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शनिवार, 8 फ़रवरी 2020

आज कहीं मत जाना -गीत

दिन  आज का बहुत सुहाना साथी  !
आज कहीं मत जाना  साथी !!

  मुदित मन के मनुहार खुले हैं ,
 नवसौरभ के बाजार खुले हैं ;
 डाल - डाल पर नर्तन करती  
कलियों के बंद द्वार खुले हैं ;
 सजा   हर वीराना साथी !
आज कहीं मत जाना साथी!!

ये तप्त दुपहरी  जीवन की 
 थी मंद पड़ी प्राणों की उष्मा ,
 जाग पड़ी तुम्हारी  आहट से
सोयी  अंतस की  चिरतृष्णा,
हुआ विरह का राग पुराना साथी  !
आज कहीं मत जाना साथी !!

सुन स्वर तुम्हारा सुपरिचित  
 ले हिलोरें पुलकित अंतर्मन , 
जाने  जोड़ा किसने  और कब?
प्रगाढ़ हुआ  ये मन का बंधन ; 
मिला नेह  नज़राना  साथी  !
आज   कहीं मत जाना साथी !!

28 टिप्‍पणियां:

  1. जाग पड़ी तुम्हारी आहट से
    सोयी अंतस की चिरतृष्णा
    हुआ विरह का राग पुराना साथी -
    आज कहीं मत जाना साथी -
    बहुत ही सुन्दर सरस लाजवाब
    ऐसे सुहाना मौसम और साथ में साथी
    वाह!!!!

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    1. प्रिय सुधा जी, आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया मेरे लिएकिसी पारितोषिक से कम नही। सस्नेह आभार सखी 🙏🥰

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  2. ऋतुराज को ध्यान में रखकर बसंत का सुंदर उपहार है यह सृजन।

    ऐसे सौभाग्यशाली लोगों को नमन।

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 09 फरवरी 2020 को साझा की गई है...... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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    1. आदरणीय यशोदा दीदी, आपके सहयोग की हमेशा आभारी रहूँगी हार्दिक शुक्रिया🙏🙏🙏

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  4. सुन स्वर तुम्हारा सुपरिचित -
    ले हिलोरें पुलकित अंतर्मन ,
    जाने जोड़ा किसने और कब?
    प्रगाढ़ हुआ ये मन का बंधन ;
    मिला नेह नज़राना साथी

    वाह !! सखी ,कितने दिनों बाद तुम्हारी लेखनी जागी और फिर से स्नेह के फुल बरसाने लगी हैं।
    लाज़बाब ,तुम्हे साथी का स्नेह मिलता रहें और तुम्हारी लेखनी चलती रहें ,यही कामना करती हूँ
    सादर स्नेह तुम्हे

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    उत्तर
    1. प्रिय कामिनी, ये तुम्हारा स्नेह है सखी। हार्दिक आभार इस स्नेह से लबालब प्रतिक्रिया के लिए। 🙏🥰

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  5. बहुत ही सुंदर और लाजबाब सृजन रेणु दी। तुम्हें अपने साथी का साथ हरदम मिलता रहे यहीं शुभकामनाएं...

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    1. प्रिय ज्योति जी, आपके निरंतर प्रोत्साहन से अभिभूत हूँ, सादर आभार शुक्रिया 🙏🙏🙏🥰

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  6. वाह वाह अति सुंदर मनमोहक अंतस से निसृत पवित्र समर्पित स्नेहिल गीत।
    दी बहुत बहुत अच्छी लगी रचना आज निःशब्द हूँ मेरी बधाई स्वीकार करें।
    सस्नेह
    सादर।

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    1. प्रिय श्वेता, ब्लॉग पर तुम्हारी उपस्थिति से बहुत खुशी हुई। तुम्हें गीत पसंद आया मेरा लिखना सार्थक हुआ। सस्नेह आभार🙏🥰

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  7. आपकी रचनाओं के विस्तृत संसार से कहीं दूर जाने का मन करे भी तो कैसे!
    बहुत ही सुंदर, मन-मनुहार का यह उपहार हम कविता प्रेमियों के लिए।
    शुभकामनाएं स्वीकार करें आदरणीया ।

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    उत्तर
    1. आदरणीय पुरुषोत्तम जी, आपके प्रोत्साहन भरे शब्द सदैव मनोबल बढ़ाते हैं ।सादर आभार और शुक्रिया 🙏🙏🙏

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  8. वाह बहुत सुंदर गीत मन मोह गया साथी ।
    रेणु बहन बहुत प्यारा गीत है ।
    सुंदर भाव, सुंदर शब्दावली।

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    उत्तर
    1. प्रिय कुसुम बहन, आपके मधुर शब्द मेरी रचना को सार्थकता प्रदान करते हैं। सस्नेह आभार 🙏🙏🥰

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  9. उनसे ही विराना सजने लगे
    चिरतृष्णा मिटे
    नेह नजराना मिले
    भले ऐसे प्रेम की दूरियां कैसे सही जाये.

    कलम के साथ कमाल करती हैं आप.

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    उत्तर
    1. प्रिय रोहित जी , आपकी स्नेह भरी प्रतिक्रिया का हार्दिक आभार |

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  10. मन मुदित , मनुहार खुले हैं ,
    नवसौरभ के बाजार खुले हैं ;
    डाल - डाल पर नर्तन करती -
    कलियों के बंद द्वार खुले हैं ;वाह बेहतरीन रचना 👌👌

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  11. डाल-डाल पर कलियों संग कलरव मिलिंद संदेश यहीं।
    विरह के पतझड़ जहां भी झड़ते मिलन वसंत उन्मेष वहीं।

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    उत्तर
    1. आदरणीय विश्वमोहन जी , आपकी ये अनमोल काव्यात्मक
      टिप्पणी मेरे ब्लॉग की अमूल्य थाती रहेगी । ब्लॉग पर आने के लिए आपका सादर आभार ।

      हटाएं
  12. डाल - डाल पर नर्तन करती -
    कलियों के बंद द्वार खुले हैं ;वाह बेहतरीन

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  13. बहुत सुंदर कविता रची है यह आपने रेणु जी | अभिनंदन |

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार और शुक्रिया जितेन्द्र जी | ब्लॉग पर आपका भ्रमण मेरा सौभाग्य है |

      हटाएं

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