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शनिवार, 20 जनवरी 2018

बसंत बहार से तुम --- कविता

Image result for जीवन में बसंत के फूल
 था पतझड़ सा नीरस  जीवन 
आये बसंत  बहार से तुम ,
सावन भले  भर -भर  बरसे 
 सौंधी   पहली बौछार से तुम  |

 मन  ये कितना अकेला था 
एकाकीपन में खोया था  , 
किसी   ख़ुशी  का इन्तजार  कहाँ 
बुझा - बुझा  हर रोयाँ  था ;
बरसे सहसा तपते मन पे  
शीतल  मस्त फुहार से तुम ! 

 मधु सपना बन  ठहर  गए 
 थकी  मांदी  सी आँखों में ,
हो पुलकित  मन ने उड़ान भरी 
थकन बसी थी  पांखोंमें ;
उल्लास का ले आये तोहफा -
  मीठी मन की   मनुहार से तुम !! 

चिर विचलित प्राणों में साथ
 आन  बसे संयम से तुम ,
कोई दुआ    हुई  सफल मेरी 
 बने  घाव पे  मरहम से तुम ;
मन के मौसम   पलट गये 
छाये  निस्सीम  विस्तार से तुम !!

32 टिप्‍पणियां:

  1. वाह्ह्ह...लाज़वाब...बहुत सुंदर... बसंत के मौसम की तरह सुंदर कविता....हृदय की कोमल पंखुड़ियाँ प्रेम की सुगंध में भीगकर मुस्काने लगी।

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    1. प्रिय श्वेता जी -- अनमोल हैं आपके स्नेह भरे शब्द | सस्नेह आभार |

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  2. था पतझड़ सा नीरस जीवन - आये बसंत बहार से तुम ,
    सावन भले भर -भर बरसे - पहली सौंधी बौछार से तुम...
    बेहतरीन रचना।
    सच कहिए तो कविता का यह भाव और यही प्रवाह मुझे सबसे ज्यादा पसंद है और आपकी इस रचना में वह सब है जो मुझे बेहद प्रभावित कर गया। असंख्य शुभकामनाएँ और साधुवाद आदरणीय रेणु जी।

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    1. आदरणीय पुरषोत्तम जी -- आपको रचना पसंद आई -- मेरा लेखन सफल हुआ | आपकी सराहना से रचनात्मकता को नयी प्रेरणा मिलती है | सादर आभार |

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    2. आपकी लेखनी असाधारण है और प्रेरक भी। मै तो बस अनुसरणकर्ता हूँ आपका। शुभकामनाएं ।

      हटाएं
  3. आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २२ जनवरी २०१८ को लिंक की गई है। आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/

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    1. प्रिय ध्रुव-- आपका सहयोग आभार से परे है |

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  4. आदरणीया रेणु जी अपार हर्ष का अनुभव हो रहा है आपको यह सूचित करते हुए कि ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २२ जनवरी २०१८ को आप हमारी पाठकों की पसंद अंक की पाठिका चयनित हुई हैं। आप सादर आमंत्रित हैं "शब्द नगरी के दिग्गज़" विशेषांक में ! आभार "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/








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    1. प्रिय ध्रुव --इस सम्मान के लिए आभारी हूँ | मैं मूलतः पाठिका ही हूँ |

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  5. बसंत पंचमी के आगमन और प्रेम के मनुहार का यह मौसम सुहावना होता है
    बहुत सुंदर रचना
    हार्दिक शुभकामनाएं

    सादर

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  6. बेहतरीन,रससिक्त, भावों की रसधार
    बहाती सुंदर रचना,अति उत्तम

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  7. चिर विचलित प्राणों में साथी -
    आन बसे संयम से तुम ,
    कोई दुआ हुई सफल मेरी -
    बने घाव पे मरहम से तुम ; वाह बहुत ही बेहतरीन रचना

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  8. पतझड़ सा नीरस जीवन -
    आये बसंत बहार से तुम ,
    सावन भले भर -भर बरसे -
    सौंधी पहली बौछार से तुम |

    ये मन कितना अकेला था. ..बहुत ही सुन्दर सखी
    सादर

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  9. वाह, अंतस के अहसासों की बहुत ख़ूबसूरत अभिव्यक्ति...

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    1. सुस्वागतम और सादर आभार आदरणीय सर | आपकी सराहना अनमोल है |

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  10. हर बंध लाज़बाब. निश्छल. सरल. प्रांजल. तरल.

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  11. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    २५ मार्च २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  12. ये मन कितना अकेला था
    एकाकीपन में खोया था ,
    किसी ख़ुशी का इन्तजार कहाँ
    बुझा - बुझा हर रोयाँ था ;
    बरसे सहसा तपते मन पे
    शीतल मस्त फुहार से तुम !
    वाह!! रेणु जी कमाल की रचना वसंत सी मनभावनी प्रेम रस में ओतप्रोत...।बहुत ही लाजवाब... बार बार पठकर भी मन नहीं भरता.....। बहुत सारी शुभकामनाएं एवं बधाई।

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    1. प्रिय सुधा बहन -- आपके स्नेहिल शब्द मेरी साधारण रचना को असाधारण बना देते हैं | ये मेरी रचना का श्रृंगार हैं | आभार नहीं मेरा प्यार |

      हटाएं

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