'पावन , निर्मल प्रेम सदा ही -- रहा शक्ति मानवता की , जग में ये नीड़ अनोखा है - जहाँ जगह नहीं मलिनता की ;; मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है |
आज कविता सोई रहने दो, मन के मीत मेरे ! आज नहीं जगने को आतुर सोये उमड़े गीत मेरे ! ना जाने क्या बात है जो ये मन विचलित हुआ जाता है ! अना...
वाह्हहह
जवाब देंहटाएंस्वागत है आपका 🙏
हटाएंवाह ...अद्भुत रचना👌👌
जवाब देंहटाएंअभिनन्दन है आपका 🙏
हटाएंजी आभार आपका 🙏
हटाएंबहुत ही मर्मस्पर्शी , स्त्री की वेदना एक स्त्री ही समझ सकती है ।
जवाब देंहटाएंस्वागत है प्रिया जी आपका 🙏
हटाएंवाह वाह और वाह, व्यथित नारी मन का चित्रण
जवाब देंहटाएंस्वागत है आपका 🙏
हटाएंहे शक्तिस्वरूपा ! स्वयंसिद्धा बन ! रिपुदलसंहारिणी बन !
जवाब देंहटाएंवैसे कविता मार्मिक है लेकिन इस सोच को बदलना होगा !
जी गोपेश जी, हार्दिक आभार आपका 🙏
हटाएंव्यथित नारी के मन पीड़ा
जवाब देंहटाएंकौन भला लिख पाया है?
मन पिंजरे की आकुलता
उड़ना कब सीख पाया है?
स्याही वेदना की जम जाती
नुकीली आह में शब्द खो गये
कवि बेसुध धुँध में छटपटाया है।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार ३० जून २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
इस काव्यात्मक सुंदर प्रतिक्रिया के लिए आभारी हूँ प्रिय श्वेता 🌹
हटाएंदी,कृपया,आमंत्रण में 1 जुलाई पढ़ें।
जवाब देंहटाएंप्रिय श्वेता और पांच लिंक शुक्रिया और आभार 🌹
हटाएंयथार्थ का स्पर्श करती एक अत्यंत मर्मांतक रचना जो २१ वीं शताब्दी की तथाकथित अत्याधुनिक विकसित सभ्यता को मुंह चिढ़ाती है, जहां अभी भी :
जवाब देंहटाएंगलियों में, गलियारों में,
लैला, हीर और पारो में।
खेतों में खलिहानों में,
मन- मन गुनती गानों में।
गौतम का न्याय, छुई मुई!
अहिल्या ही पाषाण हुई।
त्रेता में तपती सीता हो,
द्वापर की परिणीता हो।
शाह बानो का शौहर हो,
दुर्गावती का जौहर हो।
दंगाई का दंगा हो,
और, औरत ही नंगा हो!
नीर भया चीत्कार हो,
मणिपुर बलात्कार हो।
खाने में बस जूठन हो,
घर में घुटती घुटन हो।
चाहे कलाली चकला हो,
या जयशंकर की अबला हो।
सदियों से यही कहानी है,
आंचल में दूध, आंखों में पानी है।
हार्दिक आभार और अभिनन्दन आदरणीय विश्व मोहन जी! आपकी भावपूर्ण प्रतिक्रिया ने मेरी रचना के भावो से कदमताल मिलाई हैं. ये काव्यत्मक टिप्पणी एक थाती के साथ मार्मिक विचार हैं नारी विमर्श पर. पुनः आभार और प्रणाम 🙏
हटाएंभावपूर्ण अभिव्यक्ति, बहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंस्वागत है आपका भारती जी 🙏🌹
हटाएंबहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना सखी
जवाब देंहटाएंआपका स्वागत है अभिलाषा जी 🙏❤️
हटाएंनारी की व्यथा ही उसकी शक्ति बनती है, दुर्गा, लक्ष्मी और सरस्वती के रूप में नारी ही वीरों, विद्वानों और कुबेरों को जन्म देती है
जवाब देंहटाएंजी अनीता जी सच कहा आपने | पीड़ा ही शक्ति और सृजन का स्त्रोत है , विशेषकर नारी के लिए | सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आभार आपका |
हटाएंबहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंस्वागत है हरीश जी |
हटाएंमर्म को छूती हुई गुज़रती है रचना … नारी मन को जिया है रचना में आपने … बहुत समय बाद आपको ब्लॉग पर पढ़ा … अच्छा लगा, निरंतर रहिए
जवाब देंहटाएंजी दिगम्बर जी , ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है | कोशिश कर रही हूँ ब्लॉग पर निरंतर रहने की|
हटाएंवाह!प्रिय सखी रेणु जी ,बहुत खूबसूरत भावों से सजी रचना । सही कहा आपनें ,कौन समझ पाया है नारी मन की व्यथा ....
जवाब देंहटाएंआपकी उत्साहजनक प्रतिक्रिया के लिए आभार प्रिय शुभा जी |
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