतर पीड़ा को व्यक्त करती बहुत ही सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंप्रिय ज्योति जी -- सस्नेह आभार बहना |
हटाएंबदलते रिश्तों के गीत में
जवाब देंहटाएंकुछ नए शब्द जुट जाते हैं
गीत के नए साज गुनगुनाकर
कुछ नए अपनें साथ आ जाते हैं
रेणु दी, आपका एक नया अनुज -प्रकाश।
प्रिय अनुज प्रकाश --हार्दिक स्वागतम और अभिनन्दन है आपका इन महकते उम्मीद भरे शब्दों के साथ | सचमुच निराशा के साथ आशा की कदमताल जीवन में नये रंग भरती है | आपको सस्नेह आभार और प्यार मेरे अनुज |
हटाएंबहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति, रेणु! बिनम्ब भी बहुत प्यारा है।
जवाब देंहटाएंबिम्ब*
जवाब देंहटाएंमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है प्रिय कोकिला जी | आपके मधुर शब्दों के लिए सादर , सस्नेह आभार |
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
१६ दिसंबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
हार्दिक आभार प्रिय श्वेता 🙏🙏
हटाएंवाह!!क्या बात है प्रिय सखी रेनू !!शब्दों को इतनी खूबसूरती से पिरोती हैं आप ,भावनाएँ व्यक्त करने के लिए ।
जवाब देंहटाएंआपके स्नेह के लिए हार्दिक आभार शुभा जी 🙏🙏🙏
हटाएंये दर्द का अलाव हर दिल में जलता हैं ,कभी तो इसकी हल्की गर्माहट अच्छी भी लगती हैं पर कभी वो जलन असहनीय पीड़ा देती हैं ,सुंदर ,भावपूर्ण रचना सखी
जवाब देंहटाएंप्रिय कामिनी, अनमोल प्रतिक्रिया के लिए आभार सखी 🙏🙏
हटाएंबेहद खूबसूरत अभिव्यक्ति प्रिय रेणु जी।बहुत ही मार्मिक और भावपूर्ण प्रस्तुति।सादर नमन।
जवाब देंहटाएंप्रिय सुजाता जी, आपके शब्द अनमोल हैं। हार्दिक आभार सखी 🙏🙏
हटाएंबहुत सुंदर और भाव पूर्ण सृजन रेणु बहन, हर शब्द एहसास से लिपटा है ।
जवाब देंहटाएंपहले पढ़ने से छूट गई अब पढ़कर बहुत अच्छा लगा ।
मनभाई आपकी रचना।
आपका स्वागत है प्रिय कुसुम बहन। ये पुरानी रचना है। आपने पढ़ी बहुत खुशी हुई। सस्नेह आभार आपका 🙏🙏
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