मेरी प्रिय मित्र मंडली

सोमवार, 12 अगस्त 2024

वहशी तुम!

 



जिस कली को तुमने रौंदा 

क्या वो देह कोई पत्थर की थी?

थी चाँदनी  वह इक आँगन की , 

 इज्जत किसी  घर की थी |


वहशी! कुकृत्य क्या सोच किया?

अंधे होकर ऐयाशी में ! 

नोंच-खसोट ली देह कोमल

वासना की क्षणिक उबासी में! 

तुमने कुचला निर्ममता से

वह पंखुड़ी  केसर की थी !!



हुआ पिता का दिल  टुकड़े-टुकड़े 

 देख लाडली  को बदहाल में ! 

 समझ  ना पाया कैसे जा फँसी 

मेरी चिड़िया वहशियों  के जाल में ! 

 सुध -बुध खो बैठी होगी  माँ , 

 जिसकी वो  परी अम्बर की थी !!


 दुष्टों के संहार को 

 बहुत लिए अवतार तुमने ! 

 फिर मौन रहकर क्यों सुने , 

 मासूम के चीत्कार तुमने ? 

 महिमा तो  रखते  तनिक  , 

 चौखट तेरे मंदिर की थी !!


साबित  कर ही  देते 

हो सचमुच के भगवान् तुम ,

 कहीं से  आते बन उस दिन -

 निर्बल के बल -राम तुम ! 

पापी का सीना  चाक  करते , 

बात बस पल भर की थी !!!!!!!!!!!

मंगलवार, 9 जुलाई 2024

कहो कोकिल!



ब्लॉग की सातवीं   वर्षगाँठ पर मेरे स्नेही पाठकों को कोटि आभार और प्रणाम जिन्होंने मुझे  विगत  साल में ब्लॉग पर सक्रिय ना होने पर भी खूब पढ़ा |आप सब के स्नेह की सदैव  ऋणी हूँ |🙏🙏🌹🌹



मौन तोड़ हो रही गुँजित
जो अवनि और अम्बर में ,
कहो कोकिल!पीर कौन 
छिपी तुम्हारे स्वर में !

 गाती हो अनुराग-राग 
या फिर विरह का गीत कोई?
अहर्निशं मथती जाती कदाचित 
विस्मृत अधूरी प्रीत कोई !
गाती जाती बस अपनी धुन में
ना कहती  कुछ उत्तर में !
 

नज़र ना  आता नीड़ कोई 
गपचुप करती  सब क्रीड़ा
क्या  बाँटती चतुर्दिश, ओ पगली !
बेघर होने की पीड़ा?
क्यों ना मिल पाया तुम्हें  बसेरा 
सृष्टि के प्रीतनगर में ?
 

 

अबूझ तुम्हारी व्यथा कथा 
कोई भी   समझ नहीं पाता!
 क्यों हर कोई तुम्हारे सुरीले 
 इस गायन में खो जाता ?
 पीर भरी ये प्रचंड लहरी 
 भरती स्पंदन पत्थर में !
 

  जब अमराई   बौराती तो 
  तुम पंचम -सुर में गाती !
 ये  तान तुम्हारी अनायास
बिरहन का मन मथ जाती !
 तपता  मनुवा  प्रेम अगन में
धीर धरता  न किसी पहर में !
कहो कोकिल!पीर कौन 
छिपी तुम्हारे स्वर में !


चित्र  गूगल से साभार 

 




 

शनिवार, 8 जुलाई 2023

जिस दिन लिखूँगी

छह साल का क्षितिज 🙏🙏
शुक्रिया और आभार स्नेही पाठक वृन्द
छह सालों की सुखद  रचना -यात्रा में  आत्मीयता भरा साथ देने के लिए 🙏🙏🌹🌹


शुरू करूँगी जिस दिन
जिदंगी की किताब मैं
लिख दूँगी  पल-पल का 
तब इसमें हिसाब मैं |

सौंप दूँगी  फिर तुम्हें
मन भीतर रख लेना इसे,
नज़र बचा दुनिया की 
चुपके से पढ़ लेना इसे!
तुम्हारे हवाले ही करुँगी
अनकहे  सब  राज़   मैं!

व्यर्थ दौड़ाया उम्र भर,
तितलियों ने आस की।
बढ़े  अनगिन  साल  पर ,
ना  बढ़ी उम्र   एहसास की।
आखर-आखर पिरो दूँगी 
भीतर संजोये खाब मैं!

किस-किस ने सताया और 
रुलाया  यूँ ही बेवजह मुझे,
रहा जिसका  इन्तजार सदा 
ना नज़र आई वो सुबह मुझे,
अपने किसी सवाल का कब 
पा सकी कोई जवाब मैं?

शुरू करूँगी जिस दिन
जिदंगी की किताब मैं
लिख दूँगी  पल-पल का 
तब इसमें हिसाब मैं 
 
चित्र -गूगल से साभार 

जहाँ से शुरु हुआ था सफर 🙏🙏
(ब्लॉग पर पहला लेख )

https://renuskshitij.blogspot.com/2017/07/blog-post.html

शनिवार, 13 मई 2023

वीतरागी माँ


उसी प्यार से एक बार फिर 
बैठ के मुझे  निहारो माँ
मेरी लाड़ो मेरी चन्दा 
कह फिर आज पुकारो माँ
 
आँखों में   व्याप्त  अजनबीपन 
तनिक भी  तो  ना भाता  माँ
यूँ विरक्त हो जाना तेरा 
बरबस दिल दहलाता माँ 
रखो  हाथ जरा सर पे 
ममता से मुझे दुलारो माँ !


थी कभी जीवटता की  मूर्त  
क्यों अब पग थके-थके से हैं!
जो कहना है झट से कह दो 
जो होठों पर शब्द रुके-से हैं!
धीर ना धरता व्याकुल मनुवा 
सीने से लगा पुचकारो माँ !


विरह-विगलित मन को
सदा सहलाया माँ तुमने!
जब सबने  ठुकराया उस पल 
गले लगाया माँ तुमने!
बिखर रही हूँ तिनका -तिनका 
आ फिर मुझे संवारो  माँ !

 


मंगलवार, 10 जनवरी 2023

माँ हिन्दी तू ही परिचय मेरा!

 

सभी को अन्तर्राष्ट्रीय  हिन्दी दिवस की बधाई और शुभकामनाएं 🙏🙏🌹🌹

तुझ बिन रह जाती अधूरी-सी 

माँ हिन्दी तू ही परिचय मेरा 

तूने ही मिलाया  खुद से 

तू है स्नेहिल प्रश्रय मेरा!


प्रीत राग गाऊँ तुझ संग 

सृजन का आधार तुम ही!

समर्पित अरूप-अनाम को जो 

हो पावन  मंगलाचार तुम ही!

तुम सागर और सरिता सी मैं 

आ तुझमें हुआ विलय मेरा!


माधुर्य कण्ठ का है तुझसे ,

तेरा शब्द-शब्द  है यश मेरा !

ढल कविता में जो बह निकला 

तू  अलंकार, नवरस मेरा!

अतुलकोश  सहेज भावों का 

है कृतज्ञ बड़ा हृदय मेरा!



तुलसी के हिय बसी तू ही 

सूर  का तू ही भ्रमर गीत!

अनकही पीर मीरा की तू 

रचती जो प्रेम की नवल रीत!

मुझसे भी अटूट  बंधन तेरा 

तुझ पर गौरव अक्षय मेरा!

माँ हिन्दी तू ही परिचय मेरा!

🙏🙏

सोमवार, 5 दिसंबर 2022

प्रेम

 

प्रेम तू सबसे न्यारा .
कहाँ तुझसा कोई प्यारा!

शब्दातीत, कालातीत, 
ज्ञानातीत तू ही! 
इश्क मुर्शिद का तुझसे,
राधा की प्रीत तू ही !
चमक  रहा कब से क्षितिज पे 
बनकर ध्रुव तारा!

मीठा ना  तुझसा छ्न्द कोई.
ना  बाँध सके अनुबंध कोई!
उन्मुक्त गगन के पाखी-सा ,
सह सकता नहीं प्रतिबंध कोई 
 कोई रोके,रोक ना पाये 
 तोड़  निकले हर इक कारा!

आन मिले अनजान पथिक-सा  
साथ चल दे जाने किसके .
अरूप और अदृश्य तू ,
नहीं आता सबके हिस्से !
विरह के आनंद  में बह जाता   
बन कर अंसुवन धारा  !


चित्र -पाँच लिंक से साभार  


शुक्रवार, 11 नवंबर 2022

क्या दूँ प्रिय उपहार तुम्हें?



प्रिय क्या दूँ उपहार तुम्हें ?
 जब सर्वस्व पे है अधिकार तुम्हें!
मेरी हर प्रार्थना में तुम हो,
निर्मल अभ्यर्थना में तुम हो!
तुम्हें समर्पित हर प्रण मेरा,
माना जीवन आधार तुम्हें!
मुझमें -तुझमें क्या अंतर अब!
 कहां भिन्न दो मन-प्रांतर अब
ना भीतर शेष रहा कुछ भी,
 सब सौंप दिया उर भार तुम्हें!
मेरे संग मेरे  सखा तुम्हीं 
मन की पीड़ा की दवा तुम्हीं
बसे  रोम रोम तुम ही प्रियवर
रही शब्द शब्द सँवार तुम्हें 
  दूं प्रिय! उपहार तुम्हें?
जब सर्वस्व पे है अधिकार तुम्हें 
 


बुधवार, 21 सितंबर 2022

एक दीप तुम्हारे नाम का ------- नवगीत

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अनगिन   दीपों संग आज जलाऊँ  
एक दीप  तुम्हारे  नाम का  साथी ,
तुम्हारी प्रीत से हुई  है जगमग 
क्या कहना इस शाम  का साथी !!

 जब से   तुम्हें   साथी पाया है  
 आह्लादित मन   बौराया है ,
तुमसे   कहाँ  अब अलग रही मैं ?
खुद को  खो  तुमको पाया है
भीतर तुम हो  ,बाहर  तुम हो -
तू  गोविन्द है  मन धाम का साथी !!

ये  अनुराग  तुम्हारा   साथी 

जाने कौन गगन ले जाये ? 
पुलकित हो   बावरा  मन मेरा  
आनंद शिखर  छू जाये ,
तुम बिन अधूरा  परिचय मेरा  
तू प्रतीक  मेरे स्वाभिमान का साथी !!

मनबैरागी  बन   तजूं  रंग सारे 

मन रंगूँ तेरी प्रीत के रंग में ,
साजन  रहे अक्षुण साथ  तुम्हारा  
जीवनपथ पे चलूँ   संग-संग में 
बिन   तेरे  ये जीवंन मेरा  
है मेरे  किस काम  का साथी ? 

अनगिन   दीपों संग आज जलाऊँ 

एक दीप   तुम्हारे नाम का  साथी ,
तुम्हारी प्रीत से हुई  है जगमग 
क्या कहना इस शाम  का साथी !! 

स्वरचित -- रेणु
चित्र -- साभार गूगल -- 
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Gप्लस से साभार टिप्पणी --


Mahatam Mishra's profile photo
क्या कहना इस शाम का साथी, बिन तेरे ये जीवंन मेरा -अब है मेरे किस काम का साथी ? वाह वाह आदरणीया, मन मुग्ध करती रचना, स्वागतम
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सोमवार, 22 अगस्त 2022

जीवन बोध

 


 पुरुष तुम  प्रकृति मैं ,
रहे एक दूजे में लीन सदा!
मन सिंहासन पर मेरे ,
तुम ही रहे आसीन सदा!

जन्मे साथ ना जाना था संग-संग 
गंतव्य से पर अनभिज्ञ रहे!
कब बात सुनी ज्ञानी मन की,
खुद को ही मान सर्वज्ञ रहे!
ना जान सके,जीवन नश्वर
जग-माया में रहे तल्लीन सदा!


मोह,विछोह ना जान सकी,
रही मुग्ध निहार स्व- दर्पणमें!
भूली  सब रिश्ते नाते ,
जब डूबी सर्वस्व समर्पण में !
तुम से दूर रही तनिक भी 
तड़पी ज्यों जल बिन मीन सदा!

मगन  झूमी  कस  भुजबंध में,
जाने अभिसार के रंग सभी !
शाश्वत प्रेम में हो तन्मय,  
जी ली, जी भर उमंग सभी!
 परवाह की ना  बेरंग दुनिया की,
सजाये स्वप्न नवीन सदा !
 
बड़ा कठिन विछोह सह जाना 
और जाना तुमसे दूर प्रियतम!
दुख दारुण विदा की बेला का,
है  सृष्टि का अटल नियम !
माटी की देह बनकर  माटी, 
माटी में हुई  विलीन सदा !!

 

शनिवार, 16 जुलाई 2022

आज कविता सोई रहने दो !

आज  कविता सोई रहने दो,
मन के मीत  मेरे !
आज नहीं जगने को आतुर 
सोये उमड़े  गीत मेरे !
 

ना जाने क्या बात है जो ये
मन विचलित हुआ जाता है !
अनायास जगा दर्द कोई 
पलकें नम किये जाता है !
आज नहीं सोने देते  
ये रात-पहर रहे बीत मेरे !

आज ना चलती तनिक भी  मन की
उपजे ना प्रीत का राग कोई !
विरक्त  हृदय में अनायास ही
व्याप्त हुआ विराग कोई !
ना चैन  आता पल भर को भी 
 देह -प्राण रहे रीत मेरे! 

कोई खुशी  ना छूकर गुजरे,
बहलाती  ना सुहानी याद कोई।
लौटती जाती होंठों पर से ,
आ-आ कर फरियाद कोई  ।
लगे बदलने असह्य पीर में 
मधुर   प्रेम- संगीत मेरे!
आज नहीं जगने को आतुर 
सोये उमड़े   गीत मेरे !

चित्र - गूगल से साभार 

विशेष रचना

आज कविता सोई रहने दो !

आज  कविता सोई रहने दो, मन के मीत  मेरे ! आज नहीं जगने को आतुर  सोये उमड़े  गीत मेरे !   ना जाने क्या बात है जो ये मन विचलित हुआ जाता है ! अना...