गूँजी मातमी धुन
लुटा यौवन .
लौटा माटी का लाल
माटी में मिल जाने को !
तन सजा तिरंगा !
इतराया था एक दिन
तन पहन के खाकी
चला वतन की राह
ना कोई चाह थी बाकी
चुकाने दूध का कर्ज़
पिताका मान बढाने को !
लौटा माटी का लाल
माटी में मिल जाने को !!
तन सजा तिरंगा !
रचा चक्रव्यूह
शिखंडी शत्रु ने
छुपके घात लगाई
कुटिल चली चाल
मांद जा जान छिपाई
पल में देता चीर
ना आया आँख मिलाने को !
लौटा माटी का लाल
माटी में मिल जाने को !!
तन सजा तिरंगा !
उमड़ा जन सैलाब
विदा की आई बेला ,
हिया विदीर्ण महतारी आज
आंगन ये कैसा मेला ?
सुत सोया अखियाँ मूंद
जगा ना धीर बंधाने को;
लौटा माटी का लाल -
माटी में मिल जाने को ;
तन सजा तिरंगा !!!
माटी में मिल जाने को ;
तन सजा तिरंगा !!!
पुलवामा के वीर शहीदों को अश्रुपूरित नमन !!!!!!!!!
स्वरचित -- रेणु--
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जवाब देंहटाएंआंगन ये कैसा मेला ?
सुत सोया आँखें मूंद
जगा ना धीर बंधाने को;
लौटा माटी का लाल -
माटी में मिल जाने को !!!!!!!
जी दी
इन 42 घरों के आंगन में शोकाकुल लोग यह मेला क्यों लगाये हुये हैं। अभी तो बसंत है आगे फगुआ भी,फिर यह मातम क्यों?
राजनीति के विधात कुछ तो बोले अब ,क्यों विधवा विलाप कर रहे हैं वे भी।
प्रणाम ,आपकी रचना के माध्यम से इन वीरों को नमन।
जी भैया -- यही प्रश्न है जिसका उत्तर नहीं मिल पा रहा | घर आब्ग्न के रौशन दीपक बुझाने वाले आतंक के आक़ा काश उन घर आंगन के सन्नाटों का निशब्द शोर सुन पाते जहाँ ये मातम स्थायी बसेरा बनाकर बैठ गया है | सस्नेह आभार आपकी इस भावपूर्ण टिप्पणी का |
हटाएंनमन इस श्रृद्धा पूर्ण काव्यांजलि से उन वीर शहीदों को!
जवाब देंहटाएंसादर आभार आदरणीय विश्वमोहन जी | वीरों को हर पल वन्दन और नमन !|
हटाएंचा चक्रव्यूह
जवाब देंहटाएंशिखंडी शत्रु ने
छुपके घात लगाई
कुटिल चली चाल
मांद जा जान छिपाई
पल में देता चीर
ना आया आँख मिलाने को !
बिलकुल सही सखी ,इन पीठ पे वार करने वाले नपुंशक हैं,वैसे भी जब अपने ही घर में छुपे जयचंद को क्या कहे ,सत सत नमन हैं वीरो को ,हम उन्हें सिर्फ अश्रुरूपी श्रधांजलि ही दे सकते हैं।
प्रिय सखी कामिनी --सही कहा आपने | आतंकवाद केये प्रणेता
हटाएंऔर पीठ पर वार करने वाले यदि इन वीरों के गुनाहगार हैं साथ में इंसानियत के भी | सस्नेह आभार आपका सखी |
उमड़ा जन सैलाब -
जवाब देंहटाएंविदा की आई बेला ,
हिया विदीर्ण महतारी आज
आंगन ये कैसा मेला ?
सुत सोया अखियाँ मूंद
जगा ना धीर बंधाने को;
लौटा माटी का लाल -
माटी में मिल जाने को !!!!!!!नमन
श्रृद्धा पूर्ण काव्यांजलि से उन वीर शहीदों को!
सादर
सस्नेह आभर प्रिय अनीता जी |
हटाएंउमड़ा जन सैलाब -
जवाब देंहटाएंविदा की आई बेला ,
हिया विदीर्ण महतारी आज
आंगन ये कैसा मेला ?
सुत सोया अखियाँ मूंद
जगा ना धीर बंधाने को;
लौटा माटी का लाल -
माटी में मिल जाने को .... मार्मिक अभिव्यक्ति
सदर सस्नेह आभार वन्दना जी |
हटाएंबहुत ही मर्मस्पर्शी.... हृदयस्पर्शी ....समसामयिक रचना
जवाब देंहटाएंलौटा माटी का लाल माटी में मिल जाने को....सही कहा माटी का तन माटी में मिला
उसे अब किसी से क्या गिला...
जो गुजर रही अपनो पर उसे वे ही समझ सकते हैं ...
बाकी सब तो दो दिन दो शब्द सांत्वना के कह सकते हैं...
अश्रुपूरित श्रद्धांजलि शहीदों को।
सस्नेह आभार प्रिय सुधा बहन |
हटाएंबहुत ही हृदयस्पर्शी रचना प्रिय सखी रेनू जी ।
जवाब देंहटाएंसस्नेह आभार शुभा बहन |
हटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन आइये बनें हम भी सैनिक परिवार का हिस्सा : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर -- सादर आभार मेरी पोस्ट को अपने बुलेटिन का हिस्सा बनाने के लिए |
हटाएंबहुत मर्मस्पर्शी। नमन अमर शहीदों को...
जवाब देंहटाएंआदरणीय सर -- सादर आभार और नमन |
हटाएंजो गुजर रही अपनो पर उसे वे ही समझ सकते हैं ...
जवाब देंहटाएंबाकी सब तो दो दिन दो शब्द सांत्वना के कह सकते हैं...
अश्रुपूरित श्रद्धांजलि शहीदों को।
प्रिय संजय जी -- आपने सच लिखा इस वेदना को बस भुक्तभोगी समझ सकता है या फिर ईश्वर | सस्नेह आभार अनमोल प्रतिक्रिया के लिए |
हटाएंनमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
गुरुवार 28 फरवरी 2019 को प्रकाशनार्थ 1322 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
सधन्यवाद।
हार्दिक आभार रवीन्द्र जी |सादर --
हटाएंबेहद मर्मस्पर्शी रचना
जवाब देंहटाएंसादर
सस्नेह आभार प्रिय रविन्द्र जी |
हटाएंहृदय को झकझोर तार तार करती बानगी रेनू बहन।
जवाब देंहटाएंवीरों की आहुति पर मन रो रहा है। पर निस्तब्ध निःसहाय हैं हम
बस आगे के लिये नजर रखे बैठे हैं ।
उनके परिवारों को शक्ति और हौसला देने लायक
परिस्थितियाँ बने यही भावना है।
बहुत सुंदर प्रस्तुति
आपने सही कहा कुसुम बहन | आपकी टिप्पणी उन भावनाओं को विस्तार देती है जो मैं लिख नहीं पाती | शहीद के परिवार की वेदना कह पाने में मेरी लेखनी सक्षम नहीं | बस समय ही इस पीड़ा का मरहम है | ईश्वर उन्हें शक्ति दे |
हटाएंनमन के इन स्वरों में मेरा भी मूक शब्द ... ह्रदय से लिखी है वेदना की ये घड़ी ... धन्य है वीर सपूत जो माँ के लिए मर मिटे ... मौन श्रधांजलि मेरी ...
जवाब देंहटाएंआदरणीय दिगम्बर जी सादर आभार आपका |
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (26-07-2019) को "करगिल विजय दिवस" (चर्चा अंक- 3408) पर भी होगी।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
आप भी सादर आमंत्रित है
….
अनीता सैनी
प्रिय अनीता , चर्चा मंच पर इस भावपूर्ण चर्चा का हिस्सा होना बहुत बड़ा सौभग्य है | हार्दिक आभार और प्यार |
हटाएंउमड़ा जन सैलाब -
जवाब देंहटाएंविदा की आई बेला ,
हिया विदीर्ण महतारी आज
आंगन ये कैसा मेला ?
सुत सोया अखियाँ मूंद
जगा ना धीर बंधाने को;
लौटा माटी का लाल -
माटी में मिल जाने को ;
तन सजा तिरंगा !!!!!!! मर्मस्पर्शी प्रस्तुति सखी
प्रिय अनुराधा बहन, आपके स्नेहिल शब्दों के लिए सस्नेह आभार सखी
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (14-02-2020) को "प्रेम दिवस की बधाई हो" (चर्चा अंक-3611) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
आँचल पाण्डेय
आदरणीया रेणु जी सर्वप्रथम आपको इस उत्कृष्ट सृजन हेतु मेरा कोटिश नमन! हमारे देश के वीर सपूत निरंतर सीमा पर शहीद हो रहे हैं यह गंभीर विषय है आख़िर क्यों? आख़िर ये सत्ताधारी अपनी सुरक्षा हेतु बुलेट प्रूफ जैकेट पहनते हैं पर जवानों की सुरक्षा के नाम पर ये स्वार्थी नेता कन्नी काटते नज़र आते हैं। पुलवामा बम विस्फोट के पीछे भी कौन-सी सियासत छिपी है यह तो वक़्त ही बतायेगा। जनतंत्र की यह उदासीनता न जाने इस देश को किस गहरे अंधकार में लेकर जायेगी परन्तु आपकी यह रचनाधर्मिता अवश्य ही लोगों के हृदय को स्पर्श करेगी। सादर 'एकलव्य'
जवाब देंहटाएंप्रिय ध्रुव , रचना पर इस सारगर्भित और चिंतनपरक समीक्षा के लिए हार्दिक आभार | आपने बहुत ही यथोचित प्रश्न उठाया है ,कि आखिर क्यों इन वीर जवानों की
हटाएंसुरक्षा से इस तरह खिलवाड़ हो रहा है ? क्या हमारे देश में तकनीकी साधनों कीकमी है ? अथवा कोई आर्थिक तंगी है ? नहीं !असल में ये युवा ऐसे आम घरों से होते हैं ,
जिनके परिवारों की दाल- रोटी उनकी इस सरकारी नौकरी से चलती है | इसके साथ ही देशभक्ति के सुसंस्कार से बंधे युवा वर्दी और देश भक्ति के शौक में लाखों की नौकरी छोड़कर
सेना में भर्ती हो जाते हैं जहाँ उस दफतर की नौकरी की तुलना में ढेरों संघर्ष है
| नेताजीओं के बच्चे इस तरह की नौकरी करते और देश के नाम पर शहीद होते आज तक नहीं सुने गए , नहीं तो बुलेट प्रूफ जैकेट की परम्परा , सेना में कब की स्थायी हो जाती | और पुलवामा बम विस्फोट की सियासत किसकी थी ये जानकर भी सरकार , चालीस घरों के उन रौशन चिरागों को वापिस लाने में सक्षम तो नहीं हो जायेगी | बस ईश्वर से दुआ है , कि ऐसी दुर्घटनाओं की पुनरावृति ना हो | जनतंत्र आत्ममुग्धता की स्थिति में हैं | किसी घटना पर थोड़ी देर के लिए जागता है , फिर सो जाता है |पिछले साल टी वी पर शहीद सैनिकों के परिवारों को बिलखते देख मन विदीर्ण हो गया और इस रचना के रूप में अपनी बात कह सकी |वैसे तो उनके दुःख और संताप को कौन सी कलम लिख सकती है ? सस्नेह --
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शुक्रवार 14 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसादर आभार यशोदा दीदी |
हटाएंआदरणीया मैम ,
जवाब देंहटाएंपुलवामा के शहीदों को समर्पित , बहुत भावपूर्ण रचना। अपनी वीर संतानों को खोने वाले परिवारों का दुःख तो जीवन भर समाप्त नहीं होगा। बहुत दुखद है की हमारे यह वीर सैनिक लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त नहीं हुए , शत्रुओं ने छल से इनकी हत्या की , बिना कोई युद्ध या मुठभेड़।
पर जो बात रह रह कर मन में आती है और बहुत पीड़ा देती है , वह ये की आज तक हम ने जितने भी सैनिकों के शहीद होने का समाचार सुना है, उन सब के परिवार आर्थिक रूप से निशक्त होते हैं जिनका एक मात्र संबल उनके परिवार का यह वीर सदस्य होता है। जब टी.वी पर किसी भी शहीद का समाचार आता है तो उनकी पत्नी या माँ रो रो क्र यही पूछ रही होती है की उनका पेट कौन भरेगा और उनके बच्चों की पढ़ाई कैसे होगी।
जो इतनी दृढ़ता से हमारे देश की रक्षा करते हैं उनका अपना परिवार इतना निशक्त और आशय क्यों होता है? पुलवामा की शहादत की पीड़ा को सजीव करती बहुत सुंदर रचना. ह्रदय से आभार व सादर नमन।
प्रिय अनंता , शहीद सैनिकों के प्रति इस भावांजली के लिए हार्दिक आभार | यूँ तो शहीदों के परिवारों के लिए सरकार की योजनायें ढेरों हैं पर कोई भी योजना और सहायता उनके परिवार के दर्द को कम नहीं कर सकती | पुलवामा जैसे कायरतापूर्ण हमले- हमारे वीर जवानों का हौंसला कम करने के लिए करवाए जाते हैं क्योकि सीधी लड़ाई में अवांछित तत्वों का पराजित होना तय है | पर फिर भी दुआ है ऐसी घटनाओं की पुनरावृति ना हो | हमारे वीर जवान सलामत रहें |आपने बहुत ही सटीकता से मानों एक लघु निबन्ध ही लिख डाला है इस विषय पर जिससे आपकी प्रखर वैचारिक क्षमता का अनुमान लगाना मुश्किल नहीं | मेरी शुभकामनाएं और प्यार |
हटाएंप्रिय रेणु
जवाब देंहटाएंदेश पर मर मिटने वाले देश के लाल ऐसे ही होते हैं । बहुत मार्मिक प्रस्तुति है ।।
वैसे तुम्हारी ये रचना मैं पहले भी पढ़ चुकी हूँ । बहुत भावपूर्ण लिखा है ।।
शहीदों को नमन ।