मेरी प्रिय मित्र मंडली

शनिवार, 18 मई 2019

ना शत्रु बन प्रहार करो --कविता [ एक वृक्ष की व्यथा -]




 ना शत्रु बन प्रहार करो  
 सुनो मित्र ! निवेदन मेरा भी  
मैं मिटा तुम भी ना रहोगे  
 जुडा तुमसे यूँ जीवन मेरा भी !

 करूँ श्रृंगार जब सृष्टि का मैं   

फूल -फूल कर इठलाती , 
 सुयोग्य  सुत  मैं धरा    का
मुझ बिन  माँ  की फटती छाती
तुम जैसे ही ममतावश  मैं 
नहीं  कम कोई समर्पण मेरा भी !!


सदियों से पोषक हूँ  सबका  

 कृतघ्न  बन  ना दो धोखा ,
निष्प्राण नही   निःशब्द हूँ मैं
 कहूँ कैसे अपने  मन की  व्यथा   ?
  जड़  नही चेतन हूँ  मैं
दुखता है मन मेरा भी !!

खाए ना कभी अपने फल मैंने 

न फूलों से श्रंगार किया ,
जगहित हुआ जन्म मेरा   
पल -पल इसपे उपकार किया ,
खुद तपा बाँट छाया सबको  
 जुडा सबसे अंतर्मन  मेरा भी !!

कसता नदियों के तटबंध मैं  

 थामता   मैं ही हिमालय  को ,
जुगत मेरी  कायम रहे   सृष्टि  
महकाता मैं ही देवालय  को ;
 तुम संग बचपन में लौटूं  
 संग  गोरी खिलता यौवन मेरा भी !


स्वरचित -- रेणु
चित्र -गूगल से साभार 

61 टिप्‍पणियां:

  1. निष्प्राण नही निःशब्द हूँ मैं
    कहूं कैसे अपने मन की व्यथा ?
    जड़ नही चेतन हूँ मैं
    दुखता है मन मेरा भी !!
    बहुत सुंदर सखी ,वृक्ष की व्यथा का मार्मिक चित्रण ,सादर स्नेह

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल सोमवार (20-05-2019) को "चलो केदार-बदरी" (चर्चा अंक- 3341) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  3. हार्दिक आभार आदरणीय सर |

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  4. खुद तपा- बाँट छाया सबको -
    जुडा सबसे अंतर्मन मेरा भी !!
    अत्यन्त सुन्दर सृजन रेणु जी ! सस्नेह....,

    जवाब देंहटाएं
  5. करूं श्रृंगार जब सृष्टि का मैं -
    फूल -फूल कर इठलाती
    सुयोग्य सुत मैं धरा का
    मुझ बिन माँ की फटती छाती
    तुम जैसे ही ममता वश मैं -
    नहीं कम कोई समर्पण मेरा भी ....बेहतरीन रचनाएँ प्रिय रेणु दी
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  6. कसता नदियों के तटबंध मैं -
    थामता मैं ही हिमालय को ,
    जुगत मेरी कायम रहे सृष्टि -
    महकाता मैं ही देवालय को ;
    तुम संग बचपन में लौटूं -
    संग गोरी खिलता यौवन मेरा भी !... वाह! वृक्ष के जीवन का अद्भुत दर्शन।

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  7. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार मई 20, 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  8. खाए ना कभी अपने फल मैंने -
    न फूलों से श्रंगार किया ,
    जग हित हुआ जन्म मेरा -
    पल -पल इसपे उपकार किया;
    खुद तपा- बाँट छाया सबको -
    जुडा सबसे अंतर्मन मेरा भी !!
    वाह बहुत ही बेहतरीन रचना सखी 👌

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  9. हर बार की तरह असाधारण अभिव्यक्ति जैसे करुण रस थला थल बह गया भावों में।
    वृक्ष की व्यथा बहुत यथार्थ चिंतन देती रचना सुंदर मानवीय करण
    शानदार प्रस्तुति के लिए तहे दिल से बधाई रेणु बहन।
    अप्रतिम सुंदर

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    उत्तर
    1. प्रिय कुसुम बहन आपके शब्द प्रेरणा से भरे हैं | सस्नेह आभार |

      हटाएं
  10. खाए ना कभी अपने फल मैंने -
    न फूलों से श्रंगार किया ,
    जग हित हुआ जन्म मेरा -
    पल -पल इसपे उपकार किया;
    खुद तपा- बाँट छाया सबको -
    जुडा सबसे अंतर्मन मेरा भी !!
    बहुत ही लाजवाब शानदार सृजन...
    वृक्ष का परोपकार उसका अन्तर्मन से जुड़ाव....
    वाह!!!!

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  11. बहुत सुन्दर रेणुबाला जी, आपकी कविता पढ़कर हम में से कोई न कोई तो हमारे जीवन के सुख-दुक के साथी, इन पेड़ों को बचाने के लिए दौड़ेगा ही.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आदरणीय गोपेश जी यदि ऐसा हो जाएगा तो अपने आप को धन्य समझूंगी | सादर आभार आपके प्रेरक शब्दों के लिए |

      हटाएं
  12. विलम्ब से अवलोकन हेतु क्षमाप्रार्थी हूँ । आपकी इस रचना की एक-एक पंक्ति संदेशवाहक और बेहतरीन है।
    कसता नदियों के तटबंध मैं -
    थामता मैं ही हिमालय को ,
    जुगत मेरी कायम रहे सृष्टि -
    महकाता मैं ही देवालय को ;
    तुम संग बचपन में लौटूं -
    संग गोरी खिलता यौवन मेरा भी !
    वृक्ष हैं तो जीवन है....यौवन है.....
    बहुत-बहुत बधाई व शुभकामनाएं ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार आदरणीय पुरुषोत्तम जी , आपके प्रेरक और मधुर शब्दों के लिए |

      हटाएं
  13. उत्तर
    1. आदरणीय सर सबसे पहले स्वागत है आपका मेरे ब्लॉग पर | हार्दिक आभार कि आपने रचना पढी |

      हटाएं

  14. खाए ना कभी अपने फल मैंने -
    न फूलों से श्रंगार किया ,
    जग हित हुआ जन्म मेरा -
    पल -पल इसपे उपकार किया;
    खुद तपा- बाँट छाया सबको -
    जुडा सबसे अंतर्मन मेरा भी !!
    सार्थक, यथार्थ को अभिव्यक्त करती है आपकी रचना सखी,वास्तव में मानव ने
    सत्य से मुंह फेर लिया है।प्रकृति कभी स्वार्थी नहीं होती ये तो मानव ही जो प्रकृति का सर्वनाश करने पर तुला है।






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    उत्तर
    1. प्रिय सखी अभिलाषा जी - अपने सुंदर ढंग से रचना की विषय वास्तु की विवेचना की है , जिसके लिए आभारी हूँ |

      हटाएं
  15. आपकी रचना पढ़ अपने शहर में कटते उस कदम के पेड़ की याद आ गयी। किस तरह से तब खिलखिला रहे थे, भद्रजन।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी शशि भाई , कथित भद्र जनों ने पेड़ों को जड़ समझ निष्ठुरता से काटकर जी अट्टहास किया उसी का खामियाजा आज पर्यावरण में बढती असहनीय ताप के रूप में भुगतना पड़ रहा है | आभार आपके भावपूर्ण शब्दों के लिए |

      हटाएं
  16. जुगत मेरी कायम रहे सृष्टि -
    महकाता मैं ही देवालय को ;
    तुम संग बचपन में लौटूं -
    संग गोरी खिलता यौवन मेरा भी... वृक्ष के जीवन दर्शन वाह!

    जवाब देंहटाएं
  17. सदियों से पोषक हूँ सबका -
    कृतघ्न बन- ना दो धोखा ...
    काश मानव इस पीढ़ा को समझ पाता .... ये देख सकता की जिसने पोषित किया और आगे भी जीवन देगा उसी का भक्षण क्र रहे हैं हम ... सच कह तो स्वयं का ही भक्षण कर रहे हैं ...
    बहुत गहरी, मन को छूते भाव लिए सुन्दर रचना है ...

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  18. सादर आभार आदरणीय दिगम्बर जी | आपकी विवेचना सार्थक और प्रेरक है |

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  19. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार (25-11-2019) को "गठबंधन की राजनीति" (चर्चा अंक 3537) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित हैं….
    *****
    रवीन्द्र सिंह यादव

    जवाब देंहटाएं
  20. बहुत अच्छी रचना है रेणु जी यह आपकी । 'मैं मिटा तुम भी ना रहोगे' - एक ठोस सच्चाई ।

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  21. सादर आभार जितेन्द्र जी | आपको रचना पसंद आई मन को संतोष हुआ |

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  22. आदरणीया मैम ,
    बहुत ही भावपूर्ण व सुंदर संदेश देती हुई कविता। वृक्ष इस धरती की आत्मा हैं , यदि यह नहीं होंगे तो इस धरती पर कोई और जीव नहीं बचेगा। ये वृक्ष ही हैं जो वर्षा को भी निमंत्रित करते हैं , इनके बिना जल भी नहीं होगा। यदि मानव इस धरती पर न हो, तो भी प्रकृति पहल फूल सकती है पर यदि प्रकृति न हो तो मानव जीवित नहीं बच सकता। ह्रदय से आभार व सादर नमन।

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  23. तुमने सच कहा प्रिय अनंता , वृक्ष इस धरती माँ की आत्मा है | इनके बिना धरा पर जीवन संकट में पड़ जाएगा | रचना के भावों को विस्तार देती टिप्पणी के लिए हार्दिक आभार और शुभकामनाएं|

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  24. प्रिय दी,
    आपकी रचना संवेदनओं की कल-कल बहती निर्झरी है।
    प्रकृति से ही मानव का अस्तित्व है यह बात मनुष्य समझकर नासमझ और स्वार्थी बनता है।
    बेहद सारगर्भित संदेशात्मक रचना।
    -----
    पेड़ों को काटकर कंक्रीट के जंगल बोना,
    छायाविहीन धरा,सूखते तट पर व्याकुल छौना ,
    जंगलों के विदीर्ण ठूँठ पर रोती है चिड़िया
    भविष्य रेतीला, संदेहास्पद तेरा या मेरा होना।

    -----
    बहुत शुभकामनाएं मेरी और अशेष बधाई दी।
    सस्नेह
    सादर।

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    उत्तर
    1. बहुत खूब श्वेता, तुम्हारी पक्तियाँ रचना के भावों का विस्तार है। बहुत -बहुत आभार और प्यार। ❤❤🌹🌹

      हटाएं

  25. कसता नदियों के तटबंध मैं -
    थामता मैं ही हिमालय को ,
    जुगत मेरी कायम रहे सृष्टि -
    महकाता मैं ही देवालय को ;
    तुम संग बचपन में लौटूं -
    संग गोरी खिलता यौवन मेरा भी !...प्रिय रेणु जी,बहुत खूबसूरती से आपने मनुष्य,प्रकृति,तथा ईश्वर,सबको यह अहसास दिला दिया कि ये सृष्टि की सांसों के देवता पेड़,पौधे और वनस्पतियां ही हैं,आपकी महान भावना को नमन ।एवम नव सृजन के लिए ढेरों शुभकामनाओं सहित जिज्ञासा सिंह ।

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    1. प्रिय जिज्ञासा जी , आपकी सारगर्भित और स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए `हार्दिक आभार और अभिनन्दन |

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  26. खाए ना कभी अपने फल मैंने -
    न फूलों से श्रंगार किया ,
    जग हित हुआ जन्म मेरा...बहुत खूब

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    उत्तर
    1. उषा जी , ब्लॉग पर आपको देखकर बहुत ख़ुशी हुई | आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए `हार्दिक आभार और अभिनन्दन |

      हटाएं
  27. सारगर्भित संदेशात्मक खूबसूरत रचना।

    जवाब देंहटाएं
  28. किसी मूक मन को समझ सकना आप जैसे सामर्थ्यवान रचनाकार ही कर सकते हैं।

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    उत्तर
    1. आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए `हार्दिक आभार और अभिनन्दन विमल भाई

      हटाएं
  29. आदरणीया मैम, अत्यंत भावपूर्ण कविता। पुनः पढ़ कर और पांच लिंकों के आनंद पर इसे देख कर बहुत आनंद हुआ। बहुत- बहुत सुंदर है यह कविता। आपजे द्वारा मेरी प्रिय रचनाओं में से एक है।

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    उत्तर
    1. प्रिय अनंता , इस स्नेहिल प्रतिक्रिया के लिए `हार्दिक आभार और अभिनन्दन | तुम्हारी काव्य रसिकता को देखकर बहुत अच्छा लगता है | सदैव खुश रहो | हार्दिक प्यार |

      हटाएं
  30. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार २२ अप्रैल २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  31. लेकिन मनुष्य तो कृतघ्न बना बैठा है । प्रेरक रचना ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपका हार्दिक स्वागत और आभार प्रिय दीदी 🙏🙏

      हटाएं
  32. सदियों से पोषक हूँ सबका
    कृतघ्न बन ना दो धोखा ,
    निष्प्राण नही निःशब्द हूँ मैं
    कहूँ कैसे अपने मन की व्यथा ?
    जड़ नही चेतन हूँ मैं
    दुखता है मन मेरा भी !!...
    प्रकृति को पोषित करता एक दृढसंकल्पित मन की व्यथा ।
    जितनी बार पढ़ो। प्रकृति संरक्षण की प्रेरणा देती उत्कृष्ट रचना ।एक बार पुनः बधाई आपको ।

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    उत्तर
    1. उत्साहवर्धन हेतु आभार और अभिनंदन प्रिय जिज्ञासा जी ❤❤🌺🌺

      हटाएं

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