मेरी प्रिय मित्र मंडली

शनिवार, 18 मई 2019

ना शत्रु बन प्रहार करो --कविता [ एक वृक्ष की व्यथा -]




 ना शत्रु बन प्रहार करो  
 सुनो मित्र ! निवेदन मेरा भी  
मैं मिटा तुम भी ना रहोगे  
 जुडा तुमसे यूँ जीवन मेरा भी !

 करूँ श्रृंगार जब सृष्टि का मैं   

फूल -फूल कर इठलाती , 
 सुयोग्य  सुत  मैं धरा    का
मुझ बिन  माँ  की फटती छाती
तुम जैसे ही ममतावश  मैं 
नहीं  कम कोई समर्पण मेरा भी !!


सदियों से पोषक हूँ  सबका  

 कृतघ्न  बन  ना दो धोखा ,
निष्प्राण नही   निःशब्द हूँ मैं
 कहूँ कैसे अपने  मन की  व्यथा   ?
  जड़  नही चेतन हूँ  मैं
दुखता है मन मेरा भी !!

खाए ना कभी अपने फल मैंने 

न फूलों से श्रंगार किया ,
जगहित हुआ जन्म मेरा   
पल -पल इसपे उपकार किया ,
खुद तपा बाँट छाया सबको  
 जुडा सबसे अंतर्मन  मेरा भी !!

कसता नदियों के तटबंध मैं  

 थामता   मैं ही हिमालय  को ,
जुगत मेरी  कायम रहे   सृष्टि  
महकाता मैं ही देवालय  को ;
 तुम संग बचपन में लौटूं  
 संग  गोरी खिलता यौवन मेरा भी !


स्वरचित -- रेणु
चित्र -गूगल से साभार 

बुधवार, 8 मई 2019

पथिक ! मैंने क्यों बटोरे

 

पथिक !  मैंने क्यों बटोरे   
 नेह भरे   वो पल तुम्हारे ?
यतन कर  - कर के हारी , 
गए ना    मन से बिसारे !

कब  माँगा  था   तुम्हें 
किसी दुआ  और प्रार्थना में ?
तुम कब थे समाहित 
मेरी     मौन अराधना में ?
आ गये अपने से बन क्यों
 बंद ह्रदय के  द्वारे  ! !
 

हँसी- हँसी  में लिख दिए 
 दर्द संग अनुबंध मैंने ,
 थाम रखे जाने  कैसे 
 आँसुओं के बन्ध मैंने  ;
 टीसते मन को लिए
 संजोये   भीतर  सागर   खारे !!

क्यों उतरे मन के तट-
एक सुहानी प्यास लेकर?
अनुराग  गंध से भरे  
 अप्राप्य से मधुमास लेकर ;
क्यों ना गये राह अपनी
समेट  मधु स्वप्न सारे ! !

ना था अधिकार   क्यों  रखी    
व्यर्थ   मिलन  की चाह मैंने ?
किस आस पर निहारी
 पहरों तुम्हारी राह मैंने ?
 आँचल में  क्यों  भर बैठी
 भ्रामक से चाँद सितारे !!
 

चित्र ---- गूगल से साभार -- 

शुक्रवार, 19 अप्रैल 2019

तुम मिले कोहिनूर से -- कविता


शनिवार, 6 अप्रैल 2019

कौन दिखे ये अल्हड किशोरी सी -- कविता


 चंचल  नैना .    फूल सी कोमल  ,
 कौन दिखे  ये अल्हड किशोरी  सी  ? 
रूप - माधुरी  का  महकता  उपवन -
लगे  निश्छल  गाँव की   छोरी   सी  !
 

मिटाती मलिनता  अंतस की 
मन  प्रान्तर  में आ बस जाए ,   
रूप   धरे  अलग -अलग  से 
 मुग्ध,  अचम्भित  कर जाए ,
 किसी    पिया की है प्रतीक्षित   
 लिए    मन   की  चादर   कोरी सी !  

तेरी   चितवन  में  उलझा  मनुवा -
तनिक  चैन  ना      पाए,
 यही  ज्योत्स्ना  चुरा  के  चंदा  
 प्रणय  का  रास  रचाए ;
 रंग ,गंध  , सुर   में  वास  तेरा  
 तू सृष्टि की  रंगीली  होरी  सी ! 

अनुराग स्वामिनी  मनु  की 
तुम    नटखट  शतरूपा सी,
शारदा तुम्हीं लक्ष्मी  , सीता,
शिव की शक्तिस्वरूपा  सी ,
अपने श्याम सखा में  उलझी  
 तुम्हीं राधिका गोरी सी !!

सृष्टा की अनुपम  रचना 
तुझ बिन सूना जग का आँगन ,
सदा धरे  धरा सा  संयम     
 है  विकल जिया का  अवलम्बन ,
 शुचिता  .  तुम्हीं   स्नेह ,करुणा,
 तुम माँ  की मीठी लोरी सी !! 

चित्र -  गूगल  से साभार


शनिवार, 9 मार्च 2019

उस फागुन की होली में -- कविता


जीना  चाहूँ वो लम्हे बार -बार ,
 जब तुमसे जुड़े थे मन के तार !

जाने  उसमें  क्या जादू  था   ?
 ना रहा जो खुद पे  काबू  था !
 
कभी गीत बन कर हुआ मुखर,
 हँसी में घुल  कभी गया बिखर !
 
प्राणों में मकरंद घोल गया,
 बिन कहे ही सब कुछ बोल गया !
   
इस धूल  को बना गया    चन्दन   
सुवासित , निर्मल और पावन 
 
कभी चाँद हुआ ,कभी फूल हुआ,
या चुभ  हिया की शूल हुआ !

लाल था कभी - कभी नीला,
 कभी सिंदूरी - कभी पीला !
 
कोरे मन  रंग  कर निकल गया ,
कभी   अश्रु बनकर ढुलक गया  ! 

ना खबर हुई  क्या ले गया  
क्या  भर गया खाली झोली में  ?
वो चुटकी भर..अबीर तुम्हारा
 उस फागुन की होली में !!! 
स्वरचित -- रेणु-
चित्र -- गूगल से साभार 

  

शुक्रवार, 1 मार्च 2019

हार्दिक अभिनन्दन !

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वीर अभिनन्दन !    हार्दिक अभिनन्दन  ! 
 तुम्हारे   शौर्य  को  कोटि  वन्दन !

 पुलकित , गर्वित  माँ  भारती 
 तुम्हारे   निर्भीक   पराक्रम से ,
 मृत्यु -  भय से हुए ना विचलित 
  ना चूके संयम से ,
सिंह पुत्र  तुम जननी के  
 सहमा शत्रु नराधम !!

 शत्रु भूमि पर   जा देखो 
 मातृभूमि का मान बढ़ाया  ,
अर्जित की अखंड कीर्ति   
 ना पीछे कदम हटाया ,
मान -मर्दन किया   पापी का 
 रहा  अडिग हिमालय सा तन !

 कोटि नैन बिछे पथ में 
स्वागत को आज  तुम्हारे  ,
 एक कुटुंब सा जुटा राष्ट्र 
 अपलक तुम्हे   निहारे ,
 तुम्हारा यश रहे  अमर  जग में
  पुकार रहा  यही जन - जन !! 

  
स्वरचित -- रेणु
चित्र --गूगल से साभार --

शनिवार, 16 फ़रवरी 2019

लौटा माटी का लाल !

Image result for तिरंगे में लिपटे शहीद चित्र

 गूँजी    मातमी धुन 
  लुटा यौवन .
  लौटा माटी का लाल 
 माटी में मिल जाने को !
तन सजा तिरंगा !

 इतराया था एक दिन 
  तन   पहन  के खाकी
 चला वतन की राह 
 ना कोई चाह थी बाकी 
  चुकाने  दूध का कर्ज़  
 पिताका मान बढाने को !
 लौटा माटी का लाल 
 माटी में मिल जाने को !!
तन सजा तिरंगा !

रचा चक्रव्यूह  
शिखंडी शत्रु ने 
 छुपके घात लगाई 
कुटिल  चली चाल 
 मांद जा जान छिपाई 
पल में देता चीर
ना  आया  आँख मिलाने को !
 लौटा माटी का लाल 
 माटी में मिल जाने को !!
तन सजा तिरंगा !

उमड़ा जन सैलाब  
विदा  की आई बेला ,
हिया विदीर्ण महतारी आज 
आंगन   ये कैसा मेला ?
 सुत सोया अखियाँ मूंद
 जगा ना  धीर  बंधाने  को;
लौटा माटी का लाल -
 माटी में मिल जाने को ;
 तन सजा  तिरंगा !!! 


पुलवामा  के वीर शहीदों को  अश्रुपूरित    नमन !!!!!!!!!
स्वरचित -- रेणु-- 
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शनिवार, 2 फ़रवरी 2019

चाँद हंसिया रे !

 

चाँद हंसिया   रे  ! सुन  जरा !
ये कैसी  लगन जगाई तूने ?
 कब के जिसे भूले बैठे थे 
फिर उसकी याद दिलाई तूने !!

गगन में अकेला बेबस  सा  
 तारों से  बतियाता  तू ,
 नीरवता के  सागर में   
  पल - पल गोते खाता  तू  ,
कौन खोट  करनी में आया ? \
ये बात ना कभी  बताई तूने !!

किस जन्म किया  ये महापाप ?
शीतल   होकर  भी सहा   चिर -संताप ,
 दूर सभी अपनों से रह  
 ढोया सदियों ये कौन शाप ?
नित -नित घटता -बढ़ता रहता
नियति कैसी लिखवाई तूने  ? 

तेरी रजत चांदनी मध्यम सी  
 जगाती मन में अरमान बड़े ,
  यूँ ही    सजा बैठा सपने जो  
  हैं भ्रम- से ,करते हैरान बड़े,
 मुझ -सा   तू भी   है   तन्हा 
 ना जानी पर  पीर पराई  तूने !! 


स्वरचित -- रेणु
चित्र -- गूगल से साभार 
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धन्यवाद शब्द नगरी 

रेणु जी बधाई हो!,

आपका लेख - (चाँद हंसिया रे ! ) आज के विशिष्ट लेखों में चयनित हुआ है | आप अपने लेख को आज शब्दनगरी के मुख्यपृष्ठ (www.shabd.in) पर पढ़ सकते है | 

शनिवार, 22 दिसंबर 2018

दो परियां ये आसमान की ---- कविता -

दो परियां ये आसमान की
मेरी दुनिया में आई हैं ,
सफल दुआ जीवन की कोई 
स्नेह की शीतल पुरवाई है  !

 लौट आया है दोनों संग 
वो  भूला- सा बचपन मेरा ;
 निर्मल  मुस्कान से चहक उठा  
ये सूना सा आँगन मेरा ,
एक शारदा - एक लक्ष्मी सी  
पा   मेरी ममता इतराई है !

समय को लगे पंख मेरे 
तुममें  खो सुध-बुध बिसराऊँ मैं  
जरा मुख मुरझाये तुम्हारा   ,
तो विचलित सी हो  जाऊँ मैं ;
तुम्हारी आँख से छलके आंसूं ;
तो आँख  मेरी भी भर आई है !!

 दोनों मेरी परछाई -सी  
मेरा ही रूप साकार हो तुम,
मैं तुम में -तुम दोनों मुझमें   
मेरी ख़ुशी का असीम विस्तार हो तुम
मेरे  नैनों  की ज्योति तुम  
 प्राणों में दोनों समाई हैं !!

हो सफल जीवन में बनना 
मेरे संस्कार पहचान तुम , 
मैं वारूँ  नित ममता अपनी 
छूना सपनों का असमान तुम  ,
डगमगाए ना ये नन्हें  कदम  
मेरी  बाँहें   पर्वत बन आई है ! 

दो परियां ये आसमान की
मेरी दुनिया में आई हैं ,
सफल दुआ जीवन की कोई -
स्नेह की शीतल पुरवाई है !! 

सन्दर्भ --- दो प्यारी बेटियों की माँ के गर्व को समर्पित पंक्तियाँ--

बुधवार, 19 दिसंबर 2018

जब तुम ना पास थे -


कुछ घड़ियाँ थी या सदियाँ थी
तुम्हारे  इन्तजार  की ,
 बढ़ी   मन की तपन 
फीकी पड़ी रंगत बहार की !

बुझी-बुझी हर शै थी 
जब तुम ना पास थे  ,
आंगन , पेड़ , फूल , चिड़िया 
सब उदास थे !

  हवाएँ थी  पुरनम , 
 गुम  मन  मौसम थे;
 बरसने को आतुर
 येआँखों के सावन थे !! 

 खुद के   सवाल थे 
अपने ही   जवाब थे ,
चुपचाप  जिन्हें सुन रहे   
जुगनू,  तारे  ,मेहताब थे !
  
ना रहा बस में मेरे 
कब  दिल पे जोर था ,
उलझा रहा   भीतर  
 तेरी  यादों का शोर था !!

 भ्रम  सी थी हर आहट
 तुम जैसे  आसपास हो ।
कह रहा बोझिल मन
कहीं तुम भी  उदास हो !!


विशेष रचना

आज कविता सोई रहने दो !

आज  कविता सोई रहने दो, मन के मीत  मेरे ! आज नहीं जगने को आतुर  सोये उमड़े  गीत मेरे !   ना जाने क्या बात है जो ये मन विचलित हुआ जाता है ! अना...