था पतझड़ सा नीरस जीवन
आये बसंत बहार से तुम ,
सावन भले भर -भर बरसे
सौंधी पहली बौछार से तुम |
मन ये कितना अकेला था
एकाकीपन में खोया था ,
किसी ख़ुशी का इन्तजार कहाँ
बुझा - बुझा हर रोयाँ था ;
बरसे सहसा तपते मन पे
शीतल मस्त फुहार से तुम !
मधु सपना बन ठहर गए
थकी मांदी सी आँखों में ,
हो पुलकित मन ने उड़ान भरी
थकन बसी थी पांखोंमें ;
उल्लास का ले आये तोहफा -
मीठी मन की मनुहार से तुम !!
चिर विचलित प्राणों में साथ
आन बसे संयम से तुम ,
कोई दुआ हुई सफल मेरी
बने घाव पे मरहम से तुम ;
मन के मौसम पलट गये
छाये निस्सीम विस्तार से तुम !!
वाह्ह्ह...लाज़वाब...बहुत सुंदर... बसंत के मौसम की तरह सुंदर कविता....हृदय की कोमल पंखुड़ियाँ प्रेम की सुगंध में भीगकर मुस्काने लगी।
जवाब देंहटाएंप्रिय श्वेता जी -- अनमोल हैं आपके स्नेह भरे शब्द | सस्नेह आभार |
हटाएंथा पतझड़ सा नीरस जीवन - आये बसंत बहार से तुम ,
जवाब देंहटाएंसावन भले भर -भर बरसे - पहली सौंधी बौछार से तुम...
बेहतरीन रचना।
सच कहिए तो कविता का यह भाव और यही प्रवाह मुझे सबसे ज्यादा पसंद है और आपकी इस रचना में वह सब है जो मुझे बेहद प्रभावित कर गया। असंख्य शुभकामनाएँ और साधुवाद आदरणीय रेणु जी।
आदरणीय पुरषोत्तम जी -- आपको रचना पसंद आई -- मेरा लेखन सफल हुआ | आपकी सराहना से रचनात्मकता को नयी प्रेरणा मिलती है | सादर आभार |
हटाएंआपकी लेखनी असाधारण है और प्रेरक भी। मै तो बस अनुसरणकर्ता हूँ आपका। शुभकामनाएं ।
हटाएंबहुत उम्दा
जवाब देंहटाएंआदरणीय लोकेश जी -- सादर आभार --
हटाएंआदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २२ जनवरी २०१८ को लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंप्रिय ध्रुव-- आपका सहयोग आभार से परे है |
हटाएंआदरणीया रेणु जी अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है आपको यह सूचित करते हुए कि ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २२ जनवरी २०१८ को आप हमारी पाठकों की पसंद अंक की पाठिका चयनित हुई हैं। आप सादर आमंत्रित हैं "शब्द नगरी के दिग्गज़" विशेषांक में ! आभार "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
जवाब देंहटाएंप्रिय ध्रुव --इस सम्मान के लिए आभारी हूँ | मैं मूलतः पाठिका ही हूँ |
हटाएंसुंंदर रचना..
जवाब देंहटाएंप्रिय पम्मी बहन-- सादर सस्नेह आभार --
हटाएंअतिसुन्दर
जवाब देंहटाएंबसंत पंचमी के आगमन और प्रेम के मनुहार का यह मौसम सुहावना होता है
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
हार्दिक शुभकामनाएं
सादर
सादर आभार आपका -- आदरणीय सर --
हटाएंबेहतरीन,रससिक्त, भावों की रसधार
जवाब देंहटाएंबहाती सुंदर रचना,अति उत्तम
सस्नेह आभार सखी |
हटाएंचिर विचलित प्राणों में साथी -
जवाब देंहटाएंआन बसे संयम से तुम ,
कोई दुआ हुई सफल मेरी -
बने घाव पे मरहम से तुम ; वाह बहुत ही बेहतरीन रचना
सस्नेह आभार प्रिय अनुराधा जी |
हटाएंपतझड़ सा नीरस जीवन -
जवाब देंहटाएंआये बसंत बहार से तुम ,
सावन भले भर -भर बरसे -
सौंधी पहली बौछार से तुम |
ये मन कितना अकेला था. ..बहुत ही सुन्दर सखी
सादर
सस्नेह आभार सखी |
हटाएंवाह, अंतस के अहसासों की बहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति...
जवाब देंहटाएंसुस्वागतम और सादर आभार आदरणीय सर | आपकी सराहना अनमोल है |
हटाएंबहुत ही सुंदर
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय लोकेश जी |
हटाएंहर बंध लाज़बाब. निश्छल. सरल. प्रांजल. तरल.
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय विश्वमोहन जी |
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
२५ मार्च २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सस्नेह आभार प्रिय श्वेता |
हटाएंये मन कितना अकेला था
जवाब देंहटाएंएकाकीपन में खोया था ,
किसी ख़ुशी का इन्तजार कहाँ
बुझा - बुझा हर रोयाँ था ;
बरसे सहसा तपते मन पे
शीतल मस्त फुहार से तुम !
वाह!! रेणु जी कमाल की रचना वसंत सी मनभावनी प्रेम रस में ओतप्रोत...।बहुत ही लाजवाब... बार बार पठकर भी मन नहीं भरता.....। बहुत सारी शुभकामनाएं एवं बधाई।
प्रिय सुधा बहन -- आपके स्नेहिल शब्द मेरी साधारण रचना को असाधारण बना देते हैं | ये मेरी रचना का श्रृंगार हैं | आभार नहीं मेरा प्यार |
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