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शनिवार, 6 अप्रैल 2019

कौन दिखे ये अल्हड किशोरी सी -- कविता


 चंचल  नैना .    फूल सी कोमल  ,
 कौन दिखे  ये अल्हड किशोरी  सी  ? 
रूप - माधुरी  का  महकता  उपवन -
लगे  निश्छल  गाँव की   छोरी   सी  !
 

मिटाती मलिनता  अंतस की 
मन  प्रान्तर  में आ बस जाए ,   
रूप   धरे  अलग -अलग  से 
 मुग्ध,  अचम्भित  कर जाए ,
 किसी    पिया की है प्रतीक्षित   
 लिए    मन   की  चादर   कोरी सी !  

तेरी   चितवन  में  उलझा  मनुवा -
तनिक  चैन  ना      पाए,
 यही  ज्योत्स्ना  चुरा  के  चंदा  
 प्रणय  का  रास  रचाए ;
 रंग ,गंध  , सुर   में  वास  तेरा  
 तू सृष्टि की  रंगीली  होरी  सी ! 

अनुराग स्वामिनी  मनु  की 
तुम    नटखट  शतरूपा सी,
शारदा तुम्हीं लक्ष्मी  , सीता,
शिव की शक्तिस्वरूपा  सी ,
अपने श्याम सखा में  उलझी  
 तुम्हीं राधिका गोरी सी !!

सृष्टा की अनुपम  रचना 
तुझ बिन सूना जग का आँगन ,
सदा धरे  धरा सा  संयम     
 है  विकल जिया का  अवलम्बन ,
 शुचिता  .  तुम्हीं   स्नेह ,करुणा,
 तुम माँ  की मीठी लोरी सी !! 

चित्र -  गूगल  से साभार


52 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (08-04-2019) को "भाषण हैं घनघोर" (चर्चा अंक-3299) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    ८ अप्रैल २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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    1. प्रिय श्वेता -- आपका हार्दिक आभार इस सहयोग के लिए |

      हटाएं
  3. वाह.....
    अनुराग स्वामिनी मनु की -
    तुम हो नटखट शतरूपा सी
    शारदा तुम्हीं लक्ष्मी , सीता-
    शिव की शक्ति स्वरूपा सी ;
    अपने श्याम सखा में उलझी
    तुम्हीं राधिका गोरी सी !!

    लाजवाब सृजन

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    उत्तर
    1. प्रिय रवीन्द्र जी सस्नेह आभार आपके स्नेहिल शब्दों के लिए |

      हटाएं
  4. इस बेहतरीन रचना हेतु नमन। बहुत-बहुत शुभकामनाएँ आदरणीय रेणु जी।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुन्दर ! जावेद अख्तर का नग्मा - 'एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा' याद आ गया.

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत सुन्दर रचना रेणू जी ! मन पुलकित हुआ !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरनीय साधना जी -- ब्लॉग पर आपका आना मेरा सौभाग्य है | सस्नेह आभार आपका |

      हटाएं
  7. सृष्टा की अनुपम रचना
    तुझ बिन सूना जग का आँगन -
    धरे धरा सा संयम -
    है विकल जिया का अवलम्बन
    शुचिता . तुम्ही स्नेह ,करुणा
    तुम माँ की मीठी लोरी सी
    बहुत ही सुंदर.... सखी,स्नेह

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय सखी -- हर आभार से परे है सखी आपका ये स्नेह जिसके लिए बस मेरा प्यार |

      हटाएं

  8. मिटाती मलिनता अंतस की
    मन प्रान्तर में आ बस जाए
    रूप धरे अलग -अलग से -
    मुग्ध, अचम्भित कर जाए

    बहुत ही सुंदर,सजीव, शालीन और भावपूर्ण रचना है रेणु दी।
    और अंंतिम पंक्ति
    माँ की मीठी लोरी सी...
    ने इस रचना को सम्पूर्णता प्रदान कर दी है।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय शशि भैया -- आपने सच कहा माँ बनकर नारी सम्पूर्णता पाती है | सस्नेह आभार और शुभकामनायें |

      हटाएं
  9. तुम माँ की मीठी लोरी सी ...
    तुम ही माँ, तुम शक्ति, अर्चना, तप साधना
    चरण वंदन, भक्ति, शुभ-चरणों में प्रीत प्रार्थना ...
    आपकी रचना पढने के बाद स्वतः निकले मन के भाव जो समर्पित हैं इस रचना को, माँ को, सगत नारी संसार को ...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय दिगम्बर जी आ --- रचना पर आपकी त्वरित काव्यात्मक टिप्पणी आपकी नारी के प्रति अप्रितम सम्मान को इंगित करती है | आपके सहयोग की सदैव आभारी रहूंगी | सादर शुभकामनायें और आभार |

      हटाएं

  10. सृष्टा की अनुपम रचना
    तुझ बिन सूना जग का आँगन -
    धरे धरा सा संयम -
    है विकल जिया का अवलम्बन
    शुचिता . तुम्ही स्नेह ,करुणा
    तुम माँ की मीठी लोरी सी !!!!!!!!!!

    बहुत ही सुंदर अभिव्यक्ति, रेणु दी।

    जवाब देंहटाएं
  11. आदरणीया रेणु जी, सुंदर तत्सम शब्दों से गुम्फित भावना प्रधान रचना के लिए हार्दिक साधुवाद!
    मेरा पहला कविता संग्रह "कौंध" नाम से अमेज़ॉन के किंडल डायरेक्ट पब्लिशिंग पर ई बुक के रूम में प्रकाशित हो गया है।
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    सादर आभार!
    ब्रजेंद्रनाथ

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    सादर आभार
    ब्रजेंद्रनाथ

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आआआड्णीय़ सर -- आपके उत्साहवर्धन करते शब्द बहुत विशेष है मेरे लिए |आपको आपके कविता संग्रह के लिए हार्दिक शुभकामनायें और बधाई | मैं जरुर आपकी दी गई जानकारी से आपकी पुस्तक मंगवाऊँगी | सादर आभार आपका |

      हटाएं
  12. तेरी चितवन में उलझा मनुवा -
    तनिक चैन ना पाए,
    यही ज्योत्स्ना चुरा के चंदा
    प्रणय का रास रचाए ;
    रंग ,गंध , सुर में वास तेरा -
    तू सृष्टि की रंगीली होरी सी ! ! ! !
    बहुत ही उत्कृष्ट सृजन...
    वाह!!!!
    लाजवाब बस लाजवाब रेणु जी इतनी शानदार रचना कि निशब्द हूँ मैं....बहुत बहुत बधाई सखी सुन्दर सृजन हेतु...

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय सुधा जी -- रचना पर आपका विस्तृत और भावपूर्ण अवलोकन रचना को सम्पूर्णता प्रदान करता है | आपके सहयोग के लिए आभार नहीं बस मेरा प्यार सखी |

      हटाएं
  13. नारी के विविध गुणों और स्वरूपों का बड़ा मनमोहक चित्रण करती अनुपम रचना । लाजवाब और सुन्दर रचना के लिए बहुत बहुत बधाई
    रेणु जी ।

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    उत्तर
    1. प्रिय मीना बहन -- रचना पर आपके विस्तृत और स्नेहिल अवलोकन के लिए आभारी हूँ | ये स्नेह बनाये रखिये |

      हटाएं
  14. उत्तर
    1. प्रिय अनीता -- आपके स्नेहिल शब्दों के लिए आभार के साथ मेरा प्यार भी |

      हटाएं
  15. उत्तर
    1. आदरनी कविराज -- आपकी वाह मेरे लिए विशेष पुरस्कार सरीखी है | सादर आभार और अभिनन्दन |

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  16. उत्तर
    1. प्रिय अभिलाषा बहन - हार्दिक आभार आपके स्नेहिल शब्दों के लिए |

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  17. सचमुच रेनु बहन आपकी यह कृति सृष्टा की अनुपम कृति ही है
    इस में सुरभी है, सरसता है ,सौंदर्य है अलंकार है और प्राजंलता है
    और मेरे पास इतने शब्द नही की इस सृजन की तारीफ कर सकूं ।
    अभिराम ।
    सदा मां शारदे आपकी लेखनी पर आशीष बरसाती रहे ।
    सस्नेह ।

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    उत्तर
    1. प्रिय कुसुम बहन -- आपकी रचना पर प्रतिक्रिया मुझे विशेष अनुभूति देती है |आपकी शुभकामनायें और उत्सावर्धन करते शब्द मेरी लेखनी की ऊर्जा हैं | आभार नहीं मेरा प्यार सखी |

      हटाएं
  18. सृष्टा की अनुपम रचना
    तुझ बिन सूना जग का आँगन -
    धरे धरा सा संयम -
    है विकल जिया का अवलम्बन
    शुचिता . तुम्ही स्नेह ,करुणा
    तुम माँ की मीठी लोरी सी !!!.... वाह , बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  19. आदरणीय वन्दना जी ---- गूगल प्लस के जाने के बाद आपको अपने ब्लॉग पर देखकर बहुत ख़ुशी हो रही है | रचना पर आपके स्नेहिल शब्द अनमोल हैं | सस्नेह आभार आपका |

    जवाब देंहटाएं
  20. सृष्टा की अनुपम रचना
    तुझ बिन सूना जग का आँगन -
    धरे धरा सा संयम -
    है विकल जिया का अवलम्बन
    शुचिता . तुम्ही स्नेह ,करुणा
    तुम माँ की मीठी लोरी सी !!!!!!!!!!

    ...सच में अनेक रूप संजोये हैं सृष्टा की एक कृति ... लाज़वाब अभिव्यक्ति..

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय सर सुस्वागतम और हार्दिक आभार आपका |

      हटाएं
  21. सृष्टा की अनुपम रचना
    तुझ बिन सूना जग का आँगन -
    धरे धरा सा संयम -
    है विकल जिया का अवलम्बन
    शुचिता . तुम्ही स्नेह ,करुणा
    तुम माँ की मीठी लोरी सी !!!!!!!!!!.....सृष्टि की सर्वश्रेष्ठ रचना का सार्वभौमिक सत्य. अद्भुत रचना, वाह!

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    उत्तर
    1. आदरणीय विश्वमोहन जी ०-- सादर आभार आपकी सुंदर भावपूर्ण टिप्पणी के लिए |

      हटाएं
  22. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज सोमवार 14 अक्टूबर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार - आदरणीय दीदी और मुखरित मौन मंच |

      हटाएं
  23. सृष्टा की अनुपम रचना
    तुझ बिन सूना जग का आँगन -
    धरे धरा सा संयम -
    है विकल जिया का अवलम्बन
    शुचिता . तुम्ही स्नेह ,करुणा
    तुम माँ की मीठी लोरी सी !!

    वाह वाह
    वाह वाह
    इसके अतिरिक्त कुछ कहने की योग्यता नही मुझमें
    नमन आपकी कलम को आदरणीय दीदी जी
    शुभ संध्या 🙏

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय आँचल , आज तो तुमने सारी वाह वाह मेरी ही झोली में डाल दी | तुम्हारी सराहना को सम्मान है | खुश रहो | मेरी शुभकामनायें तुम्हारे लिए |

      हटाएं
  24. आपके लिंक से यहाँ पहुँचने का अवसर मिला..बहुत ही खूबसूरत,महान टिप्पणियों के बाद मैं क्या लिखूँ,कुछ समझ नहीं आ रहा..बस ईश्वर से यही प्रार्थना है कि इन्ही सुंदर भावों को आप सृजित करती रहें और हमारी प्रेरणा बनती रहें..आपको मेरी हार्दिक शुभकामनाएँ एवं नमन..

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय जिज्ञासा जी , मेरी रचना से कहीं बढ़कर है आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया | ब्लॉग पर आपके आगमन का हार्दिक आभार और शुक्रिया |

      हटाएं
  25. आपकी लिखी रचना आज सोमवार 8 मार्च 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी सादर आमंत्रित हैं आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. प्रिय दिव्या जी , मुखरित मौन मंच और आपकी आभारी हूँ |

      हटाएं
  26. नारी के भिन्न भिन्न स्वरूपों को बखूबी शब्दों में बांधा है ।
    खूबसूरत अभिव्यक्ति ।


    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय दीदी , आपने कविता के अस्फुट स्वरों को सराहा मेरा प्रयास सफल हुआ | ब्लॉग पर आपकी स्नेहिल उपस्थिति के लिए कोटि आभार आपका |

      हटाएं

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