मेरी प्रिय मित्र मंडली

गुरुवार, 18 जनवरी 2018

जी , टी . रोड पर अँधेरी रात का सफ़र --- संस्मरण --




जी , टी . रोड  पर  अँधेरी  रात   का सफ़र  ---

 दिन के प्रत्येक पहर का अपना सौन्दर्य होता है | जहाँ भोर प्रकृतिवादी कवियों के लिए सदैव ही नवजीवन की प्रेरणा का प्रतीक रही है वहीँ प्रेमातुर व्यक्तियों और प्रेमवादी विचारधारा के कवियों व साहित्यकारों के लिए रात्रि के प्रत्येक पल का अपना महत्व माना  है | रचनाकारों ने अपनी रचनाओं -- चाहे वह  कविता हो , निबंध अथवा कहानी इत्यादि-- सबमे रात्रि का बहुत भावपूर्ण वर्णन किया है | रातों में भी चांदनी रात को आम आदमी से लेकर बुद्धिजीवियों तक -- सबने खूब सराहा है और साहित्य से लेकर सिनेमा तक सबमे इसके सौदर्य को खूब स्थान मिला है | फिल्मो मे चांदनी रातों में फिल्माए गीत जनमानस में समय - समय पर खूब लोकप्रिय हुए हैं | कवियों ने गोरी के मुखड़े की तुलना चाँद से कर डाली तो गौरवर्णी नायिका को चांदनी में नहाई होने का ख़िताब देना अद्भुत कहा गया | लेकिन चांदनी रात के विपरीत उस रात्रि का भी अपना ही सौदर्य और महत्व है जो पूर्णतयः प्रकाशविहीन होती है --- जब ना चाँद होता है ना चांदनी -- | काले अंधियारे में डूबी रात में आकाश में तारे भी अपनी भरपूर ताक़त से टिमटिमाते नज़र आते है-- शायद इन रातों में उन्हें चाँद के सामने अपनी रौशनी कम हो जाने का डर नहीं होता होगा | हर पग पर व्याप्त अँधेरा कण- कण को अपार धीरज की प्रेरणा देता दिखाई देता है | ऐसी रातो में सफ़र का अलग ही आनंद है | मौन -- निस्तब्ध वातावरण में अँधेरे में लिपटी प्रकृति अलग अंदाज में प्रकट होती है | |  काली स्याह रात   में पेड़ - पौधे , खेत - खलिहान व रास्तो के किनारे बसी बस्तियां ना जाने कौन - सा जादू जगाती दिखाई पड़ती हैं |  ऐसी ही एक  स्याह रात में पिछले  साल जनवरी की कडकडाती  ठंड  के बीच - दिल्ली से करनाल तक का रोमांच से भरा अद्भुत सफर एक  अविस्मरणीय घटना  में बदल गया-- जब हम सपरिवार  दिल्ली से अपने गृहनगर  लौट रहे थे | उस  रात जी .टी . रोड  सर्द काली रात में एक पुल सरीखा नजर आ रहा था | लग रहा था मानो काली रात एक विशाल समुद्र है तो जी .टी . रोड इस समुद्र पर बंधा एक अनंत पुल -- -- इस पुल पर असंख्य छोटी बड़ी गाड़ियां विराट काफिले के रूप में उड़न -खटोलों की तरह फिसलती जाती प्रतीत हो रही थी | हमारी गाड़ी भी इस काफिले का एक छोटा सा हिस्सा बनकर गंतव्य की  ओर अग्रसर थी | रात्रि का ये   मनमोहक  मौन -मन को जादू में बांधता प्रतीत हो रहा था | घटाघोप अँधेरे में दूर मकानों में जलते बल्ब जंगल में चमकते जुगनुओं का भ्रम पैदा करते लग रहे थे तो पुराना फ़िल्मी संगीत माहौल में अलग ही जादू जगा तन - मन को रूहानी आनंद से भर रहा था--उस पर सफ़र में  पूरे   परिवार के    साथ  मन को  ख़ुशी  की  अनोखी  गर्माहट मिल रही थी | पर हर सफर की मंजिल होती है | वैसे ही यह सफ़र भी अपनी मंजिल पर जाकर थम गया पर हमेशा के लिए यादगार बनकर रह गया| शायद ऐसे ही किसी सफर के लिए किसी शायर ने ये पंक्तियाँ लिखी होगी ------ 
इस सफर में बात ऐसी हो गई --
हम ना सोये रात थककर सो गयी !!!!!!!!!!!!

स्वलिखित --रेणु
चित्र -- गूगल से साभार ------------------------
  टिप्पणी -- गूगल से साभार 
आपकी विलक्षण कल्पना शक्ति को प्रणाम!!! अब एक दूसरी काली रात में चले जहां बंदीगृह में बंद स्वतन्त्रता सेनानी को जब कोयल की कूक सुनायी देती है तो उसके मनोभावों को अपने शब्दों से अद्भुत चित्र खींचा है माखन लाल चतुर्वेदी ने! :-
काली तू, रजनी भी काली,/
शासन की करनी भी काली/
काली लहर कल्पना काली,/
मेरी काल कोठरी काली,/
टोपी काली कमली काली/,
मेरी लोह-श्रृंखला काली,/
पहरे की हुंकृति की व्याली/,
तिस पर है गाली, ऐ आली!/

इस काले संकट-सागर पर/
मरने की, मदमाती!/
कोकिल बोलो तो!/
अपने चमकीले गीतों को/
क्योंकर हो तैराती!/
कोकिल बोलो तो!/
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43 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ! खूबसूरती से बयान किया है अपने अनुभव को। ऐसे सफर की यादें हमेशा ताजा रहती हैं ।

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  2. वाह्ह्ह....बेहद खूबसूरत....आपका संस्मरण पढ़ते हुये हम भी उस यादगार सफर का हिस्सा बन गये,खो गये बहुत सुंदर लिखा आपने रेणु जी।

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    1. प्रिय श्वेता बहन -- बहुत अच्छा लगा की आपने मेरी गद्य रचना को समय दिया | सस्नेह आभार --

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  3. बहुत खूबसूरती से यात्रा संस्मरण को आपने चांद तारों की घटती बढ़ती चांदनी जी,टी रोड की कभी ना रुकने वाली रफ्तार, समुद्र की हलचल ,कवि , बुद्धिजीवियों के रात को लेकर अहसास सारा कुछ आपने इस यात्रा वृत्तान्त में समेट दिया । और सबसे अच्छी बात ये रही कि कहीं कहीं कविता की झलकियां भी आ रही है जो की रचना को और भी मुखर रुप दे रहे हैं । बस पढ़ती ही चली गई, बधाई इतनी अच्छी संस्मरण को साझा करने के लिए लिए. ्

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    1. प्रिय अन्नु -- आपने लेखपर उसे और भी बेहतरीन ढंग से परिभासित किया | आभारी हूँ और अभिभूत आपकी उत्साहित कर देने वाली टिपण्णी से |

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  4. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'शनिवार' २० जनवरी २०१८ को लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

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  5. जी टी रोड के अनुभव को मनमोहन शब्दों में बाँध लिया ....
    बहुत ख़ूब ....

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  6. वाह.. बहुत खूबसूरत यात्रा संस्मरण..
    सच.. मौन -- निस्तब्ध वातावरण में अँधेरे में लिपटी प्रकृति अलग अंदाज में प्रकट होती है।

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    1. प्रिय पम्मी बहन आपके शब्द अनमोल हैं -- सस्नेह आभार --

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  7. आपकी लिखी रचना "मित्र मंडली" में लिंक की गई है https://rakeshkirachanay.blogspot.in/2018/01/53_22.html पर आप सादर आमंत्रित हैं ....धन्यवाद!

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  8. बहुत खूब... रेणु ,एक सुहाना सफर और उसमे पुरे परिवार का साथ ,सफर यादगार होना ही था और उस पर तुम्हारी ये रूमानी सोच ,सब मिलकर इतना कमाल का शमा बंधा कि हम भी उस सफर के साथी बन गए अति सुंदर...

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    1. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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    2. प्रिय कामिनी -- सस्नेह आभार सखी | यूँ तो इस रास्ते पर पिछले दो साल में चार पांच बार सपरिवार सफर कियाहै पर वो पहला सफर जो एकदम काली रात और कडकडाती सर्दी में था , यादगार बनकर रह गया | ये शब्दनगरी पर मेरा तीसरा लेख था जिसे पाठको नें उस मंच पर खूब पढ़ा | उस दिन कोई विषय नहीं सूझ रहा था सो मुझे पिछली रात के अद्भुत अनुभव पर लिखने का मन हो गया और लिख दिया | सस्नेह --

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  9. वाह बहुत सुंदर वर्णन किया आपने सफ़र का 👌

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  10. वाह बहुत सुंदर वर्णन किया आपने सफ़र का रेणु जी

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  11. बहुत ही रोचक प्रस्तुतिकरण

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    1. आदरणीय लोकेश जी आभार से परे है आपका स्नेहिल सहयोग | बस सस्नेह नमन |

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  12. अति सुन्दर चित्रण कर दिया रेणु की कलम ने स्याह रात्रि का, मैंने न जाने कितने सफल किते अंधेरी रात में आज तक गुमसुम चुप न शब्द ने ही आकर आहट न दी, बधाई आपको और विश्व मोहन जी की बहुत खूबसूरत टिप्पणी को और जितने टिप्पणी कार हैं इस पोस्ट पर उनसे पता चल रहा है कि रचना खासमखास है, यही सफलता होती है लेखनी की ।

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    1. नमस्ते दीदी 🙏🙏
      मेरी इस पुरानी पोस्ट को आपने इतने मनोयोग से पढ़कर प्रतिक्रिया दी , जिसके लिए आपका हार्दिक आभार। और सभी प्रबुद्ध रचनाकारों ने सचमुच मुझे बहुत प्रोत्साहित किया जिसके कारण उनकी सदैव शुक्रगुजार हूं। एक बार फिर आभार इस छोटे से लेख पर उपस्थित हो मुझे धन्य करने के लिए🙏🙏🌷🌷

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  13. दृश्य के दर्शन करा दिए,सुंदर भूमिका से शुरूकर सुंदर प्रस्तुति। बहुत अच्छी लगी।

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    1. प्रिय जितेन्द्र जी, सबसे पहले मेरे ब्लॉग पर आपका स्वागत है। आपने यहां आकर प्रतिक्रिया दी जिसके लिए हार्दिक आभार 🙏🌷💐💐💐

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    1. सस्नेह आभार और अभिनंदन प्रिय भारती जी 🙏🙏🌷🌷

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  15. वाह!,सखी रेणु जी ,खूबसूरत संस्मरण ।

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    1. बहुत बहुत आभार और अभिनंदन प्रिय शुभा जी 🙏🙏🌷🌷

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  16. वाह !!!! सच है कि लोगों ने चांदनी रात पर बहुत लिखा है ।स्याह रात या अमावस को केवल दुःख दर्द से जोड़ा गया । लेकिन तुम जैसे रचनाकार स्याह रात में भी जादू का असर महसूस करते हैं और संस्मरण से दूसरों को भी सम्मोहित कर देते हैं । बहुत खूब । 👌👌👌👌

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    1. प्रिय दीदी, मेरे पुराने लेख को आपने जिस मनोयोग से पढ़कर प्रतिक्रिया दी,उसके आभारी हूं। आपके मधुर शब्द अनमोल हैं 🙏🙏❤️❤️🌷🌷

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  17. बहुत सुंदर लाजवाब संस्मरण 💐👌
    कभी रातें रुलाती हैं ।
    कभी रातें हंसाती हैं ।।
    ये रातें डालकर झूला
    कभी हमको झुलाती हैं ।
    कभी एक पल ही कटना
    ये बड़ा मुश्किल हैं कर देतीं
    कभी अंबर के तारों संग
    मधुर ये गीत गाती हैं ।।
    अरे मन तू सदा रातों में
    खुश रहना सदा मेरे,
    कि खुशियां साथ हों तो
    रात काली मुस्कुराती हैं ।।
    ऐसे सुंदर सराहनीय संस्मरण को साझा करने के लिए आपका आभार ।
    नमन और वंदन 💐💐👏👏

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    1. प्रिय जिज्ञासा जी, मेरे लेख के गद्य को आपने जिस कुशलता से सुन्दर रचना के रूप में पद्य में बदला उससे निशब्द हूं---

      खुशियां साथ हों तो
      रात काली मुस्कुराती हैं ।।
      सच में खुशी उजालों से नहीं मन की खुशी से होती है। जहां अपने साथ हों काली रातें भी मुस्कुरा उठती हैं जीवन में आह्लाद भरने के लिए। इस सुन्दर काव्यात्मक प्रतिक्रिया से रचना को धन्य करने के लिए हार्दिक आभार और अभिनंदन आपका 🙏❤️❤️🌷🌷

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  18. स्याह काली रात और परिवार के साथ यात्रा वृतांत!शब्द शब्द में सम्मोहन सा जादू निःशब्द हूँ आज भी दोबारा पढ़कर...
    वाह!!!
    बस वाह!!!
    हमेशा से बहुत ही लाजवाब।

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    1. रचना पर आपकी दुबारा उपस्थिति के साथ इस स्नेहासिक्त प्रतिक्रिया
      से अपार हर्ष हुआ प्रिय सुधा जी जिसके लिए कोटि आभार और अभिनंदन आपका 🙏❤️❤️🌷🌷

      हटाएं

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