मेरी प्रिय मित्र मंडली

शनिवार, 2 फ़रवरी 2019

चाँद हंसिया रे !

 

चाँद हंसिया   रे  ! सुन  जरा !
ये कैसी  लगन जगाई तूने ?
 कब के जिसे भूले बैठे थे 
फिर उसकी याद दिलाई तूने !!

गगन में अकेला बेबस  सा  
 तारों से  बतियाता  तू ,
 नीरवता के  सागर में   
  पल - पल गोते खाता  तू  ,
कौन खोट  करनी में आया ? \
ये बात ना कभी  बताई तूने !!

किस जन्म किया  ये महापाप ?
शीतल   होकर  भी सहा   चिर -संताप ,
 दूर सभी अपनों से रह  
 ढोया सदियों ये कौन शाप ?
नित -नित घटता -बढ़ता रहता
नियति कैसी लिखवाई तूने  ? 

तेरी रजत चांदनी मध्यम सी  
 जगाती मन में अरमान बड़े ,
  यूँ ही    सजा बैठा सपने जो  
  हैं भ्रम- से ,करते हैरान बड़े,
 मुझ -सा   तू भी   है   तन्हा 
 ना जानी पर  पीर पराई  तूने !! 


स्वरचित -- रेणु
चित्र -- गूगल से साभार 
-----------------------------------------------
धन्यवाद शब्द नगरी 

रेणु जी बधाई हो!,

आपका लेख - (चाँद हंसिया रे ! ) आज के विशिष्ट लेखों में चयनित हुआ है | आप अपने लेख को आज शब्दनगरी के मुख्यपृष्ठ (www.shabd.in) पर पढ़ सकते है | 

49 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खूब....
    बहुत सुंदर रचना आदरणीया।

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  2. किस जन्म किया ये महापाप ?
    शीतल होकर भी सहा चिर संताप ;
    दूर सभी अपनों से रह -
    ढोया सदियों ये कौन शाप ?
    नित -नित घटता -बढ़ता रहता
    नियति कैसी लिखवाई तूने ?

    रेणु दी इस भावपूर्ण रचना का हर शब्द हृदय को स्पर्श कर रहा है।
    वैसे तो "शशि" भी नियति से यही सवाल कर रहा है।
    सुबह का प्रणाम।

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    1. प्रिय शशि भाई - आपकी वेदना बखूबी समझती हूँ पर कुछ कह पाने में
      खुद को असमर्थ पाती हूँ | कुछ प्रश्नों के उत्तर नियति के पास ही होते हैं | सस्नेह आभार |

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  3. शुभ प्रभात सखी
    बहुत ही सुन्दर काव्य सृजन किया है आप ने, लाजबाब . ... ह्रदय को स्पर्श करती रचना ..
    चाँद हंसिया रे ! सुन जरा !
    ये कैसी लगन जगाई तूने ?
    कब के जिसे भूले बैठे थे -
    फिर उसकी याद दिलाई तूने !
    आभार
    सादर

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  4. बहुत ही बेहतरीन रचना रेणु जी

    जवाब देंहटाएं
  5. गगन में अकेला बेबस सा -
    तारों से बतियाता तू
    नीरवता के सागर में -
    पल - पल गोते खाता तू ;
    कौन खोट करनी में आया ? \
    ये बात ना कभी बताई तूने !!

    वाह बेहतरीन।
    भाषा पर आपकी पकड़ और भावो की समझ परवान पर हैं।आभार

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय जफर जी -- रचना के मर्म को पहचानने के लिए हार्दिक आभार |

      हटाएं
  6. किस जन्म किया ये महापाप ?
    शीतल होकर भी सहा चिर संताप ;
    दूर सभी अपनों से रह -
    ढोया सदियों ये कौन शाप ?
    बेहतरीन.... लाजबाब....., क्या तारीफ करू शब्द नहीं मेरे पास ,कमाल की सृजन शक्ति हैं तुम्हारी सखी ,ढेर सारा स्नेह तुम्हे

    जवाब देंहटाएं
  7. किस जन्म किया ये महापाप ?
    शीतल होकर भी सहा चिर संताप ;
    दूर सभी अपनों से रह -
    ढोया सदियों ये कौन शाप ?
    बेहतरीन.... लाजबाब....., क्या तारीफ करू शब्द नहीं मेरे पास ,कमाल की सृजन शक्ति हैं तुम्हारी सखी ,ढेर सारा स्नेह तुम्हे

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय कामिनी -- तुम्हारी प्रशंसा अभिभूत कर जाती है | ये स्नेह अनमोल है प्रिय सखी |सस्नेह आभार |

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  8. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    ४ फरवरी २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    उत्तर
    1. पांच लिंक मंच की सदैव आभारी रहूंगी प्रिय श्वेता |सस्नेह आभार |

      हटाएं
  9. वाह!! प्रिय रेनू बहन ,बहुत ही खूबसूरत सृजन ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय शुभा जी -- आपका स्नेह अनमोल है सखी | सस्नेह आभार |

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  10. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (04-02-2019) को चलते रहो (चर्चा अंक-3237) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  11. ब्लॉग बुलेटिन की दिनांक 03/02/2019 की बुलेटिन, " मजबूत रिश्ते और कड़क चाय - ब्लॉग बुलेटिन “ , में आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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    1. प्रिय शिवम जी -- आपके मंच से जुड़ना मेरा सौभाग्य है | मेरी रचना को अपने लिंक संयोजन में लेने के लिए हार्दिक आभार |

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  12. प्रिय पम्मी जी -- ह्रदय से आभार |

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  13. चाँद जो साक्षी रहता है तन्हाई के, जुदाई के हर पल का ... और समय के साथ
    घटता है लुप्त भी हो जाता बाई पर फिर आता है ... जैसे किसी की याद ...
    तनहा है तभी तन्हाई का अहसास जगाता है ...
    बहुत ही सुंदर पंक्तियाँ है .।। प्रेम, जुदाई और तन्हाई के रंग कविता को शीतलता के साथ साथ
    तपिश भी दे रहे हैं ... बहुत लाजवाब ...

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    उत्तर
    1. आदरणीय दिगम्बर जी --रचना की सारगर्भित समीक्षा के लिए सादर आभार |

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  14. तन्हा चाँद की तन्हाई, घटना-बढ़ना ,फिर लुप्त ही हो जाना...अभिशाप सा झेलता शीतल होकर संताप सहता...
    बहुत ही लाजवाब सृजन सखी...सीधे दिल तक उतरते हर शब्द... और फिर मुझ सा तू भी है तन्हा... चरमोत्कर्ष पर पहुँचाना... वाहवाह...बहुत ही सराहनीय....।
    अद्भुत सृजन के लिए बहुत बहुत बधाई रेनु जी !सस्नेह शुभकामनाएं।

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    उत्तर
    1. प्रिय सुधा बहन -- आपके प्रेरक शब्दों का कोई सानी नहीं | सस्नेह आभार सखी |

      हटाएं
  15. तेरी रजत चांदनी मध्यम सी -
    जगाती मन मेंअरमान बड़े ,
    यूँ ही ये सजा बैठा सपने जो -
    हैं भ्रम से -करते हैरान बड़े
    मुझ सा - तू भी है तन्हा-
    ना जानी पर पीर पराई तूने !!!!!!!!!!
    चाँद की तन्हाई का मार्मिक वर्णन कर डाला है आपने। बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएं आदरणीय रेणु जी।

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    1. आदरणीय पुरुषोत्तम जी -- रचना आपको पसंद आई जानकर संतोष हुआ | हार्दिक आभार और शुक्रिया |

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  16. बहुत सुन्दर रेनू जी.
    चाँद से आपकी शिक़ायत जायज़ है. कभी वो अपने रूप बदल-बदल कर हमको सताता है तो कभी उसकी चांदनी हमारी विरह-वेदना बढ़ाती रहती है और तो और-
    चांदनी रात का मिजाज़ न पूछ, हम ग़रीबों के घर नहीं आती.
    लेकिन पता नहीं क्यूँ, यह आसमानी दुश्मन हमको बहुत प्यारा लगता है.
    आइए, मिलजुल कर इसका दुःख दूर करने की दुआ करते हैं.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय गोपेश जी -- आपने सच कहा ये चाँद बहुत प्यारा है -पर इसने जितना[ शायद अनजाने में ] कोमल मन लोगों को सताया है उतना ही अपना प्रशस्ति गान भी करवाया है | हर्ष हो विषाद कवियों ने चाँद को खूब महत्व दिया और अपनी रचनाओं के जरिये इसकी महिमा बढाई | आपके मधुर शब्दों के लिए सादर आभार |

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  17. वाह ! बेहद सुन्दर अप्रतिम अनुपम रचना रेनू जी ! मन विभोर हो गया ! सप्रेम बहुत बहुत आभार आपका !

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    उत्तर
    1. आदरणीय साधना जी -- हार्दिक आभार आपका | आपके मधुर , प्रेरक शब्दों से आपार हर्ष हुआ |

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  18. गगन में अकेला बेबस सा -
    तारों से बतियाता तू
    नीरवता के सागर में -
    पल - पल गोते खाता तू ;
    कौन खोट करनी में आया ? \
    ये बात ना कभी बताई तूने !!... बहुत सुंदर मानवीकरण चांद का, तारों के संग। फिर भी चांद ऐकान्तिक निस्संग।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय विश्वमोहन जी -- आपके शब्द सदैव ही प्रेरणा देते हैं | सादर , सस्नेह आभार |

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  19. चाँद भी मुस्कुरा देता होगा इन शिकायतों को सुनकर... यह कविता आपकी बेहतरीन कविताओं में से एक है। बार बार पढ़ने को मन करे, ऐसा सृजन है। अभी लिखना कम करके अधिकतर ब्लॉग्स की पुरानी रचनाओं को पढ़ रही हूँ। बहुत सा स्नेह।

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    उत्तर
    1. प्रिय मीना बहन - रचना पर आपके भावपूर्ण विश्लेषण से मन आह्लादित है | रचना आप जैसी प्रबुद्धा को भाई मेरा सौभाग्य !!!!!! सस्नेह आभार सखी |

      हटाएं
  20. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (15-04-2019) को "भीम राव अम्बेदकर" (चर्चा अंक-3306) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    - अनीता सैनी

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    उत्तर
    1. प्रिय अनीता आपकी आभारी हूँ इस स्नेहिल सहयोग के लिए |

      हटाएं
  21. उत्तर
    1. आदरणीय सर आपका हार्दिक स्वागत है मेरे ब्लॉग पर |

      हटाएं
  22. शीतल होकर भी सहा चिर संताप ;
    दूर सभी अपनों से रह -
    ढोया सदियों ये कौन शाप ?
    बेहतरीन.... लाजबाब

    जवाब देंहटाएं

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